पटना / नयी दिल्ली : राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश 20 सितंबर को कृषि विधेयकों के पारित होने के दौरान विपक्षी सांसदों द्वारा सदन में किये गये व्यवहार के खिलाफ 24 घंटों के लिए मंगलवार से उपवास पर हैं. इसकी जानकारी उन्होंने राज्यसभा के सभापति एम वेंकैया नायडू को पत्र लिख कर दे दी है. साथ ही उन्होंने लिखा है कि राज्यसभा में जो भी हुआ, उससे वे पीड़ा और तनाव में हैं. इस कारण रात भर सो भी नहीं पाये. पत्र में उन्होंने यह भी लिखा, ”22 सितंबर सुबह से कल 23 सितंबर सुबह तक, चौबीस घंटे का उपवास मैं कर रहा हूं. कामकाज की गति ना रुके, इसलिए उपवास के दौरान भी राज्यसभा के कामकाज में नियमित व सामान्य रूप से हिस्सा लूंगा.”
उपसभापति हरिवंश के तीन पन्नों के पत्र को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोशल मीडिया के प्लेटफॉर्म ट्विटर पर साझा किया है. उन्होंने हरिवंश के पत्र को प्रेरक बताते हुए प्रशंसा की है. साथ ही देशवासियों से पत्र को पढ़ने का आग्रह भी किया है. उन्होंने लिखा है कि ”हरिवंश जी ने जो पत्र लिखा, उसे मैंने पढ़ा. पत्र के एक-एक शब्द ने लोकतंत्र के प्रति हमारी आस्था को नया विश्वास दिया है. यह पत्र प्रेरक भी है और प्रशंसनीय भी. इसमें सच्चाई भी है और संवेदनाएं भी. मेरा आग्रह है, सभी देशवासी इसे जरूर पढ़ें.”
माननीय राष्ट्रपति जी को माननीय हरिवंश जी ने जो पत्र लिखा, उसे मैंने पढ़ा। पत्र के एक-एक शब्द ने लोकतंत्र के प्रति हमारी आस्था को नया विश्वास दिया है। यह पत्र प्रेरक भी है और प्रशंसनीय भी। इसमें सच्चाई भी है और संवेदनाएं भी। मेरा आग्रह है, सभी देशवासी इसे जरूर पढ़ें। pic.twitter.com/K9uLy53xIB
— Narendra Modi (@narendramodi) September 22, 2020
राज्यसभा के सभापति एम वेंकैया नायडू ने कहा कि रविवार को कृषि संबंधी विधेयकों पर विपक्ष के हंगामे के दौरान उप सभापति हरिवंश ने 13 बार सदस्यों से अपनी सीट पर जाने और चर्चा में भाग लेने की अपील की थी. उन्होंने कहा कि कार्यवाही के रिकॉर्ड से स्पष्ट है कि उप सभापति ने हंगामा कर रहे सदस्यों से बार-बार कहा कि वे अपने स्थान पर जाएं और उसके बाद वह मत विभाजन की अनुमति देंगे. नायडू ने कहा कि वह हंगामा करनेवाले सदस्यों के निलंबन से खुश नहीं हैं, लेकिन सदस्यों के खिलाफ कार्रवाई उनके आचरण को लेकर हुई है. उन्होंने कहा कि यह पहला मौका नहीं है, जब सदन में सदस्य निलंबित किये गये हैं. विगत में ऐसे कई उदाहरण हैं. उन्होंने हंगामे में कृषि विधेयकों के पारित होने को लेकर विपक्ष की आपत्ति पर कहा कि यह पहला मौका नहीं था, जब विधेयक हंगामे में पारित किये गये हैं. इससे पहले सदन में 15 विधेयक हंगामे में पारित किये गये थे. नायडू ने उप सभापति हरिवंश के खिलाफ विपक्ष के अविश्वास प्रस्ताव का जिक्र करते हुए एक बार फिर कहा कि यह उचित प्रारूप में नहीं था और इसके लिए 14 दिनों का जरूरी नोटिस भी नहीं दिया गया था.
