पटना : विधानसभा चुनाव में महागठबंधन के अंदर कांग्रेस पार्टी की कितनी सीटें मिलेंगी, इसका पता पार्टी के किसी भी नेता को नहीं है. प्रदेश अध्यक्ष से लेकर प्रदेश प्रभारी तक सिर्फ एक बात कह रहे हैं कि समय आने पर सब स्पष्ट कर दिया जायेगा. कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ने वाले कार्यकर्ता इसे पार्टी की दुविधा बता रहे हैं. उनका कहना है कि महागठबंधन में शामिल घटक दल राजद के साथ गठबंधन करते हैं. गठबंधन में आने के बाद राजद कांग्रेस के हिस्से की सीटें काट कर साथ आनेवाले घटक दलों को दे देता है. कांग्रेस की अपनी वास्तविक हिस्सेदारी भी नहीं मिलती.
कांग्रेसियों का कहना है कि लोकसभा चुनाव इसका उदाहरण है. लोकसभा चुनाव में राजद के साथ राष्ट्रीय लोक समता पार्टी, हम और वीआइपी का समझौता हुआ था. यह अपने आप में आश्चर्य है कि राजद ने लोकसभा की 40 सीटों में 10 सीटें कांग्रेस को दीं, जबकि पांच सीटें रालोसपा को. कांग्रेस नेताओं ने कहा कि यह कहां की तुलना है कि जिस पार्टी का संगठन राज्य के हर प्रखंड तक फैला है उसको अंतिम समय में 10 सीटें सौंपी गयीं और रालोसपा को पांच सीटें दी गयीं.
रालोसपा ने उन सीटों का किस तरह से इस्तेमाल किया इसे सभी जानते हैं. राजद ने कांग्रेस की परंपरागत सीट लेकर जिनके साथ गठबंधन किया उसी को सौंप दिया. इसका नतीजा रहा कि मधुबनी की परंपरागत कांग्रेस की सीट को विकासशील इंसान पार्टी को और औरंगाबाद की कांग्रेस की सीट हम को सौंप दी. अब जीतन राम मांझी महागठबंधन छोड़कर एनडीए के साथ चले गये.
इधर, महागठबंधन को लेकर पार्टी के निर्णय के खिलाफ मधुबनी से चुनाव लड़नेवाले और निष्कासित किये गये डाॅ शकील अहमद को फिर से पार्टी में वापस लेना पड़ा. उस समय पार्टी का निर्णय गलत था या डाॅ शकील अहमद का निर्णय सही साबित हुआ. पार्टी नेता यह मान रहे हैं कि लोकसभा के तर्ज पर राजद अपनी सीटें निर्धारित करने का बाद जो शेष सीटों पर सहयोगी दलों का फाॅर्मूला सेट कर शेष सीटें कांग्रेस के झोली में सौंप देगी. अब तक कोई भी दल कांग्रेस के पास नहीं आया है, जबकि वाम दलों के प्रतिनिधि, रालोसपा और वीआइपी राजद के साथ सीटों के तालमेल में जुट गयी है.
posted by ashish jha