नयी दिल्ली : कोरोना संक्रमण के बढ़ते संक्रमण के बीच माहे मुहर्रम का चांद नजर आ गया है. इसके साथ ही 21 अगस्त से मुहर्रम की शुरुआत हो जाएगी. हालांकि कोरोना संकट के बीच इस बार धार्मिक जुलूस निकालने पर कई जगहों पर पाबंदी लगा दी है.
इस्लाम के मानने वालों के लिए मुहर्रम गम का महीना होता है. क्योकिं मुहर्रम के महीने में ही कर्बला की जंग हुई थी. उस जंग में इमाम हुसैन के साथ उनके 72 साथियों की शहादत हुई थी. जिनके गम में लोग आज भी मातम करते हैं.
मुहर्रम में सबसे खास होता है 10वां दिन. इस दिन को रोज-ए आशूरा कहा जाता है. ऐसी मान्यता है कि मुहर्रम के 10वें दिन में ही इमाम हुसैन की शहीदत हुई थी. उन्हीं की गम में लोग ताजिए निकाले जाते हैं.
यौमे आशूरा का सभी मुसलमानों के लिए विशेष महत्व होता है. शिया मुसलमानों के लिए इसकी खास अहमियत है. यह दिन मोहर्रम की दसवीं तारीख होती है. आशूरा करबला में इमाम हुसैन की शहादत की याद में मनाया जाता है. शिया मुसलमान इस दिन उपवास रख कर उस घड़ी को याद करते हैं. इस दिन ताजिए निकाल कर और मातम कर हुसैन की शहादत का गम मनाया जाता है. पुरुष और महिलाएं काले लिबास पहन कर मातम में हिस्सा लेते हैं. इस दिन श्रद्धालु स्वंय को जंजीरों और छुरियों से घायले कर लहूलुहान कर लेते हैं.
Posted By – Arbind Kumar Mishra