रांची : यदि भारत सरकार 30 नवंबर तक सरना धर्म कोड की मान्यता की घोषणा नहीं करती है या इस संबंधी वार्तालाप शुरू नहीं करती है, तो छह दिसंबर को राष्ट्रव्यापी रेल-रोड चक्का जाम तय है. यह घोषणा आदिवासी सेंगेल अभियान के राष्ट्रीय अध्यक्ष, पूर्व सांसद सालखन मुर्मू ने प्रेस क्लब में की. वे रविवार को आदिवासी सेंगेल अभियान, केंद्रीय सरना समिति और अखिल भारतीय आदिवासी विकास परिषद की झारखंड, बंगाल, बिहार, ओडिशा और असम के सक्रिय प्रतिनिधियों के साथ सरना धर्म कोड को अविलंब मान्यता विषय पर चर्चा में बोल रहे थे.
उन्होंने कहा कि आदिवासियों को धार्मिक न्याय और अधिकार देने के लिए देश को दो महीनों के भीतर एक नया राष्ट्रीय संकल्प लेने की जरूरत है, ताकि 2021 की जनगणना में सरना धर्म कोड के साथ आदिवासी भी शामिल हो सकें. उन्हे अनुच्छेद 25 के तहत बाकी नागरिकों की तरह धार्मिक न्याय और अधिकार मिल सके. उन्होंने बाकी सभी आदिवासी नेताओं व संगठनों से आग्रह किया कि वे नाम के पचड़े में न पड़ें , क्योंकि सबका लक्ष्य एक है. इसलिए सबको छह दिसंबर के राष्ट्रव्यापी रेल-रोड चक्का जाम के लिए अपनी सहमति और सहयोग देना चाहिए.
केंद्रीय सरना समिति के केंद्रीय अध्यक्ष फूलचंद तिर्की ने कहा कि आदिवासी अपने अस्तित्व, पहचान, भाषा, संस्कृति और अपने अधिकारों के लिए लंबे समय से सरना धर्म कोड की लड़ाई लड़ रहे हैं. सरना कोड के लेकर ही सबसे ज्यादा आंदोलन हुए है, जिसके कारण पूरे देश के आदिवासी जागरूक हुए हैं और आदिवासी सड़क से लेकर सदन तक आंदोलन कर रहे हैं.
रांची. नेशनल फोरम ऑफ एसटी-एससी एंड ओबीसी कम्युनिटी ने सरना धर्म कोड का समर्थन किया है. कम्युनिटी के कार्यकारिणी की बैठक रविवार को डॉ सहदेव राम की अध्यक्षता में हुई. डॉ राम ने कहा कि आज जो परिस्थिति है, उसमें लोगों को एक दूसरे के धर्म का सम्मान करना चाहिए.
ऐसा नहीं करेंगे तो लोकतंत्र की परिभाषा बदल जायेगी. उन्होंने कहा कि हेमंत सरकार एससी-एसटी समुदाय के लिए अच्छा प्रयास कर रही है. झारखंड ही नहीं देश के आदिवासी सरना को अलग धर्म कोड देने की मांग कर रहे हैं. बैठक में पूर्व सिविल सर्जन डॉ शिव शंकर, शत्रुध्न राम, द्वारिका दास, मुख्तार मोहम्मद, मीरा कुमारी, पूनम महता आदि ने भी विचार रखे.
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