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Hartalika Teej 2020 : महिलाओं ने हरतालिका तीज का व्रत रख कर पति के दीर्घायु की कामना की

Hartalika Teej 2020 : गुमला जिला में हरितालिका या हरतालिका तीज (गौरी तृतीया) व्रत हर्षोल्लास से मना. हरतालिका तीज को लेकर महिलाओं ने निर्जला व्रत धारण कर भगवान शिव, माता पार्वती एवं भगवान श्री गणेश की पूजा-अर्चना कर पति के दीर्घायु एवं घर-परिवार में सुख, शांति एवं समृद्धि की कामना की. वहीं छोटी उम्र की कन्याओं ने भी हरतालिका तीज का व्रत रखी और भगवान शिव जैसे तेजस्वी पति एवं घर-परिवार में सुख, शांति एवं समृद्धि की कामना की.

Hartalika Teej 2020 : गुमला (जगरनाथ) : गुमला जिला में हरितालिका या हरतालिका तीज (गौरी तृतीया) व्रत हर्षोल्लास से मना. हरतालिका तीज को लेकर महिलाओं ने निर्जला व्रत धारण कर भगवान शिव, माता पार्वती एवं भगवान श्री गणेश की पूजा-अर्चना कर पति के दीर्घायु एवं घर-परिवार में सुख, शांति एवं समृद्धि की कामना की. वहीं छोटी उम्र की कन्याओं ने भी हरतालिका तीज का व्रत रखी और भगवान शिव जैसे तेजस्वी पति एवं घर-परिवार में सुख, शांति एवं समृद्धि की कामना की.

इस दौरान सूर्य मंदिर चेटर के पुजारी पंडित विकास मिश्र बबलू ने विभिन्न जगहों पर हरतालिका तीज का पूजा कराया. उन्होंने बताया कि हरतालिका तीज का व्रत हिंदू धर्म में सबसे बड़ा व्रत माना जाता है. यह तीज का त्यौहार भाद्रपद मास शुक्ल की तृतीया तिथि को मनाया जाता है. खासतौर पर महिलाओं द्वारा यह त्यौहार मनाया जाता है. इसके साथ कम उम्र की लड़कियों के लिए भी हरतालिका का व्रत श्रेष्ठ समझा गया है. गुमला जिला में हरितालिका तीज से जुड़ी हर Hindi News से अपडेट रहने के लिए बने रहें हमारे साथ.

विधि- विधान से हरतालिका तीज का व्रत करने से विवाहित महिलाओं को अखंड सौभाग्य मिलता है, वहीं कुंवारी कन्याओं को मनचाहे वर की प्राप्ति होती है. हरतालिका तीज में भगवान शिव, माता पार्वती एवं श्री गणेश के पूजा का महत्व है. यह व्रत निराहार एवं निर्जला किया जाता है. हरितालिका तीज के व्रत से महिलाओं में संकल्प शक्ति बढ़ती है.

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हरतालिका तीज का व्रत महिला प्रधान है. इस दिन महिलाएं बिना कुछ खाये- पिये व्रत रखती हैं. यह व्रत संकल्प शक्ति का एक अनुपम उदाहरण है. हरतालिका तीज का व्रत मुख्य रूप से माता पार्वती से जुड़ा हुआ है. माता पार्वती ने अपने बाल्यावस्था में पर्वतराज हिमालय पर स्थित गंगा के तट पर 12 वर्षों तक अधोमुखी होकर घोर तप किया था. इन 12 वर्षों में माता पार्वती ने अन्न ग्रहण नहीं किया था. पेड़ों के सूखे पत्ते चबा कर निरंतर तप किया और भाद्रपद शुक्ल तृतीया को हस्त नक्षत्र के दिन रेत से शिवलिंग का निर्माण कर भगवान शिव की पूजा एवं व्रत रातभर भगवान शिव की स्तुति किया.

इससे भगवान शिव का आसन्न डोलने लगा. तब भगवान शिव ने प्रसन्न होकर माता पार्वती से वर मांगने के लिए कहा. जिस पर माता पार्वती ने भगवान शिव को अपने पति के रूप में वर मांगा. तब भगवान शिव ने माता पार्वती को वर दिया. चूंकि माता पार्वती के पिता माता पार्वती का विवाह भगवान श्रीहरि विष्णु से करना चाहते थे, लेकिन माता पार्वती भगवान शिव की अर्द्धांग्नी बनना चाहती थी. इसलिए माता पार्वती ने 12 वर्षों तक तपस्या कर भगवान शिव की पूजा की. इसके बाद माता पार्वती की इच्छा पूरी हुई. इसलिए सौभाग्य की इच्छा करने वाली प्रत्येक युवती को यह व्रत पूरी एकनिष्ठा तथा आस्था से करनी चाहिए.

Posted By : Samir Ranjan.

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