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अपना चुनाव और उनका चुनाव

बिहार का इतिहास है कि वह कभी हारता नहीं. यह आग्रह ही बिहार के समाज को अलग खड़ा करता है. मुश्किल हालात में बिहार ने ही रास्ता दिखाया है.

आशुतोष चतुर्वेदी, प्रधान संपादक, प्रभात खबर

ashutosh.chaturvedi@prabhatkhabr.in

चुनाव किसी भी लोकतंत्र का आधार-स्तंभ होता है. हर चुनाव लोकतंत्र को समृद्ध कर जाता है. लोकतांत्रिक व्यवस्था ने सत्ता परिवर्तन को सहज कर दिया है. भारत में चुनाव कुंभ के मेले सरीखे हैं, जिसमें हर रंग मौजूद हैं. कोरोना काल में एक ओर जहां बिहार में चुनाव हो रहे हैं, तो दूसरी ओर अमेरिका में भी राष्ट्रपति का चुनाव है. भारत पर नजर डालें, तो चुनाव की इतनी व्यापकता एवं विविधता की मिसाल दुनियाभर में कहीं नहीं है. कोरोना से जूझती दुनिया में बिहार देश का पहला प्रदेश है जो कोरोना को पराजित करते हुए लोकतंत्र के पर्व में शामिल हो रहा है.

कुछ अन्य प्रदेशों में भी उपचुनाव हो रहे हैं. लेकिन जिसे सही मायनों में चुनाव कहें, तो वे बिहार में ही हो रहे हैं. बिहार में चुनाव तीन चरणों में हैं और पहले चरण के लिए मतदान सकुशल संपन्न हो गया. पहले चरण में मतदाताओं के उत्साह के आगे कोरोना का भय फीका पड़ गया. चुनाव आयोग के अनुसार, पहले चरण की 71 सीटों पर 54.26 फीसदी मतदान हुआ, जबकि 2015 के विधानसभा चुनाव में इन सीटों पर 54.75 फीसदी मतदान हुआ था. दो चरण अभी बाकी हैं. सबके अपने-अपने कयास हैं. नतीजों को लेकर नेताओं और पार्टी समर्थकों की धड़कनें तेज हैं.

कोरोना काल की बंदिशों के कारण ये चुनाव सभी दलों के लिए चुनौतीपूर्ण हैं. चुनाव आयोग के लिए भी यह कड़े इम्तिहान सरीखा है. हर पार्टी के लिए चुनाव प्रतिष्ठा का प्रश्न होते हैं और पार्टियां पूरी ताकत झोंक कर उसे जीतने की कोशिश करती हैं. यही वजह है कि सभी राजनीतिक दल अपने चुनावी अस्त्रागार में से किसी अस्त्र को दागने से नहीं चूकते हैं. अंतिम दौर तक आते-आते बात मुद्दों तक नहीं रह जाती. आखिर में हर चुनाव में नेताओं की बयानबाजी राजनीतिक मर्यादा को तार-तार कर देती है. बिहार भी इससे कुछ अलग नहीं है. इसमें दो राय नहीं है कि बिहार का इतिहास है कि वह कभी हार नहीं मानता.

जीवन में प्रयोग का आग्रह ही बिहार के समाज को अलग खड़ा करता है. जब-जब समाज के सामने मुश्किल हालात पैदा हुए, बिहार ने रास्ता दिखाया है. आज भी बड़े लेखक, विचारक, प्रशासक और मेधावी युवक उपलब्ध कराने का सिलसिला जारी है. बिहार के पास युवा आबादी है, हुनर है. लेकिन विकास के पहिये को और तेजी से आगे ले जाने की जरूरत है. बिहार अपनी अनेक बुनियादी समस्याओं को हल नहीं कर पाया है.

कई क्षेत्रों में उल्लेखनीय उपलब्धि के बावजूद बिहार प्रति व्यक्ति आय के मामले में पिछड़ा हुआ है. बिहार अब भी शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली और पानी की समस्या से जूझ रहा है. बिहार के अधिकतर लोग कृषि से जीवनयापन करते हैं. राज्य का एक बड़ा इलाका साल-दर-साल बाढ़ में डूबता आया है. कोसी और सीमांचल के इलाके को बाढ़ से आज भी मुक्ति नहीं मिल पायी है.

