डाॅ अश्विनी महाजन, एसोसिएट प्रोफेसर, डीयू
ashwanimahajan@rediffmail.com
केंद्र और राज्यों के बीच आम सहमति बनाते हुए, उनके लगभग सभी अप्रत्यक्ष करों को एक कर में समाहित कर जुलाई 2017 से जीएसटी लागू किया गया. जीएसटी लागू होने के बाद से ही इस कर से होनेवाले संपूर्ण राजस्व के दो बराबर हिस्से होते हैं, जिसमें एक हिस्सा केंद्र और दूसरा राज्यों के पास जाता है.
वित्त आयोग की सिफारिशों के आधार पर केंद्र के सभी करों में राज्यों का हिस्सा निश्चित होता है. वर्तमान में यह हिस्सा 42 प्रतिशत है. यानी जीएसटी की कुल प्राप्तियों में से 71 प्रतिशत हिस्सा राज्यों के पास जाता है. जिस समय जीएसटी प्रणाली लागू की गयी थी, राज्यों को अपने राजस्व घटने की चिंता थी. इसलिए कई राज्य जीएसटी लागू होने का विरोध कर रहे थे.
ऐसे में तत्कालीन वित्तमंत्री अरुण जेटली ने एक फॉर्मूला लागू किया. जिसके अनुसार, राज्यों को करों से जो आमदनी होती है, उसके आधार पर न केवल जीएसटी में राज्यों के हिस्से को सुनिश्चित किया जायेगा, बल्कि उनमें प्रतिवर्ष 14 प्रतिशत की वृद्धि की भी गारंटी होगी. ऐसी व्यवस्था पांच वर्ष तक चलेगी.
केंद्र सरकार का मानना था कि जीएसटी एक महत्वपूर्ण कर सुधार है और इससे न केवल कर एकत्रीकरण में कुशलता बढ़ेगी, बल्कि करों की चोरी भी रुकेगी. करों के कारण बिना वजह कीमत बढ़ने (कासकेडिंग इफेक्ट) जैसी स्थिति भी समाप्त होगी. यानी, कर राजस्व बढ़ने के साथ ही वस्तुओं की कीमतें भी घटेंगी. हालांकि जीएसटी को व्यवस्थित होते हुए थोड़ा समय लगा.
सरकार की अपेक्षा थी कि जीएसटी से हर महीने कुल प्राप्ति कम से कम एक लाख करोड़ रुपये होगी, जबकि दिसंबर 2019 तक यानी जीएसटी के 30 महीनों में सिर्फ नौ महीनों में ही एक लाख करोड़ या उससे ज्यादा की जीएसटी प्राप्त हुई. इस वजह से खासतौर पर वर्ष 2019 में, राज्यों की भरपाई के कारण केंद्र पर बोझ बढ़ गया. जीएसटी पर एक ‘सेस’ लगाकर केंद्र ने राज्यों के नुकसान की भरपाई का निश्चय किया.
वर्ष 2017-18 में यह भरपाई 41,146 करोड़ और 2018-19 में 69,275 करोड़ रही. वर्ष 2019-20 में हालांकि जीएसटी की औसतन प्राप्तियां लगभग एक लाख करोड़ रहीं, लेकिन राज्यों के राजस्व की भरपाई की अपेक्षा पिछले साल से भी ज्यादा हो गयी.
पिछले वर्ष का बकाया अभी बाकी ही था कि नये वित्त वर्ष 2020-21 के पहले ही माह से जीएसटी प्राप्तियां कोविड-19 महामारी के चलते नीचे जाने लगीं. अप्रैल में जीएसटी की कुल प्राप्ति 32,172 करोड़, मई में 62,152 करोड़, जून में 90,917 करोड़, जुलाई में 87,422 करोड़, अगस्त में 86,449 करोड़ और सितंबर में 95,480 करोड रुपये रही.
