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Bihar Assembly Election 2020: युवा आंदोलन से उपजी सरकारों ने उनकी उम्मीदों पर फेरा पानी

Bihar Assembly Election 2020: पढ़िए साहित्यकार व पद्मश्री उषा किरण खान का नजरिया.

Bihar Assembly Election 2020, News Update: समाज की सामूहिक चेतना की अभिव्यक्ति भी है चुनाव. चुनाव के जरिये यह संकेत मिलता है कि उस समाज की आकांक्षा क्या है. इस प्रक्रिया को किसी सरकार के बनाने और नहीं बनाने तक ही सीमित कर नहीं देखा जाना चाहिए. इसकी एक सांस्कृतिक अभिव्यक्ति भी होती है. चुनाव का यह ज्यादा मजबूत पक्ष है. इसी पक्ष पर पढ़िए साहित्यकार व पद्मश्री उषा किरण खान का नजरिया. बिहार इलेक्शन 2020 लाइव न्यूज़ से अपडेट रहने के लिए बने रहें हमारे साथ.

हम जैसी सरकार चाहते हैं, वैसी बनती नहीं है. सब कुर्सी के लिए मर रहे हैं. राजनीति इतनी गिर गयी है कि उस पर बात करना भी खुद को तनाव देना है. बस वोट दे आयेंगे, इस उम्मीद के साथ कि शायद रसातल में पहुंची राजनीति कुछ ऊपर उठ जाएं. पूरे देश में भले विधानसभा चुनाव की चर्चा है, बिहार में बुद्धिजीवी वोटरों का एक धड़ा ऐसा भी है, जो ना उम्मीद हो चुका है़ उनको अब बदलाव-विकास के लिए नेता ही नहीं, वोटर भी संघर्ष करता नहीं दिख रहा है़

साहित्यकार उषा किरण खान यह कहते-कहते जेपी आंदोलन के कालखंड को याद करने लगती है़ं प्रभात खबर से विशेष बातचीत में वह कहती हैं कि बिहार की राजनीति की यह बिडंबना है कि युवाओं के आंदोलन से बनी सरकारों ने युवा पीढ़ी की इतनी अनदेखी की है कि उनके सपने चकनाचूर हो गये़ बिहार का युवा मजदूर है तो अपनी कुदाल और शिक्षित है तो कंप्यूटर पर भरोसा कर रहा है़

उनको भरोसा हो गया है कि कोई सरकार उनके लिए कुछ नहीं करेगी़ प्रमाण यह है कि बिहार में असफल युवा दिल्ली से दुबई तक नाम-काम कमा रहा है़ वे बिहार के लिए सोचते हैं. लेकिन, बिहार के युवाओं के लिए कुछ नहीं सोच रहा है़ सरकार कोई हो, एक जाति तो दूसरा धर्म पर बात कर रहा है़ उषा किरण खान नाराजगी भरे अंदाज में कहती हैं कि यह कोई मतलब है़ विकास के लिए बहुत कुछ है. लेकिन, सियासती लोग ये कर नहीं रहे है़ं

मुद्दा-मुद्दई दोनों नदारद, सरकारों के अपना एजेंडा : विस चुनाव में क्या मुद्दा है, इस सवाल पर उषा किरण खान कहती हैं कि सियासत में मुद्दा व सजग मुद्दई दोनों ही नदारद है़ं हम दशकों से चुनाव देख रहे हैं, केवल वादा होता है़ फणीश्वर नाथ ‘ रेणु’ भवन का उदाहरण देते हुए कहती हैं कि इस भवन में साहित्यकारों को बैठने के लिए बनाया गया था़ ‘ रेणु’ का सौंवा साल मना रहे हैं. लेकिन, इस इमारत पर सालों से सरकारों का कब्जा है.

Posted by Ashish Jha

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