मुंबई : भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) ने कोरोना वायरस महामारी से प्रभावित अर्थव्यवस्था को उबारने तथा उद्योग जगत की ओर से ऋण पुनर्गठन की बढ़ती मांग के बीच द्वैमासिक मौद्रिक नीति पर मंगलवार को तीन दिवसीय चर्चा शुरू कर दी. रिजर्व बैंक के गवर्नर की अध्यक्षता वाली छह सदस्यीय समिति 6 अगस्त को बैठक के नतीजों की घोषणा करने वाली है. यह एमपीसी की 24वीं बैठक है.
रिजर्व बैंक अर्थव्यवस्था पर कोरोना वायरस महामारी तथा इसकी रोकथाम के लिए लागू लॉकडाउन के असर को सीमित करने के लिए पिछले कुछ समय से लगातार सक्रियता से कदम उठा रहा है. तेजी से बदलती वृहद आर्थिक परिस्थिति तथा वृद्धि के बिगड़ते परिदृश्य के कारण रिजर्व बैंक की दर निर्धारण समिति को पहले मार्च में और फिर मई में समय से पहले ही बैठक करने की जरूरत पड़ी थी.
मार्च और मई 2020 के अंत में हुई बैठकों में रेपो रेट में कुल 1.15 फीसदी की कटौती कर कर्ज को सस्ता किया जा चुका है. इससे पहले फरवरी 2019 से अब तक रेपो रेट में 2.50 प्रतिशत तक कटौती की जा चुकी है. इस बीच, सवाल यह भी है कि रिजर्व बैंक ने लॉकडाउन के दौरान कर्ज लेने वालों को जिस ऋण अधिस्थगन (लोन मोराटोरियम) की सुविधा दी थी, वह क्या अगस्त के बाद आगे के लिए भी बढ़ाया जाएगा या फिर कर्ज लेने वालों को सितंबर से पहले की तरह मासिक किस्तों का भुगतान करना होगा?
हालांकि, विशेषज्ञों के बीच इस बात को लेकर एकराय नहीं है कि समिति इस सप्ताह की बैठक में नीतिगत दर में कटौती करेगी या नहीं. कई विशेषज्ञों की राय है कि मौजूदा स्थिति में कर्ज का एक बार पुनर्गठन अधिक आवश्यक है. भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) की एक शोध रिपोर्ट इकोरैप में कहा गया कि बैंकों ने भी नये कर्ज पर 0.72 फीसदी तक ब्याज को सस्ता किया है.कुछ बड़े बैंकों ने तो 0.85 फीसदी तक का लाभ ग्राहकों को दिया है. यह शायद भारतीय इतिहास में सबसे तेजी से राहत दिये जाने का मामला है. एसबीआई ने रेपो से जुड़े कर्ज की ब्याज दरों को 1.15 फीसदी सस्ता किया है.
उल्लेखनीय है कि मांस, मछली, खाद्यान्न और दालों की अधिक कीमतों के कारण उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) आधारित खुदरा मुद्रास्फीति जून में 6.09 फीसदी पर पहुंच गयी. हालांकि, रिजर्व बैंक को सरकार ने खुदरा मुद्रास्फीति को चार फीसदी (दो प्रतिशत ऊपर या नीचे) के दायरे में रखने का लक्ष्य दिया है. रिजर्व बैंक मौद्रिक नीति निर्धारित करते समय मुख्य रूप से सीपीआई पर गौर करता है.
इसके साथ ही, देश में लागू लॉकडाउन की वजह से लोगों की आमदनी पर काफी फर्क पड़ा है. वेतनभोगियों से लेकर छोटे-बड़े कारोबारियों की आमदनी प्रभावित हुई है. ऐसे में, आरबीआई की ओर से ऋण अधिस्थगन की सुविधा देकर उन्हें राहत पहुंचाई गयी थी. अब जब कि अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने का प्रयास किया जा रहा है और आरबीआई और सरकार लॉकडाउन के दौरान दी गयी सुविधाओं को समाप्त करने की ओर कदम बढ़ा रहे हैं, तो उससे उदारवादी रुख को आगे बढ़ाए रखने की उम्मीद की जा रही है. विशेषज्ञों का मानना है कि एमपीसी तेजी से बदलते व्यापक आर्थिक माहौल के मद्देनजर मौद्रिक नीति पर उदार रुख बरकरार रखेगी.
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Posted By : Vishwat Sen
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