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आक्रामक पड़ोसियों से दोहरा खतरा

भारत अपने बूते पर अपनी सुरक्षा करने के लिए सक्षम है और उसे ही यह करना है. आतंकवाद और चीन के मसले पर दुनिया की प्राथमिकताएं बदल सकती हैं, लेकिन भारत की नहीं.

प्रो सतीश कुमार, राजनीतिक विश्लेषक

singhsatis@gmail.com

हांलिया दिनों में भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर खाड़ी देशों की यात्रा के बाद सेशेल्स गये, वहीं सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने श्रीलंका की यात्रा कर मालद्वीप और श्रीलंका के प्रतिनिधियों के साथ बैठक की है. यह सब भारत के समुद्री ठिकानों को मजबूत बनाने के लिया किया जा रहा है. कुछ दिनों पहले रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा था कि भारत हर स्थिति में चीन से मुकाबला करने के लिए तैयार है. अर्थात, भारत के सामने अन्य चुनौतियों के अलावा इस्लामिक आतंकवाद की भी है. जिस तरीके से पाकिस्तान की कोशिशें कश्मीर में नाकाम हो रही हैं, वह बांग्लादेश और अफगानिस्तान के रास्ते आतंकवाद को हवा देने की कोशिश करेगा. इस संदर्भ में एक महत्वपूर्ण बयान सेनाध्यक्ष जनरल नरवणे ने भी दिया है.

कुछ दिनों पहले फ्रांस की घटनाओं पर तुर्की और पाकिस्तान ने बढ़ चढ़ कर विवादित बयान दिया था. अभी बांग्लादेश में इस्लामिक गुट गोलबंद हो रहे हैं, जब बांग्लादेश के लोग अपने संस्थापक बंगबंधु की जन्म शताब्दी मना रहे हैं. इस दौरान उनकी एक विशाल प्रतिमा का अनावरण होना है. चरमपंथी समूह हिफाजत-ए-इस्लाम, जो पाकिस्तान की तर्ज पर बांग्लादेश में ईशनिंदा कानून को लागू करना चाहता है, इसका विरोध कर रहा है. यह विरोध देश के लिए एक समस्या बनता जा रहा है. पाकिस्तान पहले से ही बांग्लादेश और अन्य पड़ोसी देशों में इस्लामिक कट्टरपंथी तेवर को हवा देता रहा है. इसलिए भारत के सामने पाकिस्तान-समर्थित आतंकवाद गंभीर समस्या है.

दुनिया के स्तर पर देखें, तो 20 प्रतिशत लोग इस्लाम को मानते माननेवाले हैं. अधिकतर मुस्लिम बहुल देशों में लोकतांत्रिक व्यवस्था नहीं है. अनेक देश आंतरिक हिंसा की चपेट में हैं. इस्लामिक देशों की एक बड़ी समस्या आर्थिक विषमता की गहरी खाई भी है. चरमपंथी, कट्टरपंथी और आतंकी समूह गरीबी का फायदा उठाकर लोगों को भड़का कर और बरगला कर इस्लाम के नाम पर हिंसा व आतंक फैलाने के लिए उकसाते हैं. इस कोशिश में कुछ धनी देशों के पैसे का भी इस्तेमाल होता है.

इस मुहिम में अमेरिका ने भी 1970-80 के दशक में पाकिस्तान को एक सॉफ्ट इस्लामिक स्टेट का दर्जा देकर उसके मनोबल को बढ़ाया, क्योंकि तब अमेरिका को इसकी जरूरत थी. अब अमेरिका के बदले चीन पाकिस्तान के पीछे खड़ा हो गया है. यहां विश्लेषण इस पर नहीं है कि इस्लामिक आतंकवाद पर चीन और अन्य बड़ी शक्तियां क्या सोचती हैं, बल्कि यह है कि यह समस्या भारत के लिए कैसे खतरनाक है? पाकिस्तान द्वारा पोषित और संरक्षित आतंकवाद और चीन से मुकाबला करने की चुनौती का सामना भारत को अपने बूते ही करना है. कोई भी देश हो, आतंकवाद से लड़ने के उसके कारण और तौर-तरीके अलग अलग हैं. चीन के साथ भारत का टकराव भी उसी दायरे में आता है.

कोई भी देश खुल कर भारत के पक्ष में खड़ा होने के लिए तैयार नहीं होगा. लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर कई महीनों से चल रही तनातनी अभी भी बनी हुई है. चीन अपनी जिद पर अड़ा हुआ है. उसे लगता है कि भारत बढ़ती ठंड में मैदान छोड़ देगा, लेकिन चीन की हर रणनीति के बरक्स भारत भी डटा हुआ है. चीन इस मिजाज के साथ अपने विस्तारवादी रवैये को दुनिया के सामने रखना चाहता है. उसकी दमखम उसका पैसा है, जिसके बूते पर वह सब कुछ शक्ति के द्वारा हथिया लेना चाहता है. पिछले दो-तीन वर्षो में चीन में एक नयी नीति की खूब चर्चा होती है, जिसे ‘वुल्फ वारियर’ कूटनीति के नाम से जाना जाता है. यह चीन की एक लोकप्रिय फिल्म का हिस्सा है, जिसमें चीनी आक्रामकता को खूब बढ़ा चढ़ा कर दिखाया गया है.

जो कोई देश चीन की बातों पर हामी नहीं भरता है, चीन उसको तबाह करने की साजिश रचता है. कोरोना महामारी के दौर में आलोचना करनेवाले देशों को चीन ने अपनी आर्थिक शक्ति से दबाव में लाने की कोशिश करता दिखा. इसका दूसरा पहलू है- पड़ोसी देशों के साथ अपनी मनमर्जी से सीमांकन करना. इसी उद्देश्य के साथ चीनी सेना लद्दाख की गलवान घाटी पहुंची थी. उसे अंदाजा था कि पकड़े जाने के बाद उसकी वुल्फ कूटनीति इसे संभाल लेगी. लेकिन उसको बिल्कुल यह अंदेशा नहीं था कि भारत ईंट का जवाब पत्थर से देगi और चीन के विरुद्ध एक गंभीर मुहिम छेड़ देगा. भारत ने मजबूती के साथ चीनी आक्रामकता का प्रतिकार किया है.

महामारी के एक वर्ष में दुनिया की शक्ल और अक्ल में बहुत बदलाव आ चुका है. अमेरिका में नये राष्ट्रपति और पार्टी का शासन आना तथा चीन-अमेरिका संबंधों की नये सिरे से व्याख्या भारत की सुरक्षा के लिए उतना अहम नहीं है. भारत अपने बूते पर अपनी सुरक्षा करने के लिए सक्षम है और उसे ही यह करना है. आतंकवाद और चीन के मसले पर दुनिया की प्राथमिकताएं बदल सकती हैं, लेकिन भारत की नहीं. इसलिए अपने पड़ोसी देशों को इस दोहरे खतरे से बचाने के लिए भारत को हर मुमकिन प्रयास करने होंगे. भारत के पास दमखम है. दुनिया एक बदले और बदलते हुए भारत को देख रही है, जो आनेवाले समय में विश्व व्यवस्था में एक अहम भूमिका के लिए तैयार हो रहा है. दक्षिण एशिया के देशों को भी यह समझना पड़ेगा कि भारत के बिना न तो उनकी सुरक्षा संभव है और न ही आर्थिक विकास.

(ये लेखक के निजी विचार हैं)

Posted by: Pritish Sahay

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