नयी दिल्ली : नये कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग को लेकर दिल्ली पहुंचे किसानों का आंदोलन जारी है. पंजाब और हरियाणा से आये हजारों किसान दिल्ली के सिंघु बॉर्डर, टीकरी बॉर्डर और गाजीपुर बॉर्डर पर पिछले चार दिनों से डटे हैं. किसानों के प्रदर्शनों के बीच एक पोस्टर ने 32 साल पुराने किसान आंदोलन की भयावह तस्वीर की यादें ताजा कर दी हैं. राष्ट्रीय राजधानी के दिल्ली-सोनीपत सीमा स्थित सिंघु बॉर्डर पर किसानों की ओर से लगाये गये एक पोस्टर में बीकेयू की धारा-288 का जिक्र किया गया है. इस धारा का सबसे पहले इस्तेमाल सबसे पहले भारतीय किसान यूनियन के संस्थापक चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत ने 32 साल पहले किसान आंदोलन में किया था.
भारतीय किसान यूनियन (बीकेयू) की धारा 288 ना तो इंडियन पैनल कोड से संबंधित है और ना ही दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) से. किसानों के मुताबिक, यह पुलिस द्वारा लगायी जानेवाली निषेधाज्ञा यानी धारा 144 के खिलाफ एक संबोधित धारा है. पुलिस एक स्थान पर पांच या अधिक लोगों के एकत्रित होने पर रोक लगाने के लिए सीआरपीसी की धारा 144 का इस्तेमाल करती है. इसके अंतर्गत किसी जिले के जिलाधिकारी, एसडीएम या एग्जिक्यूटिव मजिस्ट्रेट को अधिकार है कि कानून व्यवस्था बिगड़ने की स्थिति में राज्य सरकार की ओर से संबंधित क्षेत्र में निषेधाज्ञा लागू कर सकते हैं. यह आदेश सीआरपीसी की धारा 144 के तहत जारी किया जाता है. सीआरपीसी की धारा 144 के उलट किसान धारा 288 लगा कर एलान करते हैं कि संबंधित क्षेत्र में पुलिसकर्मी, प्रशासनिक अधिकारी या सरकार से जुड़े आदमी का प्रवेश वर्जित है.
किसान की धारा 288 का पहली बार इस्तेमाल भारतीय किसान यूनियन के संस्थापक चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत ने किसान आंदोलन में किया था. आज से करीब 32 साल पहले 25 अक्तूबर, 1988 को बीकेयू के संस्थापक चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत के नेतृत्व में अपनी मांगों को लेकर हजारों किसान दिल्ली में रैली करने के लिए एकत्र होने लगे थे. किसानों को रोकने के लिए दिल्ली पुलिस ने लोनी बॉर्डर पर फायरिंग भी की थी, जिसमें दो किसानों की मौत हो गयी थी. किसानों के उग्र प्रदर्शन के बाद आंदोलन और तेज हो गया. देशभर के दर्जनभर से ज्यादा राज्यों से करीब पांच लाख किसान दिल्ली पहुंचने लगे. इसके बाद राष्ट्रीय राजधानी में सीआरपीसी की धारा 144 लगा दी गयी. इसके बाद भारतीय किसान यूनियन के नेता चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत ने एलान किया कि धारा 144 के इलाके में किसान नहीं जा सकते तो हम भी अपने इलाके में धारा 288 लगाते हैं. हमारे इलाके में भी पुलिसकर्मी, प्रशासनिक अधिकारी और सरकार से जुड़े लोगों का प्रवेश वर्जित होगा.
देश के विभिन्न राज्यों से आये लाखों किसानों ने दिल्ली में चक्का जाम कर दिया था. दिल्ली पूरी तरह से ठप हो गयी थी. दिल्ली के बोट क्लब पर पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की पुण्य तिथि पर आयोजित होनेवाली रैली को लेकर रंगाई-पुताई चल रही थी. कार्यक्रम के लिए बने मंच पर किसानों ने कब्जा जमा लिया. दिल्ली के सबसे हाईअलर्ट जोन में स्थित लुटियंस इलाके को किसानों ने घेर लिया. किसानों के उग्र प्रदर्शन और आंदोलन को देखते हुए अधिकारी सेलेकर मंत्री तक परेशान हो गये थे. चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत के नेतृत्व में 12 सदस्यीय कमेटी तत्कालीन राष्ट्रपति और तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष से मुलाकात की. इसी बीच राजपथ से किसानों को हटाने के लिए पुलिस ने 30 अक्तूबर की रात लाठीचार्ज कर दिया. महेंद्र सिंह टिकैत ने तत्कालीन राजीव गांधी सरकार को चेतावनी देते हुए कहा था कि किसानों की नाराजगी सरकार को सस्ती नहीं पड़ेगी. आखिरकार, तत्कालीन सरकार को किसानों की 35 सूत्री मांगों के सामने झुकना पड़ा और आश्वासन दिये जाने के बाद 31 अक्तूबर को आंदोलन खत्म हुआ.