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कोरोना वैक्सीन का ह्यूमन ट्रायल नहीं है आसान, जानिये कैसे चुने जाते हैं वालंटियर

दुनियाभर में कोरोना वैक्सीन पर काम चल रहा है. सभी के मन में एक सवाल जरूर है, कैसे वैक्सीन का ट्रायल किया जात है. वालंटियर्स कैसे मिलते हैं, उन्हें कैसे चुना जाता है. इस रिपोर्ट में हम वैक्सीन की ट्रायल के लिए कैसे लोगों का चयन होता है. कहां रजिस्ट्रेशन होता है, पूरी प्रक्रिया क्या है ? इन सवालों के जवाब तलाशने की कोशिश करेंगे.

दुनियाभर में कोरोना वैक्सीन पर काम चल रहा है. सभी के मन में एक सवाल जरूर है, कैसे वैक्सीन का ट्रायल किया जात है. वालंटियर्स कैसे मिलते हैं, उन्हें कैसे चुना जाता है. इस रिपोर्ट में हम वैक्सीन की ट्रायल के लिए कैसे लोगों का चयन होता है. कहां रजिस्ट्रेशन होता है, पूरी प्रक्रिया क्या है ? इन सवालों के जवाब तलाशने की कोशिश करेंगे.

भारती विद्यापीठ मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल ने कहा है कि जिन दो लोगों को ऑक्सफोर्ड की ओर से बनाया गया कोविड-19 का टीका लगाया गया था उनके स्वास्थ्य संबंधी अहम मानक सामान्य हैं. अस्पताल की ओर से एक वरिष्ठ चिकित्सक ने बृहस्पतिवार को यह जानकारी दी। क्लिनिकल ट्रायल के दूसरे चरण में पुणे के सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (एसआईआई) द्वारा निर्मित कोविशिल्ड टीके का पहला ‘शॉट’ 32 वर्ष एवं 48 वर्ष के दो व्यक्तियों को बुधवार को लगाया गया था.

कैसा वालंटियर चुना जाता है ?

फेज वन और फेज टू के ट्रायल में सिर्फ स्वास्थ सेवा से जुड़े वालंटियर को तैयार किया जाता है. वैक्सीन उन पर ही टेस्ट होती है इसके बाद फेज 3 में वैसे लोगों का चयन किया जाता है जो सामान्य होते हैं जिसमें सभी उम्र के लोग शामिल होते हैं फेज वन और फेज टू के रिजल्ट को और सटीक करता है.

वैक्सीन ट्रायल दूसरे ट्रायल से अलग कैसे हैं ?

जब दवा के ट्रायल की बारी आती है तो पहले फेज में स्वस्थ वालंटियर की नियुक्ति की जाती है जो इसकी सुरक्षा की जांच करते हैं. दूसरे और तीसरे चरण में रोगियों के साथ इस दवा की जांच होती है जबकि वैक्सीन की ट्रायल में लोगों के समूह के साथ यह किया जाता है. इसमें कई तरह के वालंटियर शामिल होते हैं.

कैसे चुने जाते हैं वालंटियर ?

यूएस और यूरोप में दवा कंपनियां ट्रायल के लिए जागरुकता अभियान चलाती है. इसके लिए विज्ञापन दिया जाता है. इसी तरह वालंटियर की भरती भी की जाती है. भारत में ट्रायल को बहुत प्रचारित प्रसारित नहीं किया जाता. अगर कोई व्यक्ति इस तरह के दवाओं के ट्रायल में वालंटियर करना चाहता है तो उसे द क्लिनिकल ट्रायल रजिस्ट्री इंडिया (CTRI) की वेबसाइट पर जाना होगा जहां जरूरी जानकारी दी जाती है. यही एक मुख्य माध्यम है जहां से वालंटियर की नियुक्ति भी की जाती है.

आप कैसे बन सकते हैं वालंटियर

इस वेबसाइट की मदद से आप भी अपने शहर में कहां दवाओं का वैक्सीन का ट्रायल हो रहा है इसकी जानकारी प्राप्त कर सकते हैं. आप यहां से सीधे मुख्य जांचकर्ता को ईमेल या फोन के जरिये संपर्क कर सकते हैं, इस तरह आप वैक्सीन या दवाओं की ट्रायल के लिए वालंटियर कर सकते हैं लेकिन ट्रायल के बारे में जानकारी लेने के लिए आपको वेबसाइट पर भी लंबा समय देना होगा क्योंकि इसकी जानकारी भी आपको आसानी से नहीं मिलेगी.

