बत्तीस वर्षों से दृढ़ विश्वास था कि एक दिन श्रीरामलला की जन्मभूमी पर भव्य दिव्य नव्य मंदिर अवश्य बनेगा. आज भारत के प्रधानमंत्री द्वारा श्रीरामलला की जन्मभूमि पर मंदिर निर्माण के लिए पूजन होता देख मन प्रसन्न हो उठा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मांगलिक वेशभूषा में पीत वर्ण का धोती कुर्त्ता और अंगवस्त्र धारण कर पूजन में पधारे. जब राष्ट्र के प्रधान ने रामलला को दंडवत प्रणाम किया, तो मन गदगद हो गया. यह दृश्य देख कर एक अलौकिक आनंद का अनुभव हो रहा था. इस पल को साक्षात देखने का मौका व सौभाग्य मिला. ऐसा लग रहा था जैसे राम राष्ट्र भारत में मानों फिर से रामराज्य की आधार शिला रखी जा रही हो.
संध्याकाल में दीपमालाओं से अलंकृत हो इठलाती अयोध्या : मंदिर निर्माण के विधिवत शुभारंभ से असीम आनंद, उत्साह और संतुष्टि प्राप्त हो रही है. आनंद की इस घड़ी में अयोध्या का जन मन उल्लासित है. सभी मंदिरों ने अपने राम के स्वागत में नवीन श्रृंगार किया है. सरयू की धारा भी आनंद के हिलकोरे खा रही. अयोध्या की पावन विथिया संध्याकाल में दीपमालाओं से अलंकृत हो इठला रही थी.
सभी मत-पंथों के संत भारत के विविध भागों से पधारे हुये थे. रेलगाड़ियों की बंदी तथा अयोध्या प्रवेश में रोक-टोक होने के बाद भी एक सप्ताह पूर्व से ही संपूर्ण देश के भक्तगण आकर अयोध्या में जमे हुए हैं. चारों ओर जय श्रीराम का घननाद गूंजायमान हो रहा है. संपूर्ण अयोध्या भगवामय हो गयी है. भूमि पूजन अनुष्ठान के संपन्न होने पर सबको बधाई. मंगलकामनायें. जय श्रीराम…
नयी नवेली दुल्हन की तरह अयोध्या : अयोध्या आज नयी नवेली दुल्हन की तरह सजी धजी हुई है. अयोध्या नगरी आंखों के सामने तुलसी बाबा का राम चरित मानस में 14 वर्ष के वनवास से लौटने का चित्रण सही मायने में आज पूरा होता दिख रहा है. आज ऐतिहासिक दिन, जिसे भारत वर्ष में ही नहीं समूचे जगत में सुनहरे अक्षरों से लिखा जायेगा. हर सनातनी के मन का सपना एक विश्वास जैसे पूर्ण रूप लेने को अग्रसर है.
33 वर्ष समर्पित करने के बाद आज यह दृश्य देख पाया : मैं युवावस्था से ही लगातार विश्व हिंदू परिषद के माध्यम से जीवन के 33 वर्ष समर्पित करने के बाद आज यह दृश्य देख पा रहा हूं. 1989 में अपने नगर में शिला पूजन कार्यक्रम संपन्न कर जन जागरण व संघर्ष के अनेक कार्यक्रमों में सहभागिता व कालांतर में नेतृत्व करते रहे हैं.
1990 के 30 अक्टूबर व दो नवंबर को मुलायम सिंह की गोलियों ने जिनका जीवन छीन लिया उन शरद कोठारी व राम कुमार कोठारी सहित सैकड़ों बलिदानी वीरों के अस्थि कलश यात्रा के साथ रांची की सड़कों पर हम लोग पैदल चले है.
1992 की गीता जयंती के अवसर पर संपन्न छह दिसंबर की कार सेवा व सुषुप्त हिंदू शौर्य के विराट प्रकटीकरण का वह दृश्य सहसा आंखों में तैर जाता है. जन्मभूमि पर लगे बाबरी कलंक को धाराशायी कर रचे गये नवीन इतिहास के निर्माताओं में सम्मिलित होकर जिस अपार गौरव की अनुभूति हुई थी, वह गौरव आज काल की धूल झाड़ कर हर्षोल्लास की वर्षा कर रहा है.
Post by : Pritish Sahay