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सदर अस्पताल रेफर करने की बस जिम्मेवारी निभा रहे हैं इस जिले के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र

सहरसा : भारत में कोरोना वायरस से अब तक 41 लाख लोग संक्रमित हो चुके हैं. इनमें से 70 हजार लोगों की जान जा चुकी है. देश में कोरोना संक्रमण का प्रसार शुरू होते ही सरकार को स्वास्थ्य सुविधा मजबूत करने की याद आयी. आनन-फानन में बड़े अस्पतालों में सुविधा बढ़ाने का प्रयास किया गया. लेकिन ग्रामीण स्तर के स्वास्थ्य केंद्रों को उनके हाल पर ही छोड़ दिया.

सहरसा : भारत में कोरोना वायरस से अब तक 41 लाख लोग संक्रमित हो चुके हैं. इनमें से 70 हजार लोगों की जान जा चुकी है. देश में कोरोना संक्रमण का प्रसार शुरू होते ही सरकार को स्वास्थ्य सुविधा मजबूत करने की याद आयी. आनन-फानन में बड़े अस्पतालों में सुविधा बढ़ाने का प्रयास किया गया. लेकिन ग्रामीण स्तर के स्वास्थ्य केंद्रों को उनके हाल पर ही छोड़ दिया. न तो ऐसे पीएचसी, एपीएचसी, हेल्थ सेंटर के भवनों की दशा सुधारने की दिशा में कदम उठाया गया और न ही वहां किसी भी तरह की मूलभूत सुविधाएं ही उपलब्ध करायी गई. जिले का कोई भी अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र या हेल्थ सेंटर तो किसी मरीज को इंजेक्शन देने लायक भी नहीं है. इधर पीएचसी भी सिर्फ टिंचर-बैंडेज लगाने और सदर अस्पताल रेफर करने की जिम्मेवारी को निभा रहा है.

सर्जरी के नाम पर कभी-कभार महिलाओं का बंध्याकरण

किसी भी पीएचसी में स्वीकृति या निर्भर जनसंख्या के अनुरूप डॉक्टरों का पदस्थापन नहीं है. किसी-किसी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में ऑक्सीजन के सिलिंडर उपलब्ध हैं भी तो वहां मरीजों को इसकी सुविधा नहीं मिल पाती है. एक्सरे, जांच के लिए बाजार पर निर्भर रहना ही पड़ता है. इन पीएचसी में सर्जरी के नाम पर कभी-कभार महिलाओं का बंध्याकरण होता है. लिहाजा गांव के मरीजों को आज भी जिला अस्पताल या फिर निजी क्लीनिकों का ही रूख करने की मजबूरी बनी है. आश्चर्य तो यह भी है कि इतने बड़े महामारी के संकट से गुजरने के बाद भी बेहतर स्वास्थ्य व्यवस्था के लिए जनता की ओर से भी कोई प्रभावी आवाज नहीं उठती है. हां, अनहोनी होने के बाद तोड़फोड़, मारपीट और मुआवजे के लिए सड़क जाम जरूर करते हैं. अब समय है कि जनता से लेकर जनप्रतिनिधि तक सबसे पहले अपने इलाके के स्वास्थ्य केंद्रों को सभी मूलभुत सुविधाओं से संपन्न करायें. क्योंकि यही वह एक जगह है, जहां से लोगों को विकट परिस्थितियों में जीवनदान की उम्मीद मिलती है. कोरोना के बाद आने वाले कुछ वर्ष अस्पताल, चिकित्सक सहित अन्य स्वास्थ्य सुविधाएं ही सबसे अधिक महत्व रखेगी.

डॉक्टर को सहरसा में प्रतिनियोजित कर पीएचसी से दे रहे मानदेय

महिषी. क्षेत्र के लाखों की आबादी प्रखंड मुख्यालय स्थित एकमात्र पीएचसी के ओपीडी पर निर्भर है. प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में कुल 20 बेड हैं. मुख्यालय में मात्र दो एमबीबीएस डॉक्टरों का पदस्थापन है. प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी डॉ आरडी सिंह व महिला चिकित्सक डॉ बिभा कुमारी को पीएचसी का जिम्मा है. जबकि राजनपुर उपस्वास्थ्य केंद्र में आयुर्वेद चिकित्सक डॉ बीके मिश्रा, कुंदह में आयुष चिकित्सक डॉ उत्तम लाल महतो व तेलवा में डॉ रीतेश कुमार सिंह पदस्थापित हैं. भंथी के चिकित्सक डॉ प्रभाकर को जिला मुख्यालय में प्रतिनियोजन कर वेतन दिया जा रहा है. पीएचसी में तैनात छह नर्सों के भरोसे सभी 19 पंचायतों के प्रसव कार्य का निष्पादन होता है व उपस्वास्थ्य केंद्रों में 21 नर्स हैं, जो टीकाकरण का कार्य कर अपने कार्यों का इतिश्री करती हैं. ऑक्सीजन के तीन सिलेंडर उपलब्ध हैं, जिसका उपयोग न के बराबर होता है. बंध्याकरण के लिए बख्तियारपुर के चिकित्सा प्रभारी पदाधिकारी डॉ एनके सिंह की कृपा पर निर्भर रहना पड़ता है.

चापाकल न शौचालय, डॉक्टर कहां बैंठेंगे पता नहीं

बनमा ईटहरी. प्रखंड स्थित प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र तेलियाहाट बाजार में प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी डॉ संतोष कुमार संत, डॉ प्रफुल कुमार, आयुष डॉक्टर लक्ष्मण सिंह, छह एएनएम, पदस्थापित हैं. लेकिन इस प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में मरीजों के प्राथमिक जरूरत की भी कोई सुविधा उपलब्ध नहीं है. यहां तक कि पीएचसी के डॉक्टरों के भी बैठने की जगह नहीं है. मरीजों को लिटाने के लिए कोई बेड नहीं है. पीएचसी में एक अदद चापाकल भी नहीं है. कोई शौचालय अथवा यूरिनल भी नहीं है. स्वास्थ्यकर्मी अथवा मरीजों को पानी पीने के लिए आसपड़ोस या शौचालय अथवा लघुशंका के लिए खेतों की ओर रूख करना पड़ता है.

posted by ashish jha

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