‘ओ’ ब्लड ग्रुप वालों में कोरोना संक्रमण का खतरा कम होता है. शोधकर्ताओं ने अध्ययन के दौरान पाया है कि ‘ओ’ ब्लड ग्रुप वाले यदि बीमार पड़ते भी हैं, तो गंभीर परिणामों की आशंका काफी कम होती है. प्रतिष्ठित पत्रिका ‘ब्लड एडवांसेज’ में प्रकाशित शोध में यह दावा किया गया है. अपने शोध के लिए शोधकर्ता और यूनिवर्सिटी ऑफ साउदर्न डेनमार्क के टोर्बन र्बैंरगटन ने 4.73 लाख से ज्यादा लोगों की कोरोना जांच की. सर्वे में पाया गया कि कोरोना संक्रमितों में ‘ओ’ पॉजिटिव वाले बहुत कम थे. संक्रमितों में ए, बी और एबी ब्लड ग्रुप वालों की संख्या अधिक थी. हालांकि, शोधकर्ता ए, बी और एबी ब्लड ग्रुप के मध्य संक्रमण की दर में कोई महत्वपूर्ण अंतर नहीं खोज सके.
क्या है कारण : शोधकर्ताओं ने बताया कि ए और एबी ब्लड ग्रुप वालों को सांस लेने में ज्यादा दिक्कत होती है. कोविड-19 के कारण उनके फेफड़ों को नुकसान पहुंचने की दर अधिक होती है. इन दोनों ब्लड ग्रुप वालों की किडनी पर भी असर पड़ सकता है और डायलिसिस की जरूरत हो सकती है. इससे पहले ‘क्लीनिकल मेडिकल डिजीज’ पत्रिका में ऐसा दावा किया गया था. शोध में बताया गया था कि ए ब्लड ग्रुप वालों को ओ ब्लड ग्रुप वालों की तुलना में कोविड-19 की चपेट में आने का खतरा ज्यादा होता है.
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ए और एबी ब्लड ग्रुप वालों को सांस लेने में होती है ज्यादा दिक्कत
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‘ओ’ ग्रुप के लिए कोरोना वायरस घातक नहीं
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ए व एबी ब्लड ग्रुप वाले रहें ज्यादा सतर्क
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कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद कोरोना से संक्रमित
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‘ए’ ग्रुप वालों में कोरोना संक्रमण की संभावना 45% अधिक
न्यू इंग्लैंड जरनल ऑफ मेडिसीन में छपे शोध में भी दावा किया गया है कि ए ब्लड ग्रुप वालों को कोरोना से सबसे ज्यादा संक्रमण का खतरा है. इस ग्रुप वाले किसी व्यक्ति पर कोरोना वायरस के हमले की संभावना 45% ज्यादा है. जबकि ‘ओ’ ब्लड ग्रुप वालों के संक्रमित होने की संभावना 35% से भी कम है. इस ब्लड ग्रुप के लोगों में कोरोना वायरस घातक हमला नहीं कर पाता है. कोरोना की ही तरह ‘ओ’ वालों को मलेरिया से बहुत खतरा नहीं होता. ‘ए’ ग्रुप वालों को प्लेग का खतरा भी कम होता है.
लैंसेट की रिपोर्ट का दावा : चीन की कोरोना वैक्सीन सुरक्षित एंटीबॉडी बनाने में मिला सक्षम- प्रतिष्ठित जर्नल ‘लैंसेट’ के मुताबिक, चीन की कोरोना वैक्सीन बीबीआइबीपी-कोर-वी एकदम सुरक्षित है और यह एंटीबॉडी बनाने में सक्षम है. इस वैक्सीन द्वारा वायरस को पूरी तरह से निष्क्रिय करने की उम्मीद जतायी गयी है. ट्रायल में 18 से 80 वर्ष की आयु के प्रतिभागी शामिल थे और पाया गया कि सभी में एंटीबॉडी बनी हैं.
अध्ययन के अनुसार, वैक्सीन के खिलाफ एंटीबॉडी बनाने की रफ्तार 18 से 59 साल के लोगों में 60 से अधिक उम्र वाले लोगों के मुकाबले अधिक रही. 60 वर्ष से अधिक आयु के लोगों में एंटीबॉडी बनने में 42 दिन लगे जबकि 18 से 59 साल के प्रतिभागियों में 28 दिनों में एंटीबॉडी विकसित हो गयी.
Posted by : Pritish Sahay