कोरोना वायरस के संक्रमण से पैदा हुई मौजूदा महामारी ने हमारी स्वास्थ्य सेवा की अनेक विसंगतियों को उजागर किया है. कोविड-19 की वजह से गंभीर रूप से बीमार ज्यादातर रोगियों का उपचार सरकारी अस्पतालों में ही हुआ है तथा सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा की क्षमताओं को बढ़ा कर ही कई जगहों पर संक्रमण को जानलेवा होने से रोका गया है. जिन कुछ राज्यों में प्राथमिक और अन्य चिकित्सा केंद्र बेहतर ढंग से चलाये जा रहे हैं, वहां महामारी काफी हद तक काबू में है. बीते दशकों में कस्बों से लेकर महानगरों तक निजी अस्पतालों और क्लिनिकों की तादाद बहुत तेजी से बढ़ी है, लेकिन यह बेहिचक कहा जा सकता है कि कोरोना संकट का सामना करने में उनकी भूमिका अपेक्षा और क्षमता से बहुत कम रही है. इस दौरान जांच और इलाज के लिए भारी रकम वसूलने की शिकायतें भी खूब सामने आयी हैं.
सरकारों और अदालतों के दखल के बाद ही लोगों को कुछ राहत मिल सकी है. तो, कोरोना संकट की यह बड़ी सीख है कि सरकारें अधिक-से-अधिक स्वास्थ्य केंद्रों को स्थापित करें तथा मौजूदा अस्पतालों को समुचित संसाधन और पर्याप्त चिकित्साकर्मी मुहैया कराने की कोशिश करें. देश की जनसंख्या का बहुत बड़ा भाग निर्धन और निम्न आय वर्ग का है. इलाज के भारी खर्च की वजह से हर साल लाखों लोग गरीबी रेखा से नीचे चले जाते हैं. इस मुश्किल से निजात के लिए कुछ साल पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आयुष्मान भारत बीमा योजना लागू की, जिसके दायरे में पचास करोड़ लोग आते हैं.
बड़ी आबादी के लिए यह जरूरी राहत है. इसके अलावा राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत टीकाकरण, अन्य बीमा योजनाएं, स्वच्छता, पेयजल आदि सुनिश्चित करने के साथ बड़ी संख्या में स्वास्थ्य केंद्र बनाने तथा हर जिले में मेडिकल कॉलेज स्थापित करने के प्रयास जारी हैं. स्वास्थ्य के मद में खर्च बढ़ाने के लिए भी सरकार प्रतिबद्ध है. उल्लेखनीय है कि भारत उन देशों की कतार में शामिल है, जो अपने सकल घरेलू उत्पादन का बेहद मामूली हिस्सा ही सार्वजनिक स्वास्थ्य पर खर्च करते हैं. यदि देशभर में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र उपलब्ध हों, तो बहुत सारी बीमारियों को शुरुआती स्तर पर ही ठीक किया जा सकेगा.
इससे अस्पतालों के बोझ को कम करने में भी मदद मिलेगी. यह इसलिए भी जरूरी है कि हमारे देश में जनसंख्या के हिसाब से स्वास्थ्यकर्मी और कई गंभीर बीमारियों के विशेषज्ञ बहुत कम हैं. प्रदूषित जल पीने से और सामान्य जागरूकता के अभाव में रोगों से ग्रस्त होकर हर साल लाखों लोग मर जाते हैं. यदि शहरों की गरीब बस्तियों, गांव-देहात और दूर-दराज के इलाकों में अस्पताल ठीक से कार्यरत हों, तो ऐसे लोगों को बचाया जा सकता है. विभिन्न कार्यक्रमों के साथ स्वास्थ्य से संबंधित डाटा रखने तथा तकनीक का इस्तेमाल बढ़ाने की सरकार की योजनाएं सराहनीय हैं, लेकिन उनका पूरा फायदा तभी मिल सकेगा, जब लोगों को अस्पतालों की सुविधा उपलब्ध होगी.