कौशिक रंजन . पटना : बिहार विधानसभा चुनाव में भाजपा का वोट प्रतिशत लगातार बढ़ता जा रहा है और वोटरों के बीच उसकी पैठ धीरे-धीरे बढ़ती जा रही है. आजादी के बाद से राज्य में अब तक 16 बार विधानसभा चुनाव हो चुके हैं, जिसमें पार्टी के वोट प्रतिशत में 24 गुना की बढ़ोतरी हुई है.
पहले भारतीय जनसंघ और अब भाजपा के नाम से मतदाताओं के बीच पहुंचने वाली यह पार्टी राज्य के पहले दो विधानसभा चुनावों में खाता तक नहीं खोल पायी थी. 1962 में पहली बार इसके तीन विधायक चुनाव जीत कर सदन पहुंचे थे. इनमें सीवान के जनार्दन तिवारी, हिलसा के जगदीश प्रसाद और नवादा के गौरीशंकर केसरी ने कांग्रेस के दिग्गज नेताओं से यह सीटें छीनी थीं. इसके बाद पार्टी का ग्राफ बढ़ता गया.
1951 में जब पहली विधानसभा चुनाव हुई थी, तब भारतीय जनसंघ पार्टी के नाम से उसकी पहचान थी. उस समय इसे सिर्फ 1.18 प्रतिशत वोट मिले थे और एक भी सीट नहीं जीत पायी थी, जबकि उस समय की सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस को 322 सीटों में 239 पर जीत मिली थी.1957 में हुए दूसरे विधानसभा चुनाव में भी भाजपा की स्थिति में बहुत सुधार नहीं हुआ.
उसके वोट प्रतिशत में मामूली बढ़त प्वाइंट पांच प्रतिशत की बढ़ हुई और यह बढ़कर 1.23 प्रतिशत पर पहुंचा. 1967 में हुए चौथे विधानसभा चुनाव में जनसंघ को मिले वोटों के प्रतिशत में करीब 10 गुणा की बढ़ोतरी हुई. इसे 10.42 प्रतिशत वोट मिले और 26 सीटों पर जीत भी मिली. इसके बाद 1977 में इमर्जेंसी के बाद हुए चुनाव में सभी दलों ने कांग्रेस के खिलाफ मिलकर जनता पार्टी के नाम से चुनाव लड़ा. इसमें जनता पार्टी को 27.55 प्रतिशत वोट मिले और 311 में 214 सीटों पर जीत मिली, जबकि कांग्रेस को 286 में महज 57 सीटें मिली थीं.
1.18 फीसदी वोट आज पहुंचा 24.42 प्रतिशत तक: इसके बाद 1980 में जनसंघ का नाम बदलकर भाजपा यानी भारतीय जनता पार्टी हो गया. इस आठवीं विधानसभा चुनाव में 57.28 प्रतिशत वोट पोल हुए, जिसमें भाजपा को 8.41 प्रतिशत वोट मिले और 21 सीटें भी मिली. हालांकि, पार्टी ने 246 सीटों पर चुनाव लड़ा था. 11वीं विधानसभा चुनाव 1995 में हुए, जिसमें वोटों का प्रतिशत बढ़कर 12.96 हो गया और 41 सीटें मिली. वर्ष 2000 में हुई 12वीं विधानसभा चुनाव बिहार और झारखंड का संयुक्त रूप से अंतिम चुनाव था. इसमें भाजपा को 14.64 प्रतिशत वोट मिले थे और 67 सीटों पर जीत मिली थी.
posted by ashish jha