coronavirus School reopen, School Reopening News, Boris Johnson: कोरोनावायरस संकट भले ही खत्म न हुआ हो लेकिन दुनियाभर में स्कूल खोलने को लेकर कवायद शुरू हो गई है. ब्रिटेन, फ्रांस अमेरिका समेत कई देशों में सरकार अब इस बात पर दबाव डाल रही है कि हर हाल में स्कूल खोले जाने चाहिए. ब्रिटेन में कोई आधिकारिक घोषणा तो नहीं हुई है लेकिन एक सितंबर से से स्कूल को फिर से खोलने की बात कही जा रही है.
इसे लेकर ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने बच्चों के माता-पिता से एक अपील भी की है. उन्होंने कहा कि कोरोनावायरस संक्रमण के डर को मन से निकाल बच्चों को अगले महीने से स्कूल भेजें. ब्रिटेन में 5 माह से स्कूल बंद हैं. अब सितंबर से सभी स्कूल खोलने की योजना है. प्रधानमंत्री जॉनसन ने कहा कि स्कूल खोलना सरकार की नैतिक जिम्मेदारी है.
उन्होंने कहा कि 23 मार्च को जब देश में लॉकडाउन लागू हुआ था, उसकी तुलना में आज अधिकारियों को कोविड-19 के बारे में ज्यादा जानकारी है. ब्रिटेन के शीर्ष जन स्वास्थ्य अधिकारियों के बच्चों के घर पर रहने से अधिक प्रभावित होने की बात कहने के कुछ घंटों बाद जॉनसन ने यह बयान दिया. जॉनसन की ओर से रविवार को जारी एक बयान में कहा गया कि इसलिए यह बेहद जरूरी है कि हम बच्चों को शिक्षा के लिए और दोस्तों का साथ पाने के लिए दोबारा कक्षाओं में भेजें. उन्होंने कहा कि स्कूल भेजने से हमारे बच्चों की जिंदगी में जो बदलाव आएगा, उससे बड़ा प्रभाव और कुछ नहीं होगा.
डेली मेल की रिपोर्ट के मुताबिक, ब्रिटिश सरकार ने 3220 करोड़ रुपए का नेशनल ट्यूटोरिंग प्रोग्राम लॉन्च किया है. इसके तहत स्कूल ग्रेजुएट्स की भर्ती की जाएगी जो पूर्णकालिक पढ़ाने का काम करेंगे. बता दें कि फ्रांस, डेनमार्क और न्यूजीलैंड जैसे देशों में सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों में ढिलाई दिए जाने के बाद यहां स्कूलों में बड़ी संख्या में बच्चे आने लगे हैं. अमेरिका में तो राष्ट्रपति ट्रम्प ने तो स्कूल नहीं खोले जाने पर फंडिंग बंद करने तक की चेतावनी दे दी है.
दुनिया भर के देशों की सरकारों के सामने दो गंभीर चुनौती खड़ी हो गई हैं. पहली यह कि छात्रों की अब तक की पढ़ाई में हुए नुकसान की भरपाई किस तरह होगी और दूसरी यह कि सरकार अगर स्कूल खोल देती है, तो क्या अभिभावक अपने बच्चों को स्कूल भेजने के लिए तैयार हैं? लॉकडाउन के कारण दुनियाभर में 150 करोड़ बच्चों ने स्कूल जाना छोड़ दिया है. इनमें से 70 करोड़ बच्चे भारत, बांग्लादेश जैसे विकासशील देशों में हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि कोरोना की वजह से पढ़ाई का सबसे ज्यादा असर गरीब बच्चों और खासकर लड़कियों पर पड़ रहा है.
बच्चे स्कूल जाएंगे तो उनका एक-दूसरे से मिलना, खेलना होगा ही. शिक्षक जितनी भी सख्ती से सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करवाएं, लेकिन वो कितना मास्क पहनेंगे, कितना डिस्टेंस रखेंगे, इसे लेकर परिजन चिंतित हैं. स्कूल में ज्यादा बच्चे आएंगे, इसका मतलब ज्यादा शिक्षक भी काम पर आएंगे, और बच्चों के मां-बाप स्कूल के गेट पर होंगे, और ये साफ़ नहीं है कि जब इतने व्यस्क भी आपस में संपर्क में आएंगे तो कोरोना वायरस के फैलाव पर कितना असर पड़ेगा.
विशेषज्ञों को आशंका है कि इससे वायरस का फैलाव बढ़ सकता है. यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन और लंदन स्कूल ऑफ हाइजीन एंड ट्रॉपिकल मेडिसिन के एक अध्ययन में बताया गया है कि पर्याप्त कॉन्टेक्ट ट्रेसिंग के बिना अगर ब्रिटेन में स्कूल खुलते हैं तो इसकी दूसरे दौर की लहर में भूमिका होगी और दूसरे दौर की लहर में पहले दौर से ज़्यादा संक्रमण के मामले हो सकते हैं.
देश में हर रोज 60 हजार से अधिक संक्रमण के मामले सामने आ रहे हैं. इस बीच हाल में कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया गया है कि 1 सितंबर से चरणबद्ध तरीक़े से स्कूल खोलने पर विचार चल रहा है. हालांकि अबतक इसके बारे में सरकार की ओर से कोई दिशा-निर्देश जारी नहीं किया गया है. लेकिन अगर ऐसा कुछ फैसला होता है तो इस वक्त स्कूल खोलने के क्या ख़तरे होंगे और क्या ये कदम कोरोना वायरस के प्रकोप को और बढ़ाने का काम करेगा?
रिपोर्ट के मुताबिक, भारत मे स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों की संख्या करीब 33 करोड़ है. इनमें से सिर्फ 10.3% के पास ही ऑनलाइन पढ़ने की व्यवस्था है. केंद्र ने स्कूलों को खोलने को लेकर कई तरह की गाइडलाइन जारी की हैं, जिसमें सोशल डिस्टेंसिंग और सैनिटाइजेशन के नियम हैं. साथ ही स्कूलों में सिर्फ 30-40% स्ट्रेंथ रखने की भी बात की गई है. हालांकि, स्कूल अभी शुरू नहीं हुए हैं, लेकिन कई स्कूलों में ऑनलाइन क्लासेस चल रही हैं.
Posted By: Utpal kant