नयी दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट 20 साल की एक युवती की याचिका पर सुनवाई के लिए सहमत हो गया है, जिसने अपने कानूनी अभिभावक और वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी के खिलाफ विभागीय जांच के छत्तीसगढ़ सरकार के आदेश को चुनौती दी है. आईपीएस अधिकारी ने युवती की मां से कथित तौर पर शादी की थी, जबकि वह पहले से ही विवाहित थे. युवती की मां का देहांत हो चुका है.
युवती ने दावा किया कि राज्य सरकार का ”अपमानजनक कदम” उसके पिता और कानूनी अभिभावक के साथ हिसाब बराबर करने” और उसकी मृत मां को अपमानित करने का प्रयास है. युवती की ओर से पेश वरिष्ठ वकील महेश जेठमलानी की दलीलें सुनने के बाद न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एमआर शाह की पीठ ने नोटिस जारी किया और जांच की कार्यवाही पर एकतरफा रोक लगा दी.
पीठ ने अपने आदेश में कहा कि याचिकाकर्ता संख्या एक (युवती) की पहचान का खुलासा किये बिना उसे, याचिका दायर करने के लिए अनुमति दी जाती है. इसके साथ ही पीठ ने नोटिस जारी करने का आदेश दिया और कहा कि इस बीच 14 अगस्त 2020 के संवाद का पालन करते हुए कोई कार्यवाही नहीं होगी.
युवती ने अपनी याचिका में कहा कि उसका जन्म नौ दिसंबर, 2000 को डॉ एमएम के घर हुआ था. उसने यह भी कहा कि जब वह नौ महीने की थी, तब उसकी मां, जो तलाकशुदा थीं और मृत्युशैय्या पर थीं, ने उसे श्रीमती यूजी और श्री एमजी (पिता व कानूनी अभिभावक) को सौंप दिया.
युवती ने कहा कि बाद में 30 जुलाई, 2003 को अनुमंडल मजिस्ट्रेट ने इसे मान्यता दी और 11 अक्तूबर, 2006 को एक परिवार अदालत ने भी इसे सही ठहराया. युवती ने दावा किया कि उसे अपने कानूनी अभिभावकों सहित पूरे परिवार से अपार स्नेह मिला है और अब वह एमबीबीएस कोर्स कर रही है.
उसने कहा कि कोविड-19 के कारण वह दिल्ली में अपने परिवार के पास लौट आयी. इस दौरान उसके पिता व कानूनी अभिभावक ने उसे मानसिक रूप से तैयार एवं मजबूत करने के लिए संभावित हमले तथा राज्य सरकार द्वारा अनुशंसित जांच के बारे में बताया. युवती ने अपनी याचिका में 14 अगस्त, 2020 के सरकारी आदेश को रद्द करने का अनुरोध किया है.