नयी दिल्ली: इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च, स्वास्थ्य मंत्रालय और अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान के साथ मिलकर कोरोना मरीजों के लिये एक डाटाबेस तैयार करने जा रहा है. इसे नेशनल कोविड रजिस्ट्री नाम दिया गया है.
100 अस्पताल और मेडिकल कॉलेजों को जोड़ा जायेगा
इस परियोजना के तहत परखा जायेगा कि कोरोना मरीजों का और कैसे बेहतर ढंग से इलाज किया जा सकता है. नेशनल रजिस्ट्री परियोजना में देश भऱ के तकरीबन 100 अस्पतालों को जोड़ने की योजना है.
इस परियोजना के तहत ये भी परखा जायेगा कि इलाज की कौन सी नयी पद्दतियां कोरोना मरीजों के लिये ज्यादा कारगर साबित होंगी. साथ ही इसके जरिये कोरोना वैक्सीन के ट्रायल में भी मदद मिलने की उम्मीद जताई गयी है.
देश में हेल्थ से जुड़े 15 संस्थानों सहित कई अस्पतालों और मेडिकल कॉलेजों को इस परियोजना के तहत एक नेटवर्क से जोड़ा जायेगा. इससे पहले आईसीएमआर की एथिक्स समिति की मंजूरी का इंतजार किया जा रहा है.
15 प्रमुख संस्थानों के साथ शुरू हो रही परियोजना
आईसीएमआर के महानिदेशक डॉ. बलराम भार्गव ने बताया कि राष्ट्रीय स्तर के 15 संस्थानों के सहयोग से एक राष्ट्रीय कोविड रजिस्ट्री शुरू की जा रही है. इसमें कई अन्य अस्पतालों और मेडिकल कॉलेजों से भी शामिल होने की अपील की गयी है. उन्होंने इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में कहा कि हमारे पास पहले से ही स्वास्थ्य मंत्रालय का डाटा है. हमारे पास आईसीएमआर का भी डाटा है. लेकिन वे सभी संक्रमितों, मृतकों और ठीक हो चुके मरीजों का डाटा है.
नयी नेशनल कोविड रजिस्ट्री के जरिये ये डाटाबेस तैयार किया जायेगा. पता लगाया जायेगा कि जो लोग ठीक हो रहे हैं, उनमें क्या समानतायें हैं. वे कैसे ठीक हो रहे हैं. उसमें रोग प्रतिरोधक क्षमता और दवाइयों का कितना योगदान है. पता लगाया जायेगा कि मरने वालों की क्या दिक्कत थी. इसका रोग प्रतिरोधक क्षमता का कितना संबंध है. क्या वे अनुवांशिक तौर पर ही कमजोर थे या किसी बीमारी को ढो रहे थे.
कोरोना मरीजों के लिये इलाज में बड़ा फायदा मिलेगा
नेशनल कोविड रजिस्ट्री बनाने की सिफारिश करने वाले नीति आयोग के सदस्य डॉ. वीके पॉल ने कहा कि इस परियोजना के जरिये कोरोना वायरस को लेकर किये जा रहे अनुसंधान को बढ़ावा दिया जायेगा. बता दूं कि डॉ. पॉल कोविड-19 के लिये बनाये गये नेशनल टास्क फोर्स के अध्यक्ष हैं.
डॉ. पाल के मुताबिक उनकी टीम की कोशिश उन संस्थानों का एक नेटवर्क तैयार करना है जो देश के अलग-अलग हिस्सों में गंभीरता से कोरोना मरीजों की देखभाल और इलाज कर रहे हैं. इसमें क्लिनिकल एंटरप्राइजेज और क्लिनिकल वर्क से हासिल आंकड़ों के जरिये व्यवस्थित, वैज्ञानिक और संरक्षित तरीके से डाटा जुटाया जायेगा.
डॉक्टरों, वैज्ञानिकों, विश्लेषकों और जैव वैज्ञानिकों की एक टीम इस डाटाबेस को संचालित करेगी. इस स्टडी के जरिये कोरोना महामारी को बेहतर ढंग से समझा जा सकेगा. इसी के मुताबिक सही डिसीजन लिया जा सकेगा.
इस स्टडी के जरिये पता लगाया जायेगा कि बीमारी को फैलने में कौन से कारक मदद करते हैं. इसका क्या प्रतिकूल परिणाम होता है. साथ ही ये पता लगाने की कोशिश की जायेगी कि क्या कोरोना संक्रमण के पीछे और भी कारक काम करते हैं.
डॉ. पॉल का कहना है कि इस डाटाबेस के जरिये पता लगाने की कोशिश की जायेगी कि, जो मरीज मर गये, उसका क्या कारण था. जो ठीक हो गये, उसके पीछे क्या कारण था. ये वातावरण का दोष है या अनुवांशिक तौर पर ही मरने वाले कमजोर थे. क्या शरीर में मौजूद कुछ तत्व इसके लिये जिम्मेदार हैं.
विभिन्न लिंग और आयु वर्ग के बारे में सटीक जानकारी
इसमें ये भी पता लगाया जा सकेगा कि किस लिंग या आयु वर्ग के लोगों को कोरोना वायरस ज्यादा नुकसान पहुंचा रहा है. किस लिंग या आयु वर्ग के लोग गंभीर रूप से बीमार पड़ जाते हैं और किस लिंग या आयु वर्ग के लोगों की व्यापक पैमाने पर मौत हो जाती है. इससे स्वास्थ्यकर्मियों को इलाज करने में सुविधा मिलेगी, साथ ही वैक्सीन के ट्रायल में भी मदद मिलेगी.
किस लिंग या आयु वर्ग को कौन सी दवा देनी है. नेशनल कोविड रजिस्ट्री इसमें भी स्वास्थ्यकर्मियों की मदद करेगी.
कांफ्रेंस का आयोजन करेगा आईसीएमआर
आईसीएमआर एक कांफ्रेस या सम्मेलन का आयोजन करने का भी प्लान बना रहा है. इसमें अमेरिका के महामारी विशेषज्ञ डॉ. एंथोनी फाउची सहित कई प्रमुख हस्तियां जुड़ेंगी. इस कांफ्रेस का टॉपिक होगा, नोवेल आइडियाज इन साइंस एंड एथिक्स ऑफ वैक्सीन.
Posted By- Suraj Kumar Thakur