लेकिन केंद्र के वचन के अनुसार, राजस्व के नुकसान के बावजूद केंद्र पर राज्यों की भरपाई करने का दायित्व बना हुआ है. चूंकि केंद्र के पास भी राजस्व घटा है, ऐसे में वह भरपाई करने में स्वयं को असमर्थ पा रही है. इन्हीं परिस्थितियों में इसी 12 अक्तूबर को जीएसटी काउंसिल की बैठक संपन्न हुई, लेकिन इसका मतैक्य के साथ समाधान नहीं हो सका.
गौरतलब है कि चालू वित्त वर्ष में 2.35 लाख करोड़ के राजस्व की कमी रहेगी. केंद्र ने राज्यों को सुझाव दिया है कि वे इस कमी को पूरा करने के लिए उधार लेना शुरू करें, लेकिन सभी राज्यों में इस बाबत सहमति नहीं बन पायी है. केंद्र सरकार ने राज्यों को दो विकल्प दिये हैं. एक, राज्य राजस्व के नुकसान की भरपाई के लिए 1.1 लाख करोड़ का उधार लेंगे और उसके मूल और ब्याज दोनों की अदायगी भविष्य में विलासिता वस्तुओं एवं अवगुण वाली वस्तुओं पर लगाये जानेवाले क्षतिपूर्ति ‘सेस’ से की जायेगी. दूसरा, राज्य पूरे का पूरा नुकसान 2.35 लाख करोड़ का उधार लेंगे.
लेकिन उस परिस्थिति में मूल की अदायगी क्षतिपूर्ति ‘सेस’ से की जायेगी, लेकिन ब्याज के बड़े हिस्से की अदायगी उन्हें स्वयं करनी होगी. वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा है कि अधिकांश राज्य उधार लेने की प्रक्रिया आरंभ करने को तैयार हैं. केंद्र सरकार का कहना है कि यदि कोई राज्य उधार की प्रक्रिया शुरू करना चाहे तो न ही केंद्र सरकार और न ही जीएसटी काउंसिल उसे रोक सकती है.
जीएसटी काउंसिल की मानें तो जिन 21 राज्यों में भाजपा अथवा उनके गठबंधन की सरकारें हैं, वे 1.1 लाख करोड़ के ऋण विकल्प को स्वीकार करने को तैयार हैं. जबकि शेष 10 राज्यों ने इसे खारिज कर दिया है. इन 10 राज्यों के वित्त मंत्रियों का तर्क है कि इस प्रकार से उधार का विकल्प गैरकानूनी है, क्योंकि इससे राजस्व की भरपाई पांच वर्ष से आगे खिसक जायेगी, जो जीएसटी एक्ट के खिलाफ है.
वर्तमान में जब सभी प्रकार के राजस्व कम हो रहे हैं और केंद्र सरकार का राजस्व भी न्यूनतम स्तर पर पहुंच चुका है, ऐसे में केंद्र से यह उम्मीद करना कि राज्यों के राजस्व की क्षतिपूर्ति तुरंत हो सकेगी, सही नहीं होगा. पूर्व में भी राज्यों के जीएसटी के हिस्से की क्षतिपूर्ति ‘सेस’ के माध्यम से ही होती रही है. इस बार भी ऐसा करने में राज्यों को कोई नुकसान नहीं होगा.
केंद्र और राज्यों के बीच बढ़ती असहमति के बीच, केंद्र सरकार ने एक घोषणा की है, जिसके अनुसार राज्यों को 12 हजार करोड़ रुपये का बिना ब्याज का 50 वर्षीय ऋण उपलब्ध कराया गया है. जिसका उपयोग वे अपने राज्यों में पूंजीगत व्यय बढ़ाने के लिए कर सकते हैं. लाॅकडाउन और अर्थव्यवस्था पर पड़े प्रतिकूल प्रभाव के कारण उत्पन्न स्थितियों का सभी को मिलकर सामना करना होगा.
posted by : sameer oraon