अमेरिका में न्यूयॉर्क के एक छोटे से शहर जिसका नाम ‘स्वास्तिक’ है, का नाम बदलने को लेकर पिछले दिनों लोगों ने वोटिंग की. वोटिंग का परिणाम बड़ा ही आश्चर्यजनक रहा. एक भी वोट इस नाम के खिलाफ में नहीं पड़ा और शहर का नाम ‘स्वास्तिक’ ही रह गया. इसके पीछे लोगों ने तर्क दिया कि शहर को बसाने वाले उनके पूर्वजों ने इसका नाम संस्कृत के शब्द से लिया है. उन्होंने यह साफ किया कि इस नाम का नाजी के प्रतीक चिह्न ‘स्वास्तिक’ से कोई लेना-देना नहीं है. इससे पहले, कुछ लोगों ने शहर के नाम को लेकर विरोध भी जताया था, उनका मानना था कि यह चिह्न नाजियों के चिह्न से मेल खाता है.
सोशल मीडिया पर इस खबर को लेकर कई यूजर्स कमेंट कर रहे हैं कि क्या ये राष्ट्रपति ट्रंप और भारत के प्रधानमंत्री मोदी की दोस्ती का असर है. दरअसल, इस शहर का नाम स्वास्तिक पूरी तरह से यहां रहने वाले लोगों की मर्जी से तय हुआ है. इसका ट्रंप-मोदी दोस्ती से कोई लेना-देना नही है. बल्कि इस शहर के नाम को लेकर बकायदा वोटिंग हुई. सीएनएन ने बताया कि शहर के ब्लैक ब्रुक टाउ बोर्ड ने सर्वसम्मति से ‘स्वास्तिक’ नाम नहीं बदलने के लिए वोट दिया. बता दें कि ब्लैक ब्रुक टाउ बोर्ड के पास ही शहर के संचालन का जिम्मा है.
बोर्ड के सुपरवाइजर जॉन डगलस ने बताया कि इस शहर का नाम स्वास्तिक शहर के मूल निवासियों द्वारा 1800 के दशक में रखा गया था और यह संस्कृत के शब्द से लिया गया है, जिसका अर्थ ‘कल्याण’ होता है. नाम बदलने की मांग करनेवालों पर निशाना साधते हुए उन्होंने कहा कि बाहर से यहां आकर बसने वाले लोगों को उनके समुदाय और शहर के इतिहास के बारे में जानकारी नहीं है. स्वास्तिक चिह्न सिर्फ नाजियों का चिह्न नहीं है. हमारे समुदाय के लिए यह वह नाम है जिसे हमारे पूर्वजों ने चुना था.
इस वोटिंग ने पूरे देश के लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचा और आधुनिक अमेरिका के एक शहर का नाम ‘स्वास्तिक’ ही रह गया. यह क्षेत्र कभी डेनवर लैंड स्वास्तिक कंपनी का घर था. यह एक कंपनी थी, जिसने नाजियों द्वारा स्वास्तिक चिह्न को अपनाने से पहले यह नाम चुना था. यूनाइटेड स्टेट्स मेमोरियल होलोकॉस्ट म्यूजियम के अनुसार, स्वास्तिक शब्द संस्कृत के शब्द ‘स्वास्तिक’ से लिया गया है, जिसका प्रयोग सौभाग्य या मंगल प्रतीक के संदर्भ में किया जाता है.
म्यूजियम ने बताया कि यह प्रतीक लगभग 7,000 साल पहले दिखायी दिया था और इसे हिंदू, बौद्ध, जैन और अन्य धर्मों में एक पवित्र प्रतीक माना जाता है. यह घरों या मंदिरों की दीवारों पर लगा होता है. यह एक शुभ चिह्न माना जाता है. म्यूजियम के मुताबिक, 19वीं शताब्दी के अंत में यूरोप में यह प्रतीक लोकप्रिय हो गया था. जर्मनी की नाजी पार्टी ने इसे 1920 में अपने प्रतीक के तौर पर अपनाया. हालांकि, नाजी पार्टी का चिह्न स्वास्तिक के मूल चिह्न से अलग है.
Post by : Pritish Sahay