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Kisan Bharat Bandh : देशभर में किसानों का भारत बंद आज, जानिए कब कब खेत खलिहान छोड़ सड़क पर उतरा हमारा अन्नदाता

Kisan Bharat Bandh (किसान भारत बंद) 2020 Date, Timing and History : 8 दिसंबर 2020 का दिन भारतीय इतिहास में किसानों के बड़े आंदोलन के तौर पर हमेशा याद किया जाएगा. आज लगातार 14 दिन से किसान अपनी मांगों को लेकर धरने पर अड़े हैं और वे चाहते हैं कि मोदी सरकार जो तीन किसान बिल लाई है उसे वह वापस ले ले.

Kisan Bharat Bandh (किसान भारत बंद) 2020 Date, Timing and History : 8 दिसंबर 2020 का दिन भारतीय इतिहास में किसानों के बड़े आंदोलन के तौर पर हमेशा याद किया जाएगा. आज लगातार 14 दिन से किसान अपनी मांगों को लेकर धरने पर अड़े हैं और वे चाहते हैं कि मोदी सरकार जो तीन किसान बिल लाई है उसे वह वापस ले ले. सबसे ज्यादा उन्हें आपत्ति एमएसपी को लेकर है. किसान भारत बंद का ये आह्वान आज पूरे देश के लिए किया गया है और इसमें 24 विपक्षी पार्टियां इसका साथ दे रही हैं. Bharat Bandh Live News से अपडेट रहने के लिए बने रहें हमारे साथ. हम आपको बता रहे हैं कि भारतीय इतिहास में इससे पहले कब कब किसान यानी हमारा अन्नादाता अपनी मांगों को लेकर या शासन के खिलाफ सड़कों पर उतरा है…

आजादी से पहले भी किसान अपनी मांगो को लेकर आंदोलन करते रहें. आजादी के बाद जो किसान आंदोलन हुए हैं वह हिंसक और राजनीति से प्रेरित हुए हैं. अगर प्रमुख किसानों आंदोलन का जिक्र करें तो इसमें नील पैदा करने वाले किसानों का विद्रोह, पाबना विद्रोह, तेभागा आंदोलन, चम्पारण सत्याग्रह, बारदोली सत्याग्रह और मोपला विद्रोह प्रमुख रूप से याद आते हैं.

पाबना विद्रोह : बंगाल के पाबना जिले में यह आंदोलन काश्तकारों ने किया था साल 1859 में यह विद्रोह एक कानून के खिलाफ हुआ. जमींदार उनसे तय रकम से अधिक लगाम वसूल रहे थे.किसानों को उनकी जमीन से बेदखल करने की कोशिश हुई. जमींदारों के खिलाफ यह आंदोलन हुआ और सन् 1873 में पाबना के यूसुफ सराय के किसानों ने मिलकर एक संघ बनया जिसे ‘कृषक संघ’ का नाम दिया गया. इस संगठन ने किसानों को एक साथ किया इसका काम सभा आयोजित करना किसानों की बात सुनना और उनके अधिकार के लिए योजना बनाना था.

दक्कन विद्रोह : यह किसान आंदोलन वृहद था इसका कारण था कि यह सिर्फ एक या दो जगहों पर सीमित नहीं था. देश के कई हस्सों में इस आंदोलन की वजह से इसे वृहद माना जाता है. साहूकारों के खिलाफ यह आंदोलन हुआ था . साल 1874 के दिसंबर के महीने में सूदखोर कालूराम ने किसान (बाबा साहिब देशमुख) के खिलाफ अदालत से घर की नीलामी की डिक्री प्राप्त कर ली थी. इसी का विरोध किसानों ने शुरू किया था .

एका आंदोलन : इस आंदोलन के जरिये देशभर के किसानों को एकजुट करने की कोशिश की गयी थी. किसान कई मामलों में पहले ही नाराज चल रहे थे. होमरूल लीग के कार्यकताओं के साथ मिलकर मदन मोहन मालवीय ने फरवरी, सन् 1918 में उत्तर प्रदेश में ‘किसान सभा’ का गठन किया गया था. साल 1919 में किसानों को एकजुट किया गया. संगठन को जवाहरलाल नेहरू ने अपने सहयोग से शक्ति प्रदान की थी. इस आंदोलन से किसानों को एकजुट होने में मदद मिली थी.

मोपला विद्रोह : साल 1920 में केरल के मालाबार इलाके में मोपला किसानों ने यह विद्रोह किया था इसलिए इसे मोपला विद्रोह के नाम से जाना जाता है. यह आंदोलन अंग्रेजों के खिलाफ हुआ था और इसमें महात्मा गांधी, शौकत अली, मौलाना अबुल कलाम आजाद समेत कई बड़े नेताओं ने इस आंदोलन में हिस्सा लिया था हालांकि समय के साथ आंदोलन का स्वरूप बदल गया और इसने सांप्रदायिक रुप ले लिया.

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रामोसी किसान विद्रोह : रामोसी किसानों ने यह आंदोलन शुरू किया था. यह आंदोलन जमींदारों के अत्याचार के खिलाफ शुरू किया गया था. महाराष्ट्र के वासुदेव बलवंत फड़के के नेतृत्व में यह आंदोलन शुरू हुआ था . इसी तरह 1879 से लेकर 1922 तक इस तरह के आंदोनल चलते रहे.

टाना भगत आंदोलन : टाना भगत आंदोलन लगान की ज्यादा दर के खिलाफ शुरु हुआ था. मुंडा आंदोलन के 13 साल बाद टाना भगत आंदोलन शुरू हुआ था. चुकि यह बढ़े हुए कर चौकीदारी कर के खिलाफ शुरू हुआ इसलिए इसे किसान आंदोलन से जोड़कर देखा जाता है.

तेभागा आन्दोलन : बंगाल में हुआ साल 1946 का तेभागा आंदोलन किसान आंदोलन में गिना जाता है. इसमें लगान की दर घटाने की मांग की गयी थी. बंगाल का ‘तेभागा आंदोलन’ फसल का दो-तिहाई हिस्सा उत्पीड़ित बटाईदार किसानों को दिलाने के लिए किया गया था। यह बंगाल के 28 में से 15 जिलों में फैल गया था. ‘किसान सभा’ के आह्वान पर लगभग 50 लाख किसानों ने इसमें भाग लिया था. इसी समय में तेलंगा.इसमें किसान बगैर किसी मध्यस्थ के स्वयं ही अपनी लड़ाई लड़ने लगे थे.

बिजोलिया किसान आंदोलन : यह आंदोलन किसान आंदोलन में अलग जगह रखता है. क्रांतिकारी विजय सिंह पथिक के नेतृत्व में यह आंदोलन चला था. यह आंदोलन साल 1847 से शुरू हुआ था जो लंबे समय तक चला था. साल 1923 से लेकर 1935 तक कई किसान संगठनों का गठन हुआ 1935 में सभी प्रान्तीय किसान सभाओं को मिलाकर एक ‘अखिल भारतीय किसान संगठन’ बनाने की योजना बनायी.

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चंपारण सत्याग्रह : देश के इतिहास में चंपारण का सत्याग्रह महत्वपूर्ण स्थान रखता है. चंपारण के किसानों से अंग्रेजी सरकार ने एक अनुबंध किया था जिसमें किसानों को जमीन के 3/20वें हिस्से पर नील की खेती करना अनिवार्य कर दिया गया था. इसके अलावा खेड़ा सत्याग्रह, गुजरात में बारदोली सत्याग्रह भी किसान आंदोलन में अलग स्थान रखता है.

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