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राष्ट्रीय खेल दिवस : खेल के इंफ्रास्ट्रक्चर में हम आगे, रख-रखाव में पीछे

आज राष्ट्रीय खेल दिवस है. झारखंड के पास खेल से जुड़े संसाधनाें की कमी नहीं है, लेकिन कमी है, तो इनके रख-रखाव की. हमारे पास खिलाड़ियों की भी कमी नहीं है, लेकिन जरूरी है इनकों संवारने की. 20 साल हो गये, न तो खेलनीति बनी और न ही खिलाड़ियों का भविष्य सुरक्षित हो पाया

आज राष्ट्रीय खेल दिवस है. झारखंड के पास खेल से जुड़े संसाधनाें की कमी नहीं है, लेकिन कमी है, तो इनके रख-रखाव की. हमारे पास खिलाड़ियों की भी कमी नहीं है, लेकिन जरूरी है इनकों संवारने की. 20 साल हो गये, न तो खेलनीति बनी और न ही खिलाड़ियों का भविष्य सुरक्षित हो पाया. हम हॉकी सहित अन्य खेलों में आगे हैं, लेकिन बेहतर संसाधन नहीं मिलने से हमारे खिलाड़ी परेशान हैं. जरूरत है खेल के इंफ्रास्ट्रक्चर पर ध्यान देने की. मेगा स्पोर्ट्स कॉम्लेक्स के रूप में हमें दुनिया का बेस्ट इंफ्रास्ट्रक्चर मिला है. स्टेडियमों के रख-रखाव पर 30 करोड़ रुपये खर्च किये गये, लेकिन इन स्टेडियमों की बदहाली इस 30 करोड़ के रख-रखाव की पोल खोल रही है, जिसका प्रभाव सीधे खेल पर पड़ रहा है.

सीसीएल के जिम्मे है रख-रखाव की जिम्मेवारी

  • 2015 में सीसीएल के साथ झारखंड सरकार ने एमओयू किया

  • 800 करोड़ की लागत से 2009 में तैयार हुआ मेगा स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स

  • मुख्य स्टेडियम के अलावा सात आउटडोर और इंडोर स्टेडियम हैं

  • खेलगांव में 11 हजार खिलाड़ी एक साथ रह सकते हैं

  • 1.25 लाख वर्ग फीट का प्रशासनिक भवन भी है यहां

फर्स्ट फेज में मिले थे 24 करोड़ रुपये : जेएसएसपीएस को एमओयू होने के बाद स्टेडियमों के रख-रखाव के लिए फर्स्ट फेज में कुल 24 करोड़ रुपये मिले थे. इसमें आधे पैसे सीसीएल और आधे पैसे झारखंड सरकार ने दिये. फर्स्ट फेज का काम भी पूरा कर दिया गया, लेकिन इसके बाद स्टेडियमों की स्थिति में कोई अंतर नहीं आया. इसके बाद छत उड़ कर गिरने की घटना घटी, जिसमें एक गाड़ी क्षतिग्रस्त हो गयी. इससे जेएसएसपीएस के रख-रखाव की पोल खुली. इसके बाद जेएसएसपीएस के अधिकारी लीपापोती करने लगे और स्टेडियम की हालत देखकर झारखंड सरकार की ओर से फटकार लगायी गयी.

खेल विभाग की ओर से मेगा स्पोर्ट्स कॉम्लेक्स के मेंटेनेंस के लिए भी फंड मुहैया कराया जाता रहा है़ इसके बाद भी स्थिति ठीक नहीं है. कुछ मामलों की जांच की जा रही है़ इसके बाद ही निर्णय लिया जायेगा.

अनिल कुमार सिंह, खेल निदेशक

खेल मेगा स्पोर्ट्स कॉम्लेक्स के मेंटेनेंस का काम चल रहा है. कुछ काम हो गया है और कुछ बाकी है. वहीं एथलेटिक्स स्टेडियम की रेलिंग वाला काम अभी रूका हुआ है. जांच की रिपोर्ट का इंतजार हो रहा हे़

वहाब चौधरी, सीइओ, जेएसएसपीएस

झारखंड में 95 करोड़ है खेल का बजट, इसी से संवरते हैं खेल और खिलाड़ी : झारखंड में खेल और खिलाड़ियों के लिए सरकार की ओर से सबसे कम बजट बनाया जाता है. वहीं इस साल झारखंड सरकार ने खेल के लिए केवल 95 करोड़ का बजट पास किया है. वहीं इसमें खिलाड़ियों और खेल के विकास के लिए मात्र 36 करोड़ रूपये हैं, जबकि बाकी 59 करोड़ रुपये इंफ्रास्ट्रक्चर के रख-रखाव और इसे तैयार करने को लेकर रखा गया है. खेल निदेशालय की ओर से इसी 36 करोड़ में आयोजन के साथ-साथ राज्य में चलने वाले खेल के सेंटरों को भी राशि मुहैया करायी जाती है. इसके अलावा खेल संघों को भी प्रत्येक साल अनुदान की राशि मुहैया करायी जाती है.

