कंचन, गया : राजनीति की चमक-दमक से बिहार में शायद की काेई बचा रह जाता है. इसमें पंडा समाज भला कैसे इससे अलग रह जाये. राजनीतिक अखाड़े में पंडाजी भी जाेर आजमाइश कर चुके हैं. इससे पहले जरा गया की राजनीतिक पृष्ठभूमि पर नजर डाल लेना भी आवश्यक हाेगा. यूं गया ताे राजनीति का केंद्र बिंदु माना जाता है.
1922 में कांग्रेस का राष्ट्रीय अधिवेशन शहर के पास गया-बाेधगया रिवर साइड राेड पर स्थित केंदुई गांव में हुआ था. इस अधिवेशन के स्वागताध्यक्ष डॉ राजेंद्र प्रसाद थे, जिसमें माेतीलाल नेहरू व चितरंजन दास जैसे नेताआें की भी माैजूदगी हुई थी. डॉ राजेंद्र प्रसाद राजेंद्र आश्रम स्थित गया जिला कांग्रेस कमेटी के कार्यालय में बैठक की अध्यक्षता भी कर चुके हैं. प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने अपनी आत्मकथा में इन बाताें का जिक्र किया है. 1922 में केंदुई में चल रहे अधिवेशन में कांग्रेस दाे फांड़ में बंट गयी. कांग्रेस से अलग हुए गुट में चितंरजन दास के नेतृत्व में एक दल व्हाइट हाउस कंपाउंड स्थित लाल काेठी कैंपस में जाकर बैठक किया. वहीं, चितरंजन दास के नेतृत्व में ‘स्वराज पार्टी’ का गठन किया गया. जयप्रकाश नारायण ने 1974 में छात्र आंदाेलन का बिगुल भी गया से ही फूंका था. सुभाष चंद्र बाेस भी गया के खजुरिया पहाड़ी की तलहटी में आजाद हिंद फाैज की बैठक कर चुके हैं.
साहित्य, ऐतिहासिक, धार्मिक व पर्यटन के साथ-साथ राजनीतिक दृष्टिकाेण से गया कम महत्वपूर्ण व समृद्ध नहीं रहा है. साहित्य की बात करें, ताे बिहार विधान परिषद के गठन के साथ 1952 में पहले सदन के सदस्य गया के साहित्यकार पंडित माेहन लाल महताे वियाेगी काे राज्यपाल काेटे से मनाेनीत किया गया. वह न केवल पंडा समाज से थे, बल्कि साहित्यकार भी थे. उन्हाेंने कई रचनाएं की हैं. राज्यपाल ने तब साहित्यकार प्रतिनिधि के ताैर पर विधान पार्षद के रूप में उनका मनाेनयन किया था. उनका मनाेनयन साहित्यकार काेटे से ही दूसरी बार भी लगातार किया गया.
गाैरतलब है कि राज्यसभा में भी बिहार के साहित्यकार रामधारी सिंह दिनकर काे सदस्य बनाकर भेजा गया था. लेकिन, कालांतर में साहित्यकार काेटे काे समाप्त कर दिया गया और फिर संभवत: इस काेटे से किसी का मनाेनयन नहीं हुआ. हम बात कर रहे थे गया शहर विधानसभा में पंडा समाज की भागीदारी की, ताे वर्ष 2005 के मार्च में हुए बिहार विधानसभा चुनाव में भाकपा से जहां पंडा समाज के बच्चू लाल बिट्ठल काे उम्मीदवार बनाया गया. वहीं, इसी समाज से श्याम लाल गायब भी निर्दलीय चुनाव मैदान में उतरे थे. इसके बाद विभिन्न राजनीतिक पार्टियाें में उनकी सहभागिता रहती है, पर प्रतिनिधित्व देने के उद्देश्य से किसी पंडाजी काे टिकट नहीं मिल पाया है.
posted by ashish jha