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अमेरिकी चुनाव में अदृश्य दुश्मन का हौव्वा

ट्रंप का एजेंडा साफ है. वे लोगों को चीन और वामपंथ का भय दिखा रहे हैं, और डरा रहे हैं कि देखो बाहरी लोग आकर अमेरिका पर कब्जा कर लेंगे.

जे सुशील, स्वतंत्र शोधार्थी

jey.sushil@gmail.com

मैंआमतौर पर अमेरिकी राष्ट्रपति पद के उम्मीदवारों के भाषण नहीं सुनता हूं. सोशल मीडिया पर अगर किसी भाषण के बारे में ज्यादा बातचीत होती है, तब जाकर वह भाषण सुनता हूं. आमतौर पर, मुझे निराशा होती है और यह समझ में आता है कि सोशल मीडिया एक प्रकार की कृत्रिम दुनिया है. इस दुनिया में या तो आप किसी के समर्थक हैं या किसी के विरोधी. इस समर्थन और विरोध के बाहर जो दुनिया बसती है, उसे समझने के लिए उन बातों को भी जानना-समझना होता है, जिनसे आप हो सकता है कि सहमत न हों.

मैं राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के कई कदमों से सहमत नहीं हूं. जैसाकि, अमेरिकी यूनिवर्सिटी के इलाके में रहनेवाले अक्सर होते हैं, लेकिन फिर भी कुछ दिन पहले मैंने डोनाल्ड ट्रंप के दो भाषण सुने. इन भाषणों को सुनने के बाद मुझे समझ में आया कि क्यों आज भी विश्लेषक ट्रंप के बारे में यह कहने से हिचक नहीं रहे हैं कि ये आदमी कभी भी चुनाव में बड़ा फेरदबल कर सकता है.

अमेरिका के कई अन्य राज्यों की तरह मिशीगन भी एक ऐसा राज्य है, जहां के बारे में चुनाव की भविष्यवाणी करना मुश्किल होता है. ये कभी डेमोक्रेट को वोट करता है, तो कभी रिपब्लिकन को. चुनावी भाषा में इसे स्विंग स्टेट कहा जाता है, यानी इन इलाकों में प्रतिद्वंद्वी ज्यादा रैलियां करते हैं, ताकि वोटरों को अपने पक्ष में किया जा सके.

कुछ दिन पहले ट्रंप ने मिशीगन के फ्रीलैंड नाम की जगह पर भाषण दिया. शुरुआत में अभिवादन के बजाय ट्रंप का कथन था- हम आपके लिए कई फैक्ट्रियां लाये हैं, जिसके बाद वे आते हैं- हैलो मिशीगन यानी अभिवादन पर. इन दो वाक्यों के बीच तालियां और लोगों की आवाजों का शोर होता है. उनका अगला वाक्य होता है- मैं फ्रीलैंड में आकर खुश हूं. ‘फ्रीलैंड’ शब्द पर उनका जोर होता है. वे आगे कहते हैं- जो बाइडेन ने अमेरिकी नौकरियों को हमारी जमीन से बाहर भेजने में अपना करियर लगा दिया है. वे हमारे बच्चों का भविष्य चीन और अन्य देशों के हाथों में बेच रहे हैं. वे आउटसोर्सिंग के मसले पर भारत का नाम नहीं लेते, लेकिन उनके वोटर समझ जाते हैं कि वे किनकी बात कर रहे हैं. जवाब में जोरदार तालियां.

ट्रंप रुकते हैं. इधर-उधर देखते हैं. अंगूठा ऊपर कर अभिवादन स्वीकार करते हैं, फिर कहते हैं- जो बाइडेन ने आपकी नौकरियां चीन के हाथों में दे दी हैं और अब वे चाहते हैं कि हमारे देश को हिंसक वामपंथी भीड़ के हवाले कर दें, जिन्हें आप हर दिन सड़कों पर देख रहे हैं. अगर बाइडेन जीतते हैं, तो चीन जीतता है. अगर बाइडेन जीतते हैं, तो ये दंगा करनेवाले, हमारी दुकानों को आग लगानेवाले और अमेरिकी झंडे जलानेवालों की जीत होती है.