इसी बजट से होता है खेल का संचालन : 36 करोड़ के बजट में खेल विभाग राज्य में संचालित होने वाले 200 से भी अधिक डे-बोर्डिंग और आवासीय सेंटरों का संचालन करती है. इसके अलावा खिलाड़ियों को स्कॉलरशिप और कैश अवार्ड भी इसी फंड से मुहैया करवाया जाता है. इसके अलावा समय-समय पर राज्य में होने वाले राष्ट्रीय इवेंट की तैयारी भी झारखंड का खेल विभाग इसी बजट के तहत करता है. इसके साथ ही खिलाड़ियों को सम्मानित करने का खर्च भी इसी बजट में होता है.

कई जिलों के स्टेडियमों की हालत भी हो गयी है खस्ता, मेदिनीनगर में आज तक नहीं बना एक स्टेडियम : वर्ष 2008-09 में जीएलए कॉलेज के परिसर में स्टेडियम निर्माण का कार्य शुरू भी हुआ, जो आज तक अधूरा है. ले-देकर उम्मीद जिला स्कूल मैदान पर बची थी. इस पर भी अब ग्रहण लग गया है. कोरोना के कारण लॉकडाउन के पहले से मैदान सिकुड़ रहा था. खेल तो दूर अब जिला स्कूल मैदान सुबह-शाम टहलने के लायक नहीं रहा.

खूंटी का एस्ट्रोटर्फ भी नहीं रहा किसी काम का : खूंटी में स्थानीय हॉकी खिलाड़ियों के बेहतर अभ्यास के लिए 20 साल पहले एस्ट्रोटर्फ हाॅकी ग्राउंड बनाया गया था. रख-रखाव का अभाव होने के कारण इसकी स्थिति ये हो गयी है कि अब ये किसी काम का नहीं रह गया है. एस्ट्रोटर्फ उखड़ने लगा है और खिलाड़ियों को खेलने में परेशानी होती है.

गुमला में हॉकी ग्राउंड खेलने लायक नहीं : गुमला जिला हॉकी की नर्सरी है. यहां से कई खिलाड़ी निकले, जिन्होंने राज्य से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक नाम कमाया. यहां हॉकी के लिए सभी सुविधा देनी थी, परंतु सिर्फ ग्राउंड बना कर छोड़ दिया गया. हॉलैंड से एस्ट्रोटर्फ मंगा कर ग्राउंड में बिछाया गया, लेकिन स्प्रिंकलर की व्यवस्था नहीं होने के कारण एस्ट्रोटर्फ उखड़ गया है.

गैलरी बनी है, परंतु बैठने लायक नहीं है. चेजिंग रूम है, परंतु जर्जर हो गया है. यहां खिलाड़ी नहीं जाते हैं. बिजली की व्यवस्था नहीं है. एस्टोटर्फ की वर्तमान स्थिति ऐसी है कि मैदान में जहां-तहां जलजमाव है. कई जगहों पर टर्फ घिस कर खराब हो गया है. टर्फ को सतह (जमीन) से सही से नहीं चिपकाये जाने के कारण जहां-तहां से उखड़ गया है. वहीं अगर खिलाड़ियों को ड्रेस चेंज करने के लिए चेंज रूम जाना है, तो एस्टोटर्फ मैदान के बीच से होकर जाना पड़ेगा? क्योंकि चेंज रूम तक जाने के लिए और कोई रास्ता नहीं है. दर्शक-दीर्घा में काई जमने लगी है. जो बैठने लायक नहीं है.

देवघर के तीन स्टेडियमों की नहीं होती है देखरेख : देवघर में झारखंड सरकार की ओर से तीन स्टेडियम का निर्माण कराया गया था. इसमें 20 करोड़ की लागत से बनाया गया स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स शामिल है, जहां वर्तमान में घास उग आयी है. दूसरा केकेएन स्टेडियम है, जहां फुटबॉल से अधिक रैलियों का आयोजन होता है. वहीं एक इंडोर स्टेडियम की हालत भी जर्जर है.

Post by : Pritish Sahay

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