पटना : मिथिला में जितिया पर्व की कथा में दो स्तर पर प्रचलित हैं. पार्वती-शिव संवाद से कथा का आरम्भ होता है, जिसमें पार्वती जी पूछती हैं कि हे महादेव, यह बतलाइए कि मैं किस व्रत के फल से आपको पति के रूप में पाकर धन्य हुई? इसके प्रश्न के उत्तर में महादेव जिउतिया व्रत का विधान बतलाते हैं तथा कथा सुनाते हैं, जो गौरी-प्रस्तार नामक ग्रन्थ में उद्धृत है. इसमें सियारिन तथा चिल्ह के द्वारा व्रत करने की कथा है. सियारिन अपना व्रत-भंग कर लेती है, अतः दूसरे जन्म में उसकी सभी सन्तानें मर जातीं हैं. मादा चिल्ह दूसरे जन्म में भी व्रत के प्रभाव से मार डाले गये सात पुत्रों को फिर से पा लेतीं हैं. जीमूतवाहन देवता उनके पुत्रों को अमृत पाकर जीवित कर देते हैं. यह मिथिला क्षेत्र की मूल कथा है.
दूसरी कथा मगध क्षेत्र में प्रचलित है, जिसमें विद्याधर जीमूतवाहन के द्वारा स्वयं को गरुड़ के सामने अर्पित कर नाग जाति को बचा लेने की कथा है. इसमें महादेव तथा पार्वती के संवाद का प्रसंग नहीं है. फिर भी संतान की रक्षा तथा सुहाग दोनों का यहां भी लोक-परम्परा में एकीकरण हुआ है. मिथिला के लोकाचार में व्रत से एक दिन पूर्व न केवल मछली और मडूआ की रोटी खाना अनिवार्य है, बल्कि हर महिला को यह उपलब्ध हो इसके लिए इसके वितरण की भी परंपरा रही है. महिलाएं अपने समाज की महिलाओं को मछली और मडूआ की रोटी देकर शुभ मंगल की कामना करती हैं.
महावीर मंदिर के प्रकाशन विभाग के प्रमुख पंडित भवनाथ झा इस संबंध में कहते हैं कि जितिया व्रत का पहला फल है- सुहाग की कामना. अतः सधवा स्त्रियाँ व्रत से एक दिन पहले उन सभी वस्तुओं को खातीं हैं, जो विधवा के लिए वर्जित हैं. शास्त्रानुसार मछली, मरुआ, नोनी साग, पोरो का साग, घिउरा (जिसे कहीं-कहीं झींगा भी कहा जाता है) ये सब विधवाओं तथा संन्यासियों के लिए वर्जित हैं, अतः इनका भक्षण किया जाता है. एक शब्द में जिन खाद्य पदार्थों को सामिष कहा गया है, उनसे ओठगन करने का विधान है.
इस प्रकार सधवा स्त्रियां मूल रूप से अपने सुहाग के लिए जितिया का व्रत करतीं हैं तथा भगवान् शिव की कही कथा के अनुसार राजा जीमूतवाहन का व्रत संतान लंबी उम्र के लिए करतीं हैं. जिउतिया की विशेषता है कि सन्तान वाली विधवाएं भी यह व्रत अपनी संतान की लंबी उम्र के लिए करतीं हैं, किन्तु इनके लिए मछली, मरुआ आदि खाने की बाध्यता नहीं है, चूड़ा-दही, अन्य पकवान, फल आदि निरामिष खाद्य पदार्थों से ओठगन करतीं हैं.
पंडित झा कहते हैं कि यह केवल बेटा के लिए नहीं, बेटी के लिए भी की जाती है. सच्चाई है कि बहुत सारे शब्द एक साथ दोनों लिंगो का बोध कराते हैं, जैसे पाठक, मजदूर, भक्त, पुत्र, संतान, बच्चा आदि. इस प्रकार यह व्रत संतान यानी बेटा-बेटी दोनों के लिए है.
posted by ashish jha