रांची : राजधानी में शॉपिंग मॉल नहीं खुलने से व्यवसायियों के साथ-साथ राज्य सरकार को भी राजस्व का नुकसान हो रहा है. सरकार अगर जल्द मॉल खोलने की अनुमति नहीं देती है, तो कई बड़े आउटलेट मॉल छोड़ सकते हैं. उक्त बातें झारखंड चेंबर के अध्यक्ष कुणाल अजमानी ने कही है. श्री अजमानी ने कहा कि अनलॉक के दौरान धीरे-धीरे करके करीब 90 प्रतिशत व्यवसाय खुल चुके हैं. बेहतर होता कि राज्य सरकार मॉल में स्थित शेष 10 प्रतिशत व्यवसाय को भी खोलने की अनुमति दे दे. क्योंकि मॉल के ऑउटलेट संचालकों पर लोन, स्टाफ की सैलरी और मेंटेनेंस कॉस्ट आदि का बोझ होता है.
अगर जल्द मॉल खोलने की अनुमति नहीं दी गयी, तो दुश्वारियां और बढ़ सकती हैं. शहर में कई बड़े आउटलेट का दायरा मॉल से भी बड़ा है, लेकिन वे सभी चालू हैं. ऐसे में मॉल को बंद करने का क्या औचित्य है? चेंबर अध्यक्ष ने भरोसा दिलाया कि कोरोना संकट को देखते हुए मॉल में आनेवाले लोगों की मॉनिटरिंग की व्यवस्था की जायेगी. अगर कोई कोरोना पॉजिटिव चिह्नित होता है, तो मॉल में उपलब्ध सुविधाओं से स्वास्थ्य विभाग को उसकी कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग में सहूलियत होगी.
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व्यवसायियों और सरकार दोनों को हो रहा है आर्थिक नुकसान, खराब हो रहे सामान
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कोरोना को देखते हुए मॉल में आनेवाले लोगों की मॉनिटरिंग की व्यवस्था की जायेगी
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मॉल बंद रहने से कर्मचारियों को िकसी तरह मिल रहा है वेतन
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मॉल नहीं खुलने से 1500 से ज्यादा की नौकरी गयी, कई का वेतन घटा
लॉकडाउन में मिली छूट के बाद लोगों को राहत मिली है. ज्यादातर दुकानें खुलने से जनजीवन सामान्य होने लगा है. लेकिन, शॉपिंग मॉल बंद रहने से यहां के कर्मचारियों के सामने रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया है. विभिन्न मॉल से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से जुड़ेे 1500 से ज्यादा लोगों की नौकरी चली गयी है. वहीं, अन्य कर्मचारियों का वेतन घट कर 40 से 50 फीसदी तक रह गया है. मार्च से ही मॉल बंद रहने के कारण यहां काम करनेवाले स्टाफ को किसी तरह वेतन दिया जा रहा था, लेकिन जब मॉल नहीं खुले, तो मई से वेतन कटौती शुरू हुई और जून से नौकरी जाने लगी.
एक छोटे स्टोर में भी पहले औसतन तीन स्टाफ और एक मैनेजर काम कर रहे थे. कोरोना के बाद अब एक मैनेजर और एक स्टाफ की नौकरी बची है. यानी दो स्टाफ की नौकरी चली गयी. यही नहीं, स्टोर के हाउस कीपिंग स्टाफ भी हटा दिये गये हैं. यही स्थिति रही, तो स्टोर को हमेशा के लिए बंद करने के अलावा कोई विकल्प नहीं रहेगा. मॉल संचालकों के अनुसार, एक मॉल से लगभग 1,000 से 1,500 लोग जुड़े होते हैं. इसमें मल्टीप्लेक्स के कर्मचारी भी शामिल हैं.
रांची में ही न्यूक्लियस मॉल, जेडी हाइ स्ट्रीट मॉल व स्प्रिंग सिटी मॉल के अलावा इस्टर्न मॉल स्थित पैंटालून व सेंट्रल मॉल स्टोर बंद चल रहे हैं. लगभग पांच माह से मॉल बंद होने के कारण स्टोर में रखे सामान के खराब होने का भी अंदेशा है. स्टोर संचालकों का कहना है कि स्टॉक पुराना होने पर लोग इसे लेना नहीं चाहेंगे. बचे स्टॉक को किसी तरह डिस्काउंट देकर निकालना होगा.
अन्य प्रदेशों में खुले हैं मॉल : न्यूक्लियस मॉल के प्रोपराइटर विष्णु अग्रवाल ने कहा कि मॉल बंद हुए पांच माह हो गये हैं. झारखंड छोड़ कर अन्य सभी प्रदेशों में मॉल खुले हैं. मॉल में 500 से 1,000 स्क्वायर फीट की दुकानें होती हैं, जहां सोशल डिस्टैंसिंग का पालन अच्छे तरीके से होगा. सरकार को हर दृष्टिकोण से सोचना चाहिए. अभी स्थिति यह है कि कई लोग दुकान से सामान भी नहीं निकाल पा रहे हैं. कई सामान खराब हो रहे हैं. सरकार से अनुरोध है कि मॉल खोलने की अनुमति दी जाये. अकेले न्यूक्लियस मॉल से किराया के जीएसटी के रूप में हर माह 69 लाख रुपये दिये जाते हैं.
मॉल बंद करने का निर्णय गलत : जमशेदपुर से आये राजकुमार अग्रवाल ने कहा कि भारत में 800 मॉल चल रहे हैं. लेकिन, झारखंड में अब तक मॉल नहीं खोले गये हैं. इंडस्ट्री चल रही है. मॉल बंद करने का निर्णय गलत है. स्प्रिंग सिटी मॉल के प्रोपराइटर संजीव गुप्ता ने कहा कि मॉल बंद रहने से कोई परपस सॉल्व नहीं हो रहा है. माल खराब हो रहा है. मौके पर धनबाद के कशिश व्यास, जेडी मॉल के प्रोपराइटर अनुराग सरावगी, सुमित सिंह, संजय जायसवाल आदि उपस्थित थे.
Post by : Pritish Sahay