मुंबई : भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) आगामी मौद्रिक नीति समीक्षा में रेपो रेट में कोई बदलाव नहीं करेगा. एसबीआई की एक रिपोर्ट में यह अनुमान लगाया गया है कि मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) वित्तीय स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए ‘गैर-परंपरागत नीतिगत उपाय’ कर सकती है. हालांकि, इसके पहले विदेशी ब्रोकरेज कंपनी बार्कलेज के विशेषज्ञों ने गुरुवार को कहा कि रिजर्व बैंक को अर्थव्यवस्था की रफ्तार तेज करने के लिए सकल मुद्रास्फीति में वृद्धि के बावजूद अगले सप्ताह मौद्रिक नीति समीक्षा में रेपो रेट में एक बार फिर कटौती करनी चाहिए. आरबीआई के गवर्नर की अगुआई वाली एमपीसी की तीन दिन की बैठक 4 अगस्त को शुरू होगी. बैठक के नतीजों की घोषणा 6 अगस्त को की जाएगी.
एसबीआई रिसर्च की रिपोर्ट-इकोरैप में कहा गया है, ‘हमारा मानना है कि अगस्त में रिजर्व बैंक दरों में कटौती नहीं करेगा. एमपीसी की बैठक में इस बात पर चर्चा होगी कि मौजूदा परिस्थतियों में वित्तीय स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए और क्या गैर-परंपरागत उपाय किए जा सकते हैं.’ रिपोर्ट में कहा गया है कि फरवरी से रेपो रेट में 1.15 फीसदी की कटौती हो चुकी है. बैंकों ने ग्राहकों को नये कर्ज पर इसमें से 0.72 फीसदी कटौती का लाभ दिया है. कुछ बड़े बैंकों ने तो 0.85 फीसदी तक का लाभ स्थानांतरित किया है.
रिपोर्ट कहती है कि इसकी वजह यह है रिजर्व बैंक ने नीतिगत उद्देश्यों को पाने के लिए आगे बढ़कर तरलता को एक माध्यम के रूप में इस्तेमाल किया. रिपोर्ट में कहा गया है कि लॉकडाउन के दौरान लोगों ने वित्तीय परिसंपत्तियां रखने को प्राथमिकता दी है. इससे देश में वित्तीय बचत को प्रोत्साहन मिला है. रिपोर्ट के अनुसार, ‘वित्त वर्ष 2020-21 में वित्तीय बचत में इजाफा होगा. इसकी एक वजह लोगों द्वारा एहतियाती उपाय के तहत बचत करना भी है.’
हालांकि, इसके पहले विदेशी ब्रोकरेज कंपनी बार्कलेज के विशेषज्ञों ने गुरुवार को कहा कि रिजर्व बैंक को अर्थव्यवस्था की रफ्तार तेज करने के लिए सकल मुद्रास्फीति में वृद्धि के बावजूद अगले सप्ताह मौद्रिक नीति समीक्षा में रेपो रेट में एक बार फिर कटौती करनी चाहिए. बार्कलेज के विश्लेशकों ने कहा कि मुद्रास्फीति की ऊंची दर आरबीआई के नीति परिदृश्य को लेकर भ्रम पैदा कर रही है, लेकिन उसने ‘हवा के रुख को भांपते हुए’ मांग बढ़ाने के लिये रेपो रेट में 0.25 फीसदी की कटौती की वकालत की.
Posted By : Vishwat Sen
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