झारखंड के लोकायुक्त जस्टिस डीएन उपाध्याय ने कहा कि भ्रष्ट अफसरों के खिलाफ जांच की प्रक्रिया जटिल है. जब तक आरोपी अफसर के खिलाफ कार्रवाई की बात आती है, तब तक वह रिटायर हो चुका होता है. पेयजल एवं स्वच्छता विभाग के मुख्य अभियंता रहे सज्जाद हसन का मामला इसका उदाहरण है. ऐसे में आम आदमी कैसे भ्रष्ट अफसरों के खिलाफ जांच के लिए आगे आयेगा? श्री उपाध्याय गुरुवार को अपने कार्यालय में प्रेस से बात कर रहे थे.
भ्रष्ट अफसरों पर कार्रवाई की जटिलता के संबंध में लोकायुक्त ने कहा : स्थिति यह है कि जब कोई आम आदमी हिम्मत कर लोकायुक्त कार्यालय में किसी भ्रष्ट अफसर के खिलाफ शिकायत करता है, तो उसकी पीई दर्ज कर जांच के लिए एंटी करप्शन ब्यूरो को दिया जाता है. वह पीई दर्ज करने के लिए फिर राज्य सरकार के निगरानी विभाग से अनुमति मांगता है. कई बार पत्राचार करता है.
एक से डेढ़ साल बाद उसे पीई दर्ज करने की अनुमति मिलती है. फिर एसीबी चार-पांच साल में प्रारंभिक जांच पूरी करता है. फिर साक्ष्य के आधार पर आरोपी लोकसेवक के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने की अनुमति मांगता है. अनुमति मिलने और पूर्ण रूप से जांच पूरी होने में ही नौ से दस साल का वक्त लग जाता है. फिर सुनवाई की प्रक्रिया शुरू होती है. जब आरोपी अफसर के खिलाफ कार्रवाई की बात आती है, तब संबंधित विभाग जानकारी देता है कि उक्त आरोपी अफसर सेवानिवृत्त हो चुका है. इसलिए भ्रष्ट अफसरों के खिलाफ वर्षों पुरानी जांच की जटिल प्रक्रिया को समाप्त किया जाना चाहिए,
श्री उपाध्याय ने कहा : लोग भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए आगे आयें, इसके लिए सतर्कता जागरूकता सप्ताह मनाया जा रहा है. मुख्यमंत्री ट्विटर पर ही आदेश जारी करते हैं और संबंधित अफसर तत्काल कार्रवाई कर रिपोर्ट करता है. यह त्वरित कार्रवाई का अच्छा जरिया है. राज्य में भ्रष्ट अफसरों पर कार्रवाई के लिए लोकायुक्त कार्यालय सर्वोच्च स्वतंत्र संस्था है. यह संस्था निष्पक्षता के साथ समय पर काम करे, इसके लिए इसे मौका दिया जाना चाहिए. वहीं, भ्रष्ट अफसरों की जांच में विलंब करने वाले अफसरों पर भी सरकार को कार्रवाई करनी चाहिए. क्योंकि वे कहीं न कहीं भ्रष्ट अफसरों की जांच में विलंब कर उन्हें मदद करते हैं.
50 साल पुरानी नियमावली पर लोकायुक्त कार्यालय काम कर रहा है. फरवरी 2020 में नयी नियमावली तैयार कर राज्य सरकार के पास भेजा गया था. इसमें पुरानी त्रुटियों को दूर कर वर्तमान समय को ध्यान में रखा गया था.
इस पर क्या कार्रवाई हुई, इसकी जानकारी तक हमलोगों को नहीं दी गयी. इसी तरह लोकायुक्त कार्यालय के स्टाफ का 10 साल से प्रोन्नति संबंधी नियमावली का है. तीन माह से इस पर कोई निर्णय लिये जाने की सूचना नहीं है. एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि लोकायुक्त कार्यालय को किसी मामले की जांच के लिए दूसरे संस्था पर आश्रित रहना पड़ता है.
posted by : sameer oraon