प्रवीण तिवारी (स्वतंत्र पत्रकार): भागलपुरी चादर देशभर में ओढ़ी जाती है. यह वही चादर है, जिसे अंसारी चच्चा बनाते हैं. इसकी अहमियत को ऐसे समझ सकते हैं कि इसी पांच अगस्त को अयोध्या में रामजन्म भूमि पूजन कार्यक्रम के लिए तकरीबन 14000 पीस भागलपुरी चादर अयोध्या भेजी गयी थी. जिसे यहां के मुसलमान बुनकरों ने बनाया था. यह कबीर की चादर सरीखी ही है, जो सभी जाति-धर्मों और वर्गों में समान रूप से लोकप्रिय है. देवराहा बाबा आश्रम की ओर से यह चादर मंगवायी गयी थी. आयोजन में शामिल होनेवाले विशिष्ट अतिथियों को सम्मानपूर्वक यह चादर ओढ़ायी गयी थी.
सिल्की टच लिये रहती है चादर : अमूमन 350 से 400 ग्राम के वजन के आसपास की एक चादर होती है. इसे बनाने में कारीगर रॉयन धागे का उपयोग करते हैं. स्टैपल और विस्कॉस धागे का भी इस्तेमाल किया जाता है. फाइन धागे को स्टैपल और मोटे धागे को विस्कॉस कहते हैं. इसके कारोबारी कच्चे धागे को साउथ और बंगाल से मंगाते हैं. एक दौर वह भी था जब भागलपुर के अलीगंज में ही कच्चा धागा तैयार होता था. अब व्यापारियों द्वारा सूते का आयात कर बुनकरों को बांटने का काम होता है. हैंडलूम के दौर से शुरू होकर अब चादर बनाने का काम आधुनिक मशीनों से हो रहा है. इस पॉपुलर चादर को बनाने के कारोबार में भागलपुर के 500 से अधिक बुनकर परिवार लगे हैं, जो यहां के नाथनगर,चंपानगर,पुरैनी आदि जगहों पर बसे हैं.
बुनकरों की स्थिति जस की तस : बुनकरों की स्थिति जस की तस है. बुनकरों के पास पूंजी नहीं है. बड़े व्यापारी धागा देते हैं और वे दिहाड़ी पर चादर बनाते हैं. पांच किलो धागे में 12-13 चादर बनती है. मार्केटिंग का काम भी बड़े व्यापारी ही करते हैं. सरकार भी उदासीन है. हम 20 साल से यार्न बैंक बनाने की मांग कर रहे हैं. एक सरकारी दुकान हो, जहां से बुनकर धागा खरीद सकें और वाजिब दर पर चादर बेच सकें. लेकिन ऐसा नहीं हो सका है.
अलीम अंसारी, सदस्य, बिहार बुनकर कल्याण समिति
हमारी हालत खस्ताहाल ही है. दो महीने का ही काम होता है. हमारे पास पूंजी नहीं है. चौका के हिसाब से चादर बनाते हैं. एक चौका में चार चादर होती है. मजदूरी 70-80 रुपये मिलती है. दिन भर में दो -ढाई चौका चादर बनती है. समझिए किस प्रकार निभता होगा. अब तो नये लोग इस धंधे में नहीं आना चाहते हैं. बहरहाल, बुनकरों का रंग फीका जरूर हुआ हो, लेकिन भागलपुरी चादर ने अपना रंग खूब जमाया है.
औबेद्दीन अंसारी, बुनकर, नाथनगर
कार्यक्रम के लिए तकरीबन 14000 पीस चादर ले जायी गयी थी : कभी अंग प्रदेश के राजा कर्ण की राजधानी रही चंपानगर का एरिया इसका सेंटर है. भागलपुरी चादर का तकरीबन 100 करोड़ का सालाना कारोबार होता है. जानकार बताते हैं कि इसका इतिहास अति प्राचीन है. आजादी से पहले के समय से यह खूब चलन में है. पिछले कुछ सालों से इसका एक्सपोर्ट भी हो रहा है. दुबई में इसकी खूब डिमांड है. तिलका मांझी विश्वविद्यालय स्नातकोत्तर हिंदी विभाग के हेड डॉ. योगेंद्र कहते हैं- ”सौंदर्य के लिहाज से भी यह चादर बेहतरीन है. जबकि वाजिब कीमत के कारण इसे गरीब-गुरुआ भी ओढ़ते हैं और इसे सभी मौसमों में उपयोग में लाया जा सकता है.”
Post by : Pritish Sahay