International Internet Day, History, Significance : आज अंतरराष्ट्रीय इंटरनेट डे है. 29 अक्टूबर 1969 को दुनिया में इंटरनेट की शुरुआत हुई थी, इसलिए वर्ष 2005 से हर साल इस दिन इंटरनेट डे मनाया जाता है. 2016 में इसी दिन पूरी दुनिया में अंतरराष्ट्रीय इंटरनेट डे मनाया गया था. इंटरनेट ने हमारी जिंदगी आसान और मनोरंजक बना दी है, तभी तो दुनिया का हर शख्स किसी न किसी तरह से इंटरनेट पर निर्भर है.
कितना जरूरी है इंटरनेट?
कोरोना महामारी के दौर में जब पूरी दुनिया घरों में कैद हो गयी थी, तो इंटरनेट लोगों की लाइफलाइन बन गया. करोड़ों लोगों के लिए घरों से काम करने, मेडिकल सेवाएं देने और एक दूसरे से जुड़े रहने का एकमात्र जरिया इंटरनेट ही था. कहना गलत नहीं होगा कि कोरोना काल ने इंटरनेट पर हमारी निर्भरता को उजागर कर दिया.
कहते हैं आंकड़े
आज की तारीख में दुनिया की आबादी लगभग 800 करोड़ है. इनमें से करीब 460 करोड़ लोग इंटरनेट चला रहे हैं. और इनमें से 70 करोड़ भारत में हैं. रिपोर्ट्स के मुताबिक, कोरोना काल में लोग इंटरनेट पर ज्यादा वक्त बिताने लगे हैं. इंटरनेट यूजर्स का स्क्रीन टाइम लगभग एक घंटे बढ़ गया है. आज हम हर दिन औसतन 7 घंटे इंटरनेट पर बिता रहे हैं.
सालभर में बढ़े 32 करोड़ इंटरनेट यूजर्स
इंटरनेट पर हमारी निर्भरता दिनोंदिन कैसे बढ़ती जा रही है, इस बात की तस्दीक कुछ आंकड़े करते हैं, जो हम आपके लिए लाये हैं. बीते 1 साल में दुनियाभर में 32 करोड़ यानी 7.4 प्रतिशत इंटरनेट यूजर्स बढ़े हैं, जबकि इस दौरान दुनिया की आबादी 1 प्रतिशत बढ़ी. जुलाई से सितंबर के बीच 18 करोड़ लोग सोशल मीडिया से जुड़े. हर दिन का हिसाब लगाएं, तो लगभग 20 लाख.
ज्यादातर यूजर्स की उम्र 16 से 64 के बीच
भारत की बात करें, तो देश में एक साल में इंटरनेट यूजर्स की संख्या में 23 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई. आंकड़ों की मानें, तो ज्यादातर इंटरनेट यूजर्स की उम्र 16 से 64 साल के बीच है. कुल यूजर्स में से 91 प्रतिशत मोबाइल पर इंटरनेट चलाते हैं, जबकि बाकी लोग कंप्यूटर या दूसरे डिवाइसेज पर इंटरनेट यूज करते हैं. आज के समय में इंटरनेट कितना जरूरी हो गया है, इस बात का अंदाजा आप इसी बात से लगा लीजिए कि दुनियाभर में हर सेकेंड 14 लोग इंटरनेट से जुड़ रहे हैं.
इंटरनेट की शुरुआत कैसे हुई?
इंटरनेट की शुरुआत साल 1969 में तब हुई थी, जब अमेरिका में सेना के लिए एक कंप्यूटर नेटवर्क तैयार किया गया था ताकि परमाणु युद्ध शुरू होने की स्थिति में जानकारी ली और दी जा सके. तब इंटरनेट अरपानेट ARPANET (Advanced Research Projects Agency Network) के रूप में जाना जाता था. 29 अक्टूबर 1969 को प्रोफेसर लियोनार्ड क्लीनरोक की देखरेख में कार्य कर रहे छात्र और प्रोग्रामर चार्ली क्लाइन (Charley Kline) ने पहली बार इलेक्ट्रॉनिक संदेश भेजा किया. यह संदेश अमेरिका के रक्षा मंत्रालय के द्वारा यूसीएलए UCLA (University of California, Los Angeles) और स्टैनफोर्ड अनुसंधान संस्थान कंप्यूटर्स की नेटवर्किंग करके भेजा गया.