India-China Tension: चीनी सैनिकों की वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर मौजूदगी से चिंतित भारतीय सेना सीमाओं की चौकसी के लिए अब नई रणनीति पर काम करने जा रही है. भारतीय सेना ने लद्दाख में चीन से लगती वास्तविक सीमा रेखा पर निगरानी बढ़ाने के लिए ऊंटों को पट्रोलिंग और सैनिकों को राशन के काम में लगाने की योजना बनाई है. पूर्वी लद्दाख सीमा में चीनी सैनिकों के अतिक्रमण के चलते सेना ने यह फैसला लिया है. इसी कड़ी में रक्षा अनुसंधान एवं विकास (DRDO) संगठन ने डबल हंप कैमेल यानी दो कूबड़ों वाले ऊंट पर अपना रिसर्च पूरा कर लिया है और आने वाले दिनों में सीमा की अग्रिम चौकियों पर सैनिकों को राशन और हथियार पहुंचाने में मदद करेगा.
बता दें कि बैक्ट्रियन कैमल लद्दाख जैसे इलाकों के मुफीद माने जाते हैं. लद्दाख, जम्मू कश्मीर के पहाड़ी इलाकों के मौसम के हिसाब से बैक्ट्रियन कैमल पूरी तरह फिट हैं. बताया जाता है कि दो कूबड़ वाले ऊंट नुब्रा घाटी और लद्दाख के चप्पे-चप्पे से वाकिफ हैं. इन इलाकों में सेना की गश्ती में बैक्ट्रियन ऊंट काफी मदद कर सकते हैं. बैक्ट्रियन कैमल की कई ऐसी बातें हैं जो इन्हें भारतीय सेना के लिए बेहद खास बनाती हैं. बैक्ट्रियन ऊंच 170 किलोमीटर का वजह लेकर 17 हजार फीट की ऊंचाई तक आसानी से चढ़ सकते हैं.बिना पानी के भी ये ऊंट 72 घंटे तक जिंदा रह सकते हैं.
बैक्ट्रियन कैमल एक ऐसा जानवर है, जो खारा पानी को भी पी सकता है.ये रस्सी, कपड़ा, कांटेदार भोजन तक आसानी से पचा सकते हैं. ये ऊंट 65 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार तक दौड़ सकते हैं. ये कड़ाके की ठंड में भी आसानी से रह लेते हैं.साथ ही बर्फ पर तेजी से चलने में भी सक्षम हैं.इन लद्दाखी ऊंटों के बालों से शॉल और स्वेटर समेत दूसरे कपड़े बनाए जा सकते हैं.बैक्ट्रियन कैमल का इस्तेमाल सिल्क रूट पर तिब्बत और लद्दाख के बीच सामान ढोने के लिए किया जाता था. चिंता की बात यह है कि लद्दाख मं बैक्ट्रियन कैमल की आबादी करीब 400 से आसपास है.