त्योहारों के इस मौसम में बाजारों का गुलजार होना महामारी से हलकान अर्थव्यवस्था के लिए अच्छी खबर है. नवरात्रि में उपभोक्ता बाजार में खुदरा बिक्री में पिछले साल की तुलना में न केवल बढ़ोतरी देखी गयी, बल्कि वृद्धि दर भी दो अंकों में है. यह अर्थव्यवस्था के पटरी पर आने की प्रक्रिया की शुरूआत का तो संकेत है ही, इससे यह भी इंगित होता है कि उपभोक्ताओं का भरोसा बढ़ने लगा है.
जहां कुछ कंपनियों की कारों की बिक्री 20 से 28 फीसदी बढ़ी है, वहीं स्मार्टफोन, टेलीविजन, फ्रीज, माइक्रोवेव ओवन, एअर कंडीशनर, वाशिंग मशीन आदि जैसी वस्तुओं में तो यह बढ़त 25 से 71 फीसदी के बीच रही है. कंपनियों और विक्रेताओं को भरोसा है कि उपभोक्ताओं की मांग नवंबर से लेकर जनवरी तक इसी गति से बनी रहेगी. महामारी पर अंकुश लगाने के उपायों में बहुत हद तक छूट दी जा चुकी है तथा कारोबारी और कामकाजी गतिविधियां रफ्तार पकड़ने लगी हैं.
इससे लॉकडाउन की मुश्किलों और आकांशाओं में भी बड़ी कमी आयी है तथा रोजगार और आमदनी में भी सुधार होने लगा है. विभिन्न उत्पादों पर छूट तथा आकर्षक ब्याज दरों पर ऋण की उपलब्धता से भी स्थिति सुधारने में मदद मिली है. लेकिन इसका सबसे अहम पहलू यह है कि उपभोक्ताओं की खरीद यह बताती है कि उन्हें आर्थिकी के बेहतर होने की उम्मीद है. यह इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि रोजाना की जरूरत से जुड़ी अनेक चीजों के दाम बढ़े हैं और मुद्रास्फीति की दर बढ़ी हुई है. उद्योग, उत्पादन और मांग से संबंधित सितंबर के आंकड़े भी उत्साहवर्द्धक हैं.
सितंबर में मैनुफैक्चरिंग, औद्योगिक गतिविधियों, निर्यात, वाहनों की खरीद जैसे प्रमुख मानकों में तेज उछाल दर्ज की गयी है. हालांकि ऋण की मांग में बढ़ोतरी अभी भी औसत गति से हो रही है, लेकिन सितंबर के आखिरी दिनों में इसमें भी वृद्धि के रूझान हैं. इन तथ्यों को यदि नवरात्रि की खरीद-बिक्री के साथ रखकर देखें, तो साफ जाहिर होता है कि अक्टूबर के आंकड़े और भी बेहतर होंगे. उल्लेखनीय है कि लॉकडाउन की वजह से उत्पादन भी ठप पड़ गया था और रोजगार में भारी गिरावट के कारण मांग भी थम गयी थी. ये विभिन्न आर्थिक गतिविधियां वृद्धि के लिए एक-दूसरे पर आश्रित हैं.
मांग बढ़ेगी, तो उत्पादन में तेजी आती है और रोजगार बढ़ता है. रोजगार से आमदनी आती है, जो मांग का आधार बनती है. सो, त्यौहार इस मनहूस कोरोना काल में खुशियों की सौगात लेकर आये हैं. इस महामारी से हमारी अर्थव्यवस्था के साथ विश्व के कई देशों की आर्थिकी भी संकटग्रस्त है और इसलिए वर्तमान वित्त वर्ष में सकल घरेलू उत्पादन के आंकड़े ऋणात्मक या शून्य के आसपास रह सकते हैं. इस संकट का असर कुछ हद तक अगले साल भी बरकरार रहने की आशंका है. ऐसे में भारतीय बाजारों में रौनक लौटने से विकास दर तेजी से बढ़ने की उम्मीदें और भी मजबूत हो गयी हैं.
Posted by: Pritish Sahay