बिहार और अमेरिकी चुनाव में कोई साम्य नहीं है. एक राज्य का चुनाव है, तो दूसरा देश के राष्ट्रपति का. दुनिया के सबसे पुराने लोकतंत्र अमेरिका में राष्ट्रपति के चुनाव के लिए 3 नवंबर को मत डाले जायेंगे. अमेरिका में चुनावों की प्रक्रिया लंबी होती है. इसमें पार्टी के अंदरूनी अधिवेशनों और प्राइमरीज के जरिये पहले उम्मीदवारों का चयन होता है. संविधान के अनुसार मतदान के लिए 3 नवंबर महीने का पहला मंगलवार तय है. इस बार यह तिथि तीन नवंबर है. नये राष्ट्रपति के शपथ ग्रहण का दिन 20 जनवरी निर्धारित है.

कोरोना के कारण अमेरिका में कई मौतें हुई हैं, बावजूद इसके चुनावी सरगर्मियां खासी तेज हैं. मौजूदा राष्ट्रपति और रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप और डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार जो बाइडेन के बीच कड़ा मुकाबला है. ट्रंप अपने भाषणों और ट्वीट से चुनावी माहौल को गर्माये हुए हैं. अमेरिका में मतदान के तत्काल बाद मतगणना शुरू हो जाती है. अभी तक लगभग सात करोड़ मतदाता शुरुआती मतदान में अपना वोट डाल चुके हैं. इनमें से लगभग 4.5 करोड़ वोट डाक के जरिये डाले गये हैं और 2.5 करोड़ चुनावी कार्यालयों में जाकर डाले गये हैं. राष्ट्रपति ट्रंप भी अपने मताधिकार का प्रयोग कर चुके हैं.

अमेरिकी चुनाव का एक और दिलचस्प पहलू यह है कि अगर आपने शुरुआत में वोट डाल दिया है, तो कुछ राज्यों में इसे बदलने की सुविधा भी उपलब्ध है. राष्ट्रपति ट्रंप ने एक ट्वीट में कहा कि उन्हें पता चला है कि कई लोग जो शुरुआती मतदान की सुविधा का फायदा उठा कर अपना मत डाल चुके हैं और अब वे अपना वोट बदलना चाहते हैं. ट्रंप ने कहा कि अधिकतर राज्यों में मतदाता ऐसा कर सकते हैं. विशेषज्ञों का मानना है कि राष्ट्रपति ट्रंप के ट्वीट के बाद स्थिति जटिल हो सकती है. दरअसल, वोट बदलने की सुविधा कुछ ही राज्यों में उपलब्ध है और उन राज्यों में भी अलग-अलग नियम हैं.

विस्कोन्सिन में मतदाता तीन बार अपना वोट बदल सकते हैं, जबकि कनेक्टिकट में यह स्थानीय अधिकारियों की अनुमति पर निर्भर करता है. कुछ राज्यों में वोट एक तय तारीख तक ही बदला जा सकता है, जबकि कुछ अन्य राज्यों में ऐसा मतदान के दिन तक किया जा सकता है. पहले से ही यह अंदेशा जताया जा रहा है कि अगर ट्रंप चुनाव हार गये, तो संभव है कि वे और उनके समर्थक इसे आसानी से स्वीकार न करें और सत्ता हस्तांतरण में अवरोध पैदा कर दें. ट्रंप से जब भी इस बारे में सवाल किया गया है, तो उन्होंने कभी इसका स्पष्ट जवाब नहीं दिया है. हर देश में चुनाव की प्रक्रिया अलग होती है और हम उनके अनुभवों से फायदा उठा सकते हैं.

हमारी संसदीय व्यवस्था ब्रिटेन से बहुत मेल खाती है. मुझे बीबीसी विश्व सेवा में कार्य करने के दौरान ब्रिटेन में रहने का मौका मिला था. उस दौरान हुए संसदीय चुनाव में मतदान का भी मौका मिला था. आपको जानकर आश्चर्य होगा कि ब्रिटेन में रह रहे राष्ट्रमंडल देशों के नागरिकों को भी स्थानीय और संसदीय चुनावों में वोट देने का अधिकार प्राप्त है, इसलिए एक भारतीय होने के बाद भी मैं वहां वोट डाल पाया.

ब्रिटेन में चुनाव अभियान फीका जरूर होता है, मगर वह संजीदा होता है. विशाल सभाएं नहीं होती हैं और न ही जगह-जगह पोस्टर-बैनर लगाये जाते हैं. अधिकतर अभियान मीडिया के जरिये होता है. अखबारों में विज्ञापन छपते हैं, रेडियो और टीवी पर जमकर बहस होती है. मतदान के दिन छुट्टी नहीं होती और मतदान केंद्रों के सुबह आठ बजे से रात नौ बजे तक खुले रहने से आप नौकरी से वापस आकर भी मतदान कर सकते हैं.

Posted by: Pritish Sahay

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