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कोरोना से बिगड़ी झारखंड के नेशनल-इंटरनेशनल एथलीट की आर्थिक स्थिति, अभावों में जी रहे हैं गोल्ड मेडल जीतने वाले खिलाड़ी

देश के लिए नेशनल एवं इंटरनेशनल एथलेटिक्स में गोल्ड जीतने वाले एथलीट अभावों में जी रहे हैं. गुमला के नावाडीह की 19 वर्षीय एथलीट फ्लोरेंश बारला एवं उसका परिवार आर्थिक तंगी में जी रहा है. लॉकडाउन की वजह से 2021 के ओलिंपिक की तैयारी नहीं हो पा रही थी.

बोकारो थर्मल (संजय मिश्रा) : देश के लिए नेशनल एवं इंटरनेशनल एथलेटिक्स में गोल्ड जीतने वाले एथलीट अभावों में जी रहे हैं. गुमला के नावाडीह की 19 वर्षीय एथलीट फ्लोरेंश बारला एवं उसका परिवार आर्थिक तंगी में जी रहा है. लॉकडाउन की वजह से 2021 के ओलिंपिक की तैयारी नहीं हो पा रही थी.

इसलिए फ्लोरेंस एक पखवाड़े से बोकारो थर्मल में रहकर झारखंड स्टेट स्पोर्ट्स प्रमोशन सोसाइटी (जेएसएसपीएस) के एथलेटिक्स कोच आशु भाटिया एवं बीएसीसी के कोच गौतम चंद्र पाल के दिशा-निर्देश में दिन-रात बोकारो क्लब मैदान में पसीना बहा रही हैं.

फ्लोरेंस अपनी तैयारी की बदौलत दावा करती है कि वर्ष 2021 के ओलिंपिक में अंडर 20 आयु वर्ग के 400 मीटर की दौड़ में भारत की झोली में गोल्ड मेडल डालकर देश एवं अपने राज्य झारखंड का नाम रोशन करेगी.

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फ्लोरेंस बारला ने 29-30 मई, 2019 को कजाखस्तान में आयोजित इंटरनेशनल आमंत्रण एथलीट प्रतियोगिता के 400 मीटर की दौड़ तथा चार गुणा 400 मीटर मिक्स्ड रिले रेस में भारत की झोली में दो गोल्ड मेडल डाले थे.

दो मेडल लाने के बाद भी झारखंड की तत्कालीन सरकार से फ्लोरेंस एवं उसके परिवार के सदस्यों को कोई मदद नहीं मिल पायी थी. उनका परिवार गुमला के गांव में ही खेती-बारी करके किसी प्रकार परिवार के सात सदस्यों का गुजारा करता है.

फ्लोरेंस के पिता विलियम बारला की मौत मार्च, 2013 में होने के बाद मां रोजलिया आइंद एवं भाई आशीष बारला खेती-बारी करके किसी प्रकार से छह माह तक ही परिवार का गुजारा कर पाते हैं.

फ्लोरेंस ने 12वीं की परीक्षा डीएवी नंदलाल बरियातू से पास की थी़ बीए में रांची के रामलखन सिंह कॉलेज में नामांकन कोच आशु भाटिया ने करवाया़ फ्लोरेंस बताती है कि मां को विधवा पेंंशन का भुगतान उसके पिता की मौत के सात वर्ष बाद भी नहीं हो रहा है. इसके अलावा परिवार के समक्ष राशन कार्ड भी नहीं है, जिसके कारण सरकारी अनाज भी नहीं मिल पाता है़

राशन कार्ड के लिए आवेदन छह वर्ष पूर्व जमा किया था़ वर्ष 2018 में दोबारा ऑनलाइन आवेदन करने पर परिवार के दो लोगों का नाम ही कार्ड में आया है. इस पर लॉकडाउन में दो माह 10 किलो चावल मिला, लेकिन अब कुछ नहीं मिलता है.

खुले में शौच के लिए मजबूर

फ्लोरेंस का परिवार बेहद गरीब है. उसके परिजनों के पास शौचालय बनवाने के भी पैसे नहीं हैं. उन्हें और उनके परिवार को खुले में ही शौच जाना पड़ता था. इसकी वजह से पूरे परिवार को शर्मिंदगी उठानी पड़ती है़ हालांकि, इतनी गरीबी के बावजूद उन्होंने एथलेटिक्स को अपना करियर चुना और राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एथलेटिक्स में कई मेडल जीते़

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कजाखस्तान में दो गोल्ड मेडल के अलावा वर्ष 2018 में धर्मशाला में आयोजित नेशनल प्रतियोगिता के 400 मीटर में गोल्ड, वर्ष 2019 में लखनऊ में नेशनल ओपन चैंपियनशिप में गोल्ड, रांची में वर्ष 2019 में आयोजित 31 नेशनल ईस्ट जोन जूनियर प्रतियोगिता में गोल्ड के अलावा सिल्वर एवं कांस्य मेडल भी जीते हैं.

कोरोना के कारण आर्थिक स्थिति खराब

कोरोना की वजह से घोषित लॉकडाउन के कारण फ्लोरेंस के परिवार को काफी आर्थिक संकटों का सामना करना पड़ रहा है़ कोच आशु भाटिया के आग्रह पर सीसीएल के पूर्व सीएमडी गोपाल सिंह ने राशन आदि देकर उसकी मदद की थी़ कोरोना का असर उसकी तैयारियों पर पड़ने लगा. इसलिए कोच के कहने पर वह गुमला से बोकारो थर्मल आ गयी.

कोच के कहने पर गोविंदपुर डी पंचायत के मुखिया एसबी सिंह ने पंचायत सचिवालय में एक कमरा रहने को फ्लोरेंस को दे दिया. भोजन-पानी की व्यवस्था कोच आशु एवं गौतम ने कर रखी है़ फ्लोरेंस के साथ अंडर 14 वर्ष आयु वर्ग के 100 मीटर में वर्ष 2019 में स्टेट गोल्ड विजेता तथा हजारीबाग के कटकमसांडी के रहने वाले दीपक टोप्पो भी यहीं रहकर नेशनल एथलीट प्रतियोगिता की तैयारी कर रहे हैं. दीपक भी बेहद गरीब परिवार से आता है.

Posted By : Mithilesh Jha

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