रांची : 20 वर्षों में झारखंड में अस्पतालों की संख्या बढ़ी, बेड की संख्या बढ़ी, पर बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं आज भी रांची, बोकारो, जमशेदपुर व धनबाद जैसे प्रमुख शहरों तक ही सीमित हैं. शेष शहरों और खासकर ग्रामीण इलाकों की स्वास्थ्य व्यवस्था टीकाकरण से लेकर सामान्य इलाज तक ही सीमित है.
अन्य जिलों के सरकारी अस्पताल िसर्फ रेफरल अस्पताल बनकर रह गये हैं, जो थोड़ी भी गंभीर स्थिति आने पर मरीजों को रिम्स, एमजीएम या पीएमसीएच जैसे मेडिकल कॉलेजों में रेफर करते हैं. पीएचसी से लेकर सीएचसी तक भी रेफरल अस्पताल की हालत में ही हैं.
अस्पतालों में एक्स-रे, एमआरआइ और सीटी स्कैन जैसी सुविधाएं तो हैं, लेकिन इनका इस्तेमाल कम ही होता है. ग्रामीण इलाकों में पीएचसी व अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में डॉक्टर ढूंढ़े नहीं मिलते. हां! नर्स जरूर मिलती हैं, जिन पर इंजेक्शन लगाने से लेकर मरहम-पट्टी करने तक का भार होता है.
20 वर्षों के दौरान झारखंड में स्वास्थ्य के क्षेत्र में आधारभूत संरचना का निर्माण तो हुआ है, लेकिन अब भी इसमें कई कमियां बतायी जा रही हैं. राज्य में सदर अस्पताल, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसी), कम्युनिटी हेल्थ सेंटर (सीएचसी) और हेल्थ सब सेंटर की संख्या भी जरूरत के मुकाबले कम है.
राज्य में कुछ वर्ष पूर्व तक तीन मेडिकल कॉलेज (रांची में रिम्स, जमशेदपुर में एमजीएम और धनबाद में पीएमसीएच) थे. इधर, तीन और नये मेडिकल कॉलेज हजारीबाग, दुमका और पलामू में बन गये हैं. देवघर में एम्स भी खोलने की तैयारी है. इन सब मेडिकल कॉलेजों से प्रतिवर्ष 730 डॉक्टर निकलेंगे. इन सभी अस्पतालों में एक वर्ष में 1.50 करोड़ से अधिक मरीजों का इलाज करने की क्षमता है.
झारखंड के सुदूर ग्रामीण इलाकों में डॉक्टरों को पदस्थापित तो किया जाता है, लेकिन वे या तो अस्पताल नहीं जाते हैं या फिर नौकरी ही छोड़ देते हैं. राज्य में नर्सों की भी भारी कमी है. इसके बाद भी 3958 स्वास्थ्य उपकेंद्र केवल नर्सों के भरोसे हैं. राज्य में नार्म्स के अनुसार 14 हजार नर्सों की जरूरत है, जबकि करीब 10 हजार नर्स ही कार्यरत हैं.
देश की तुलना में झारखंड अब भी काफी पीछे है. पूरे देश में जहां 1324 लोगों के इलाज के लिए एक डॉक्टर हैं. वहीं, झारखंड में 8165 व्यक्ति पर एक डॉक्टर है. राज्य के एक अस्पताल पर 65832 लोगों के इलाज का भार है. राज्य के सरकारी अस्पतालों में कुल बेड की संख्या 11184 है, जो वर्ष 2001 की तुलना में दोगुना से अधिक है. वर्ष 2001 में 5969 बेड थे. झारखंड में 2947 की आबादी पर एक बेड है. डब्ल्यूएचओ के अनुसार प्रति हजार की आबादी पर औसतन 1.5 बेड होना चाहिए.
राज्य में 20 वर्षों में आरएमसीएच को बदलकर रिम्स बना दिया गया. यह राज्य का सबसे बड़ा अस्पताल कहलाता है. यहां कैंसर, हृदय रोग, किडनी रोग जैसी बीमारियों के उपचार की सुविधा दी गयी. पूर्व में ऐसे इलाज के लिए दूसरे राज्य पर निर्भर रहना पड़ता था. निजी क्षेत्र में भी कई सुपर स्पेशियालिटी अस्पताल खुले हैं, जिससे दूसरे राज्यों पर निर्भरता कम हुई है.
सदर अस्पताल 24 23
पीएचसी 1376 330
सीएचसी/
रेफरल अस्पताल 344 188
हेल्थ सब सेंटर 8813 3958
इंडिकेटर वर्ष 2001 में वर्ष 2020 में
शिशु मृत्यु अनुपात/हजार(आइएमआर) 72 30
मातृ मृत्यु अनुपात/लाख(एमएमआर) 400 71
प्रजनन दर/माता(टीएफआर) 4.4 2.5
संपूर्ण टीकाकरण 8.8प्रतिशत 61.9 प्रतिशत
सांस्थानिक प्रसव 13.9 प्रतिशत 61.9 प्रतिशत
अस्पताल(सरकारी) 4530
सरकारी डॉक्टर(नियमित व अनुबंध) 3419
नर्स 1287
बेड 11184
– आरएमसीएच बदल कर रिम्स बना, तीन नये मेडिकल कॉलेज खुले, एक एम्स बनाने की तैयारी
– टीकाकरण का प्रतिशत बढ़ा, अस्पतालों में प्रसव की सुविधा बढ़ी, एंबुलेंस 108 सेवा शुरू की गयी
– राज्य के सरकारी मेडिकल कॉलेजों एवं अस्पतालों में नर्सिंग और एमबीबीएस की सीटें बढ़ायी गयीं
20 वर्षों में ये नहीं हो सका :::::::::::::
– इटकी में मेडिकल सिटी की स्थापना अब तक नहीं हो सकी
– मेडिकल यूनिवर्सिटी बनाने की योजना अब तक अधर में
– गांवों के अस्पतालों में डॉक्टर की उपस्थिति सुनिश्चित करना
कैटगरी वर्ष 2001 में वर्ष 2020 में
जिला अस्पताल 12 23
सब डिवीजनल अस्पताल 09 13
मेडिकल कॉलेज 03 06
रेफरल अस्पताल 31 60
एंबुलेंस सेवा नहीं 108 शुरू हो गयी
अॉनलाइन इलाज नहीं शुरू हो गया
posted by : sameer oraon