रांची : विधानसभा के विशेष सत्र में बुधवार को सरना आदिवासी धर्म कोड पर सदन एकमत दिखा. पक्ष-विपक्ष ने सरकार की पहल की सराहना की. साथ ही इसमें संशोधन का प्रस्ताव दिया. पक्ष-विपक्ष के नेताओं ने चर्चा के दौरान आदिवासी हक की बात उठायी. चर्चा के बाद मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने संशोधन का प्रस्ताव रखा, जिसे सर्वसम्मति से पारित किया गया.
भाजपा नेता नीलकंठ सिंह मुंडा ने सरकार की ओर से सरना धर्म कोड को लेकर सरकार की ओर से लाये गये प्रस्ताव की सराहना की. उन्होंने कहा कि सरकार के संकल्प में आदिवासी/ सरना धर्म कोड की बात कही गयी है. इसे सीधे तौर पर आदिवासी सरना धर्म कोड होना चाहिए.
इसमें ऑब्लिक लगाने का कोई औचित्य नहीं है. उन्होंने कहा आदिवासियों की जनसंख्या का प्रतिशत घट जाना चिंता का विषय है. 1871 से 1951 तक जनगणना में आदिवासियों का अलग धर्म कोड का कॉलम था. 1961 में इसे कांग्रेस की सरकार ने हटा दिया. अगर यह नहीं हटाया गया होता तो आज यह नौबत नहीं आती. श्री मुंडा ने कहा कि सरकार ने हड़बड़ी में संकल्प लाया है.
चुनाव के समय इसकी घोषणा की गयी. भाजपा जब-जब सरकार में रही है, आदिवासियों की चिंता करने का काम किया है. कांग्रेस पार्टी के सदस्यों को इस पर बोलने का कोई हक नहीं है.
माले विधायक विनोद सिंह ने कहा कि यह विषय आदिवासी धर्मावलंबियों की पहचान, अस्तित्व और आस्था से जुड़ा हुआ है. आदिवासियों की जनसंख्या कम होना चिंता का विषय है. सरकार को इस पर ध्यान देने की जरूरत है.
सदन में सरना धर्म कोड के चर्चा के दौरान मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने विपक्ष को कई बार घेरा़ विपक्ष पर कटाक्ष करते हुए कहा : राज्य की दुर्गति किये हुए थे़ 17-15 साल में राज्य की एक बड़ी आबादी आदिवासियों के बारे में कभी नहीं सोचा़ इस तरह का निर्णय नहीं लिया़ राज्य के लोगों ने झारखंडियों की सरकार बनायी़
अब उधर बैठक कर हल्ला कर रहे है़ं उपचुनाव में भी अपना नतीजा देख लिया़ अब पांच साल तक आराम कीजिए़ मुख्यमंत्री ने विपक्ष की टोका-टाकी के बाद कहा कि ये सरकार लाठी-डंडा वाली नहीं है़ जनभावना से सरकार चल रही है़
पिछली सरकार में 353 का दुरुपयोग किया़ आवाज उठाने वालों पर 353 लगाया़ इस सरकार में टाना भगत, पुलिसकर्मी, शिक्षक सभी आंदोलन किये़ अपनी मांगें रखी. एक आदमी पर भी केस नहीं किया गया़ उद्दंडता करेंगे, तो 353 भी लगेगा़
मुख्यमंत्री ने कहा कि अभी बहुत कुछ सामने आयेगा़ इंटरनेट से किस तरह दुरुपयाेग कर रहे है़ं मोबाइल का डाटा चुरा रहे है़ं सब सामने आयेगा़ देश को किस दिशा में ले जा रहे है़ं इस कुकृत्य पर पूरे देश में चिंता है़ एक सीढ़ी चढ़े हैं, दूर तक जाना है, एक सीढ़ी चढ़े है़ं कई पायदान बाकी है़ं
राज्यपाल ने निर्णय लिया है, संवैधानिक पद है, कुछ कहा नहीं जा सकता : सदन में चर्चा के दौरान पक्ष-विपक्ष के विधायकों का कहना था कि सरना धर्म कोड को लेकर ट्राइबल एडवाजरी काउंसिल में भी चर्चा होनी चाहिए़ अपनी बात रखते हुए मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा कि टीएसी का गठन नहीं हो पाया है़ इसमें कुछ तकनीकी कारण है़ राज्यपाल ने टीएसी को लेकर कुछ निर्णय लिए है़ं वह संवैधानिक पद पर है़ उनके पद की गरिमा है़ इस पर कुछ कहा नहीं जा सकता है़ सरकार इसको संवैधानिक तरीके से ही देखेगी़
विधायक बंधु तिर्की ने कहा कि सरकार ने आदिवासी सरना धर्मावलंबियों की पहचान को लेकर सार्थक पहल की है. इतिहास में इसे याद रखा जायेगा. आदिवासियों की वर्षों पुरानी मांग को विशेष सत्र में लाकर पारित कराने का प्रस्ताव सराहनीय है. उन्होंने कहा कि सरना धर्म कोड का प्रस्ताव पारित होना चाहिए. इसमें आदिवासी को जोड़ने का कोई औचित्य नहीं है. श्री तिर्की ने सुप्रीम कोर्ट फैसलों और कई पुस्तकों का उल्लेख करते हुए कहा कि इसमें सरना धर्म कोड का ही उल्लेख है.
झामुमो विधायक दीपक बिरुवा ने कहा की सरना धर्म कोड को लेकर वर्षों से मांग की जा रही है. देश के पांचवीं अनुसूची वाले राज्यों में 10 करोड़ आदिवासी समुदाय के लोग हैं, इनकी पहचान जरूरी है. जनगणना में सरना धर्म कोड का कॉलम नहीं रहने से संवैधानिक संकट उत्पन्न हो गया है. 1951 तक जनगणना में आदिवासियों का अलग धर्म कोड का कॉलम था. राज्य सरकार को केंद्र पर दबाव बनाने के लिए पांचवीं अनुसूची वाले राज्यों के टीएसी की बैठक बुलानी चाहिए.
आजसू विधायक लंबोदर महतो ने कहा कि पार्टी सरना धर्म कोड को लेकर सरकार की ओर से लाये गये प्रस्ताव का समर्थन करती है. उन्होंने कहा कि इस प्रस्ताव को मॉनसून या बजट सत्र में लाकर विस्तार से चर्चा करनी चाहिए थी. आदिवासी समुदाय समाज के लाखों लोग धर्मांतरण कर ईसाई बन चुके हैं.
posted by : sameer oraon