कल दिनांक 20 सितंबर, 2020 को राज्यसभा में जो कुछ हुआ, उससे पिछले दो दिनों से गहरी आत्मपीड़ा, आत्मतनाव और मानसिक वेदना में हूं. मैं पूरी रात सो नहीं पाया, जेपी के गांव में पैदा हुआ. सिर्फ पैदा नहीं हुआ, उनके परिवार और हम गांव वालों के बीच पीढ़ियों का रिश्ता रहा. गांधी का बचपन से गहरा असर पड़ा, गांधी, जेपी, लोहिया और कर्पूरी ठाकुर जैसे लोगों के सार्वजनिक जीवन ने मुझे हमेशा प्रेरित किया, जयप्रकाश आंदोलन और इन महान विभूतियों की परंपरा में जीवन में सार्वजनिक आचरण अपनाया, मेरे सामने 20 सितंबर को उच्च सदन में जो दृश्य हुआ, उससे सदन, आसन की मर्यादा को अकल्पनीय क्षति पहुंची है.
सदन के माननीय सदस्यों द्वारा लोकतंत्र के नाम पर हिंसक व्यवहार हुआ. आसन पर बैठे व्यक्ति को भयभीत करने की कोशिश हुई. उच्च सदन की हर मर्यादा और व्यवस्था की धज्जियां उड़ायी गयी. सदन में माननीय सदस्यों ने नियम पुस्तिका फाड़ी. मेरे ऊपर फेंका. सदन के जिस ऐतिहासिक टेबल पर बैठकर सदन के अधिकारी, सदन की महान परंपराओं को शुरू से आगे बढ़ाने में मूक नायक की भूमिका अदा करते रहे हैं, उनकी टेबल पर चढ़ कर सदन के महत्वपूर्ण कागजात-दस्तावेजों को पलटने, फेंकने व फाइने की घटनाएं हुईं. नीचे से कागज को रोल बनाकर आसन पर फेंके गये. नितांत आक्रामक व्यवहार. भद्दे और असंसदीय नारे लगाये गये. हृदय और मन को बेचैन करनेवाला लोकतंत्र के चीरहरण का दृश्य पूरी रात मेरे मस्तिष्क में छाया रहा. सो नहीं सका. स्वभावतः अंतर्मुखी हूं. गांव का आदमी हूं. मुझे साहित्य, संवेदना और मूल्यों ने गढ़ा है.
सर, मुझसे गलतियां हो सकती है, पर मुझे इतना नैतिक साहस है कि सार्वजनिक जीवन में खुले रूप से स्वीकार करें, जीवन में किसी के प्रति कटु शब्द शायद ही कभी इस्तेमाल किया हो. क्योंकि, मुझे महाभारत का यक्ष प्रश्न का एक अंश हमेशा याद रहता है. यक्ष ने युधिष्ठिर से पूछा, जीवन का सबसे बड़ा आश्चर्य क्या है? युधिष्ठिर ने उत्तर दिया कि हम रोज कंधों पर शव लेकर जाते हैं, पर हम कभी नहीं सोचते हैं कि अंततः जीवन की यही नियति है. मेरे जैसे मामूली गांव और सामान्य पृष्ठभूमि से निकले इंसान, आयेंगे और जायेंगे. समय और काल के संदर्भ में उनकी न कोई स्मृति होगी, न गणना. पर लोकतंत्र का यह मंदिर ‘सदन’ हमेशा समाज और देश के लिए प्रेरणासोत रहेगा. अंधेरे में रोशनी दिखानेवाला लाइट हाउस बनकर संस्थाएं ही देश और समाज की नियति तय करती हैं. इसलिए राज्यसभा और राज्यसभा का उपसभापति का पद ज्यादा महत्वपूर्ण और गरिमामय है, नहीं, इस तरह मैं मानता हूं कि मेरा निजी कोई महत्व नहीं है. पर इस पद का है. मैंने जीवन में गांधी के साधन और साध्य से हमेशा प्रेरणा पायी है.
