पटना : राज्य में जदयू इन दिनों अपना राजनीतिक जमीन मजबूत कर रहा है. पार्टी की प्राथमिकता समाज के सभी वर्गों में जनाधार को मजबूत कर राज्य के सबसे बड़े दल के रूप में स्थापित करना है.
इस रणनीति के तहत घेराबंदी भी शुरू हो चुकी है. इस कारण अन्य दलों के जनाधार के लिए बड़ी चुनौती खड़ी हो गयी है. बदलते राजनीतिक परिदृश्य की पुष्टि हाल के दिनों में लगभग सभी वर्गों से अन्य दलों को छोड़ जदयू में शामिल होने वाले विधायकों और नेताओं की की घटनाओं से हो रही है.
राजनीतिक जानकारों का कहना है कि भले ही जदयू के एक मंत्री श्याम रजक ने पार्टी छोड़ा हो, लेकिन पिछले डेढ़ महीने के दौरान पार्टी में शामिल होने वाले नेताओं में सवर्ण, अतिपिछड़ा, यादव और दलित समुदाय की अच्छी-खासी संख्या है. जदयू में शामिल होने वालों की अगर यही रफ्तार रही तो आने वाले समय में अन्य राजनीतिक दलों के जातीय समीकरणों पर असर पड़ सकता है.
जानकारों का कहना है कि अन्य दलों को छोड़ने वाले विधायकों में महेश्वर यादव, प्रेमा चौधरी, अशोक कुशवाहा, चंद्रिका राय, जयवर्धन यादव, फराज फातमी, पूूर्णिमा यादव,सुदर्शन कुमार और राजद नेता व पूर्व विधायक भोला राय शामिल हैं. इसके साथ ही राज्य में बसपा के स्थापित दलित नेता भी बड़ी संख्या में जदयू में शामिल हुए हैं.
कई दूसरे राजनीतिक दलों का पुराना जनाधार अब खतरे में : पार्टी सूत्रों का दावा है कि आने वाले दिनों में भी लगभग सभी वर्गों के अन्य दलों के नेता जदयू में शामिल होने वाले हैं. जदयू में शामिल होने वाले विधायकों सूची इस तरफ इशारा करती है कि कई दूसरे राजनीतिक दलों का पुराना जनाधार अब खतरे में है. ऐसे में चुनाव में अन्य दलों के लिए मुसीबत बढ़ सकती है.
posted by ashish jha