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तसर बीज की जल्द खरीदारी पर विधायक दशरथ गागराई ने सीएम को लिखा पत्र

Jharkhand news, Kharswan news : कोल्हान में तसर बीज कोए (कोसा) की काफी अच्छी पैदावार हुई है, लेकिन आवंटन के अभाव में सरकारी स्तर पर खरीदारी नहीं हो पा रही है. इस संबंध में प्रभात खबर में खबर प्रकाशित होने के बाद विधायक दशरथ गागराई ने इस मामले को लेकर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का ध्यान आकृष्ट कराया है.

Jharkhand news, Kharswan news : खरसावां (शचिंद्र कुमार दाश) : कोल्हान में तसर बीज कोए (कोसा) की काफी अच्छी पैदावार हुई है, लेकिन आवंटन के अभाव में सरकारी स्तर पर खरीदारी नहीं हो पा रही है. इस संबंध में प्रभात खबर में खबर प्रकाशित होने के बाद विधायक दशरथ गागराई ने इस मामले को लेकर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का ध्यान आकृष्ट कराया है.

इस संबंध में विधायक दशरथ गागराई ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को पत्र लिख कर कहा है कि इस वर्ष तसर कोसा की खेती बड़े पैमाने पर हुई है, परंतु राशि के अभाव में इसकी खरीदारी अब तक प्रारंभ नहीं होने की सूचना है. विधायक ने कहा है कि ऐसी संभावना है कि समय पर बीजागार (ग्रेनेज हाउस) के लिए कोसा की खरीदारी नहीं होने पर दूसरे चरण की खेती प्रभावित होगी. इससे काफी संख्या में तसर उत्पादक किसान प्रभावित होंगे. विधायक दशरथ गागराई ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से आग्रह किया है कि ससमय राशि उपलब्ध कराते हुए तसर कोसा की खरीदारी सुनिश्चित किया जाये, ताकि तसर टीकपालकों राहत पहुंचाया जा सका.

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तसर बीज उत्पादन का गढ़ है कोल्हान, जानिए सरकार ने इस साल पैदावार का क्या तय किया है लक्ष्यकोल्हान में होता है राज्य में सर्वाधिक तसर कोसा का उत्पादन

मालूम हो कि इस वर्ष कोल्हान में तसर बीज कोए (कोसा) की काफी अच्छी पैदावार हुई है, लेकिन आवंटन के अभाव में सरकारी स्तर पर खरीदारी नहीं हो पा रही है. कोल्हान के खरसावां पीपीसी में 6 लाख और हाटगम्हरिया पीपीसी में 4 लाख तसर बीज कोए (कोसा) की खरीदारी करने की योजना है. हर वर्ष बीजागार के लिए कोए का क्रय 16 अगस्त से शुरू हो जाता है. अगर समय पर बीज कोए की खरीदारी नहीं हो पायी, तो दूसरे चरण के तसर की खेती पर भी प्रतिकूल असर पड़ेगा. पूरे देश का लगभग 80 फीसदी तसर रेशम का उत्पादन झारखंड में ही होता है. साथ ही राज्य में सर्वाधिक कोसा का उत्पादन कोल्हान में होता है.

खरसावां और हाटगम्हरिया में 10 लाख बीज कोए का होता है बीजागार

खरसावां और हाटगम्हरिया पीपीसी में 10 लाख बीज कोए का बीजागार किया जाता है. इसके बाद डीएफएल का उत्पादन कर इन दोनों ही पीपीसी के कमांड क्षेत्र में करीब 1000 न्यूक्लियस बीज कीटपालकों के जरीय कीटपालन करवाया जाता है. इससे करीब एक करोड़ बीज कोए तैयार कर इसका बीजागार किया जाता है. इन्हीं बीजागार से उत्पादित डीएफएल से क्षेत्र के सभी रेशमदूतों को आपूर्ति होती है. तब जाकर दोबारा वाणिज्यिक फसल तैयार होता है.

Posted By : Samir Ranjan.

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