इन वाक्यों से ट्रंप अपने भाषण के अगले बिंदुओं को तय करते हैं, लेकिन टोन तय हो जाता है. एक अदृश्य दुश्मन का हौव्वा खड़ा किया जाता है, जिसका नाम इस समय चीन है. अमेरिकी राजनीति में कुछ सालों पहले तक ये दुश्मन मुसलमान थे और उससे कई सालों पहले तक कम्युनिस्ट.

अमेरिका बदल गया और साथ में राजनीति के दुश्मन भी बदल गये. लेकिन ये बात स्थिर रही कि विभाजनकारी नेताओं ने जीतने के लिए सकारात्मक एजेंडा की नहीं, बल्कि हमेशा से एक अदृश्य दुश्मन को चुना.

मैं वामपंथी नहीं हूं, लेकिन ट्रंप के भाषणों में बार-बार लेफ्ट विंग मॉब, लेफ्टिस्ट जो बाइडेन जैसे वाक्य सुन-सुनकर आश्चर्य हुआ कि क्या पूरी दुनिया वामपंथ से अदृश्य लड़ाई लड़ने में लगी है. वो वामपंथ, जो अब चीन में भी नहीं रह गया है और न ही किसी और देश में वामपंथी सरकारें रह गयी हैं, लेकिन फिर भी वामपंथ के नाम पर वोट बटोरने की कवायद चल रही है.

आमतौर पर ट्रंप के बारे में लोग कहते हैं कि उनके पास शब्द नहीं हैं. वे ज्यादा लंबा लिखा हुआ पढ़ नहीं सकते. वे विश्लेषण नहीं कर सकते यानी कुल मिलाकर वो पढ़े-लिखे नहीं है और बस लफ्फाजी करते हैं. मीडिया में उनके छोटे-छोटे बयान देखकर ऐसा लगता भी है, लेकिन अगर आप उन्हें रैलियों में सुनेंगे, तो पायेंगे कि अपने मतदाताओं से कनेक्ट करने में ट्रंप न केवल सक्षम हैं बल्कि वो जानते हैं कि वह क्या कर रहे हैं.

वे भले ही लिखे हुए भाषण का अभ्यास करके आते हों, लेकिन जिस आत्मविश्वास से अपना भाषण लोगों के सामने रखते हैं, उससे कहीं से नहीं लगता कि ये आदमी मूर्ख है. उन्हें पता है कि अगर झूठ भी बोलना है, तो कितनी सफाई से कहना है. जब वे अपने भाषण में भीड़ की बात करते हैं, तो कभी भी ये नहीं बताते कि ये भीड़ नहीं बल्कि लोग हैं जो काले लोगों के मारे जाने के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन कर रहे हैं. वे कहीं भी ये जिक्र नहीं करते कि कोविड-19 के कारण देश में अब तक डेढ़ लाख से अधिक लोग मारे जा चुके हैं. वे अपने भाषण के शुरुआती कई मिनटों में कोविड-19 का नाम तक नहीं लेते हैं.

इन भाषणों को सुनने पर लगता नहीं कि अमेरिका किसी महामारी से गुजर रहा है. लेकिन, फिर भी तालियां बजती रहती हैं. ट्रंप के समर्थक उनके साथ खड़े रहते हैं. अंतरराष्ट्रीय आलोचना के बाद भले ही ट्रंप ने कोविड-19 को वुहान वायरस कहना बंद कर दिया हो, लेकिन वे चीन को जिम्मेदार ठहराने से पीछे नहीं हट रहे हैं. ये उनके चुनावी भाषणों में बिल्कुल स्पष्ट दिखता है.

ट्रंप का एजेंडा साफ है. वे लोगों को चीन और वामपंथ का भय दिखा रहे हैं, और डरा रहे हैं कि देखो बाहरी लोग आकर अमेरिका पर कब्जा कर लेंगे. ये डर की राजनीति अमेरिका के लोगों को कितना प्रभावित करती है, यह अगले दो महीनों में पता चल जायेगा. फिलहाल, इतना साफ है कि ट्रंप से चुनावी भाषणों में किसी सकारात्मक एजेंडे की उम्मीद कोई नहीं कर रहा है.

(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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