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Bihar election 2020 : तस्लीमुद्दीन और असरारुल हक के बगैर होगा सीमांचल में विस चुनाव

किशनगंज : सीमांचल की राजनीति में कभी किंग मेकर की भूमिका निभाने वाले पूर्व केंद्रीय गृह राज्यमंत्री मो तस्लीमुद्दीन के बगैर इस बार का विधानसभा चुनाव होगा. उनके अलावा इस बार कांग्रेस के मौलाना असरारुल हक भी नहीं होंगे.

रामबाबू, किशनगंज : सीमांचल की राजनीति में कभी किंग मेकर की भूमिका निभाने वाले पूर्व केंद्रीय गृह राज्यमंत्री मो तस्लीमुद्दीन के बगैर इस बार का विधानसभा चुनाव होगा. उनके अलावा इस बार कांग्रेस के मौलाना असरारुल हक भी नहीं होंगे. सीमांचल की राजनीति में लगातार पांच दशकों तक सक्रिय रहने वाले तस्लीमुद्दीन का निधन 2017 में हो गया था. सीमांचल की राजनीति में वो एकमात्र ऐसे नेता थे, जो सीमांचल के तीन जिलों किशनगंज, अररिया और पूर्णिया से सांसद चुने गये थे. तस्लीमउद्दीन और मौलाना असरारुल हक 2014 के मोदी लहर में भी अररिया और किशनगंज लोकसभा सीट पर जीत दर्ज की थी.

तस्लीमुद्दीन ने किशनगंज में लंबी राजनीतिक पारी खेली

अररिया के जोकीहाट प्रखंड के रहने वाले तस्लीमुद्दीन ने किशनगंज में लंबी राजनीतिक पारी खेली. लोकसभा चुनाव हो या विधानसभा, सभी चुनावों में उनकी सक्रियता देखते बनती थी. एक दौर ऐसा भी आया जब वे सीमांचल गांधी के रूप में विख्यात हुए. अपने दल के अलावा दूसरे दलों में भी उनकी तूती बोलती थी. दबंग नेताओं में भी उनकी गिनती होती थी, पर दूसरी तरफ कमजोर तबकों के बीच उनकी एक असरदार और मददगार जनप्रतिनिधि वाली छवि भी बनी. 77 वर्षों के जीवनकाल में वे आठ बार विधानसभा चुनाव और पांच बार लोकसभा का चुनाव जीते. सीमांचल यानी अररिया, पूर्णिया, कटिहार और किशनगंज जिलों में न सिर्फ मुस्लिम समाज को, बल्कि दलित और पिछड़े समुदाय को गोलबंद करने में तस्लीमुद्दीन की अहम भूमिका रही.

असरारुल ने रखी कांग्रेस की लाज

मौलाना असरारुल हक कासमी ने 2014 के लोकसभा चुनाव में प्रदेश में कांग्रेस के झंडे को बचाये रखा था. पूरे देश भर में कांग्रेस को करारी शिकस्त मिली थी. बिहार में तो चुनाव परिणाम के बाद कांग्रेस की हालत ऐसी थी कि उस समय के लोकसभा अध्यक्ष और कांग्रेस की वरिष्ठ नेत्री मीरा कुमार, पूर्व मंत्री डॉ शकील अहमद और ना जाने कितने ऐसे बड़े कांग्रेसी चेहरे जो मोदी लहर में पराजित हुए थे, लेकिन मौलाना असरारुल हक कासमी ने उस चुनाव में भी जीत का परचम लहरा कर ये साबित कर दिया था कि उनका राजनीतिक सफर अभी शेष है. किशनगंज में मौलाना असरारुल हक कासमी की हैसियत एक अभिभावक की थी.

पार्टी,संगठन,नेता और कार्यकर्ता को वे एक सूत्र में पिरोने में विश्वास करते थे. 1985 से संसदीय चुनाव लड़नेवाले मौलाना असरारुल हक कासमी को सफलता ढाई दशक बाद मिली 2009 के लोकसभा चुनाव में. कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीतकर पहली बार संसद पहुंचे और नौ वर्षों तक लगातार सांसद रहे. दिसंबर 2018 में इनका निधन हुआ. इस बार विधानसभा चुनाव की तैयारी जारी है, लेकिन ये दोनों नेता नहीं हैं. इन्हें किशनगंज की राजनीति में अभिभावक की हैसियत के लिए हमेशा याद किया जाता है.

posted by ashish jha

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