बिहार की जिस भूमि से मेरा रिश्ता है, वहीं गणतंत्र का पहला स्वरूप विकसित हुआ. वैशाली का गणतंत्र, चंपारण के संघर्ष ने गांधी को महात्मा गांधी बनाया. भारत की नयी नियति लिखने की शुरुआत वहीं से हुई. जेपी की संपूर्ण क्रांति ने देश को दिशा दी. उसी धरती के लाल कर्पूरी ठाकुर के सामाजिक न्याय का रास्ता, सदियों से वंचित और पिछड़े लोगों के जीवन में नयी रोशनी लेकर आया. उस धरती, माहौल, संस्कार और परिवेश से निकले मेरे जैसे गांव के मामूली इंसान की कोई पृष्ठभूमि नहीं है. हमारी परवरिश किसी अंग्रेजी स्कूल में नहीं हुई. खुले मैदान में पेड़ के नीचे लगनेवाले पाठशाला से संस्कार का प्रस्फुटन हुआ, न पांचसितारा जीवन संस्कृति, न राजनीतिक दाव पेंच से रिश्ता रहा. पर कल की घटनाओं से लगा कि जिस गंगा और सरयू के बीच बसे गांव के उदात संस्कारों, संयमित और शालीन व्यवहार के बीच पला, बढ़ा. गांधी, लोहिया, जेपी, कर्पूरी ठाकुर, चंद्रशेखर जैसे लोगों के विचारों ने मुझे मूल्य और संस्कार दिये. उनकी ही हत्या मेरे सामने कल उच्च सदन में हुई.
भगवान बुद्ध मेरे जीवन के प्रेरणा स्रोत रहे हैं. बिहार की धरती पर ही आत्मज्ञान पाने वाले बुद्ध ने कहा था- आत्मदीपो भव. मुझे लगा है कि उच्च सदन के मर्यादित पीठ पर मेरे साथ जो अपमानजनक व्यवहार हुआ, उसके लिए मुझे एक दिन का उपवास करना चाहिए. शायद मेरे इस उपवास से सदन में इस तरह के आचरण करनेवाले माननीय सदस्यों के अंदर आत्मशुद्धि का भाव जागृत हो. यह उपवास इसी भावना से प्रेरित है, बिहार की धरती पर पैदा हुए राष्ट्रकवि दिनकर, दो बार राज्यसभा के सदस्य रहे. कल 23 सितंबर को उनकी जन्मतिथि है. आज 22 सितंबर सुबह से कल 23 सितंबर सुबह तक, इस अवसर पर चौबीस घंटे का उपवास मैं कर रहा हूं. कामकाज की गति न रुके, इसलिए उपवास के दौरान भी राज्यसभा के कामकाज में नियमित व सामान्य रूप से भाग लूंगा. पिछले सोमवार (14 सितंबर) को दोबारा मुझे उपसभापति का दायित्व दिया गया, तो मैंने कहा था- इस सदन में पक्ष एवं विपक्ष में एक से एक वरिष्ठ जिम्मेदार, प्रखर वक्ता एवं जानकार लोग मौजूद हैं. हम सब लोग उनके योगदान को समय-समय पर देखते हैं.
मेरा मानना है कि वर्तमान में हमारा सदन प्रतिभावान एवं कमिटेड सदस्यों से भरा है. इस सदन में आदर्श सदन बनने की पूरी क्षमताएं हैं. जब-जब बहसें हुई, हमने देखा है. पर महज एक सप्ताह में मेरा ऐसा कटु अनुभव होगा, आहत करनेवाला, कल्पना नहीं की थी. दिनकर की कविता से अपनी भावना को विराम दे रहा हूं.
वैशाली! इतिहास-पृष्ठ पर अंकन अंगारों का, वैशाली! अतीत गह्वर में गुंजन तलवारों का।
वैशाली! जन का प्रतिपालक, गण का आदि विधाता, जिसे ढूंढ़ता देश आज उस प्रजातंत्र की माता।
रुको, एक क्षण पथिक! यहाँ मिट्टी को शीश नवाओ, राजसिद्धियों की समाधि पर फूल चढ़ाते जाओ।