वालंटियर के लिए कुछ संस्थान ऐसे हैं जिन्होंने इसे आसान बनाने की कोशिश की है जैसे चिकित्सा विज्ञान और SUM अस्पताल, भुवनेश्वर उड़ीसा जैसी 12 साइट ऐसी है जहां भारत बॉयोटेक कॉवैस्कीन का टेस्टकिया जा रहा है यहां वालंटियर आसानी से इन वेबपेज पर जाकर वैक्सीन की ट्रायल में शामिल हो सकते हैं

कौन – कौन सी जानकारी मांगी जाती है ?

अगर कोई वालंटियर इसमें शामिल होना चाहता है तो उसे नाम. उम्र, लिंग, बॉडी मॉस इंडेक्स, दवाओं से एलर्जी की जानकारी, वैक्सीन और फूड, ताजा लक्षण , मेडिकल कंडिशन , डायबटिज, , हाइपरटेंशन, कैंसर, अस्थमा जैसी अहम जानकारियां शामिल है जो भी वैक्सीन के लिए ट्रायल में वालंटियर की जरूरत को पूरा करता है उसे चुना जाता है.

रजिस्ट्रेशन के बाद क्या होता है ?

वालंटियर के लिए रजिस्ट्रेशन करना पहली प्रक्रिया है. इसके बाद वालंटियर की पूरी मेड़िकल जांच होती है. इसमें कोविड टेस्ट भी शामिल होता है एंटीबॉडीज टेस्ट भी किया जाता है. जो भी व्यक्ति कोरोना से संक्रमित पाया जाता है और खासकर वो SARS-CoV-2 वायरस के एंटीबॉडीज है उनका चयन ट्रायल के लिए नहीं किया जा रहा है. इस तरह की एंटीबॉडीज के साथ कई वालंटियर आये थे जिनका चयन रद्द करना पड़ा क्योंकि इनमें पहले से कोविड 19 से लड़ाई के लिए एंटीबॉडीज थी. इस वजह से वालंटियर तलाशने में भी परेशानी हो रही है.

12 से 65 साल के वालंटियर की जरूरत

फेज टू के लिए 12 से 65 साल तक की उम्र के वालंटियर चाहिए. कॉवैक्सीन का टेस्ट 1125 लोगों के समूह के साथ पहले औऱ दूसरे चरण का टेस्ट किया जायागा. इस तरह की ट्रायल में वालंटियर की योग्यता मांपने में तीन दिनों का वक्त लगता है. इन तीन दिनों में वालंटियर की मेडिकल जांच की जाती है. इसके अलावा वालंटियर को एक कॉट्रेंक्ट में रखा जाता है जिसमें ट्रायल में होने वाली समस्याओं का भी जिक्र किया जाता है.

क्या – क्या शर्त होती है

जबतक ट्रायल पूरा नहीं हो जाता तबतक वालंटियर को यह सुनिश्चित करना होगा जब भी जरूरत होगी वह मौजूद रहेगा. फेज टू के ट्रायल के लिए 194 दिनों में सात बार एंटीबॉडीज की जांच होती है. महिला अगर वालंटियर है तो उसे गर्भधारन नही करना होगा जब तक यह ट्रायल चल रहा है. इसके अलावा इस शोध के दौरान सभी वालंटियर किसी और मेडिकल ट्रायल का हिंसा नहीं बन सकेंगे. इनके बॉयोलॉजिकल सैंपल भी भविष्य में शोध के लिए लिये जायेंगे.

वालंटियर को कितना पैसा मिलता है

अगर आपको यह लगता है कि इस तरह के ट्रायल के लिए वालंटियर को अच्छा खासा पैसा दिया जाता है तो आप गलत सोच रहे हैं. वालंटियर को इस तरह के ट्रायल के लिए कोई पैसा नहीं दिया जायेगा हां उनके रहने, खाने, यात्रा करने का खर्च दिया जाता है. जो भी कंपनी इस तरह के ट्रायल को स्पांसर कर रही है वह वालंटियर की सुरक्षा का ध्यान रखती है और किसी भी तरह की अनहोनी में परिवार के साथ खड़ी रहती है.

Posted By – Pankaj Kumar Pathak

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