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Congress Crisis : सिंधिया-पायलट के बाद अब किसकी बारी, कौन छोड़ने वाला है कांग्रेस, नजरें ‘राहुल ब्रिगेड’ पर

Congress Crisis : पहले मध्य प्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया और अब राजस्थान में सचिन पायलट की बगावत के बाद कांग्रेस में पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी की कार्यशैली और उनके नजदीकी समझे जाने वाले नेताओं पर सबका ध्यान केंद्रित है. राजस्थान के घटनाक्रम के बाद पार्टी में आशंका का माहौल है और लगभग सभी इस सवाल से जूझ रहे हैं कि ‘‘अगला कौन?'

Congress Crisis : पहले मध्य प्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया और अब राजस्थान में सचिन पायलट की बगावत के बाद कांग्रेस में पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी की कार्यशैली और उनके नजदीकी समझे जाने वाले नेताओं पर सबका ध्यान केंद्रित है. राजस्थान के घटनाक्रम के बाद पार्टी में आशंका का माहौल है और लगभग सभी इस सवाल से जूझ रहे हैं कि ‘‘अगला कौन?’

कांग्रेस कार्यसमिति के एक सदस्य ने नाम नहीं दिये जाने का आग्रह करते हुए ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, जाहिर है हम सोचने पर मजबूर हुए हैं कि जब ऐसे नेता, जिन्हें कम समय में काफी जिम्मेदारी दी गई और जिनकी प्रतिभा का उपयोग पार्टी अपनी भविष्य की रणनीति के लिए करने को लेकर आश्वस्त थी, वे भी अगर संतुष्ट नहीं हैं तो कहीं न कहीं गड़बड़ तो है.

सचिन पायलट व ज्योतिरादित्य सिंधिया बगावत का झंडा उठाने वाले उन नेताओं में नए हैं जिन्हें पार्टी में ‘राहुल बिग्रेड’ के सदस्य के तौर पर जाना जाता रहा है. इस ‘ब्रिगेड’ के अन्य नेताओं में पार्टी की हरियाणा इकाई के पूर्व अध्यक्ष अशोक तंवर, मध्य प्रदेश इकाई के पूर्व अध्यक्ष अरुण यादव, मुंबई इकाई के पूर्व प्रमुख मिलिंद देवड़ा एवं संजय निरुपम, पंजाब प्रदेश कांग्रेस कमेटी के पूर्व अध्यक्ष प्रताप सिंह बाजवा, झारखंड इकाई के पूर्व अध्यक्ष अजय कुमार और कर्नाटक इकाई के पूर्व अध्यक्ष दिनेश गुंडुराव जैसे नाम शामिल हैं.

इनके अलावा एक समय उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश के प्रभारी महासचिव रहे क्रमश: मधुसूधन मिस्त्री, मोहन प्रकाश, दीपक बाबरिया, उत्तर प्रदेश इकाई के पूर्व अध्यक्ष राजबब्बर और फिलहाल संगठन महासचिव के सी वेणुगोपाल तथा राजस्थान के प्रभारी महासचिव अविनाश पांडे भी इस श्रेणी में आते हैं.

कांग्रेस में सूत्रों ने स्वीकार किया कि पार्टी में इस समूह (राहुल ब्रिगेड) को ज्यादा अहमियत मिलने से नाराजगी बढ़ी है. खासकर, इनमें से ज्यादातर के पद न रहने पर विद्रोही तेवर दिखाने से. इन सूत्रों का आरोप था कि इनमें से अधिकांश नेता उन्हें सौंपी गई जिम्मदारी पर खरे नहीं उतरे और पार्टी में गुटबाजी को प्रोत्साहित करते रहे.

कांग्रेस के एक अन्य वरिष्ठ नेता ने से कहा, जो नेता कांग्रेस में बहुत कुछ पाने के बाद आज पार्टी के खिलाफ जा रहे हैं वे अपने साथ धोखा कर रहे हैं. सभी को यह समझना चाहिए कि इस वक्त पार्टी से मांगने का नहीं, बल्कि पार्टी को देने का समय है. दूसरी तरफ, पार्टी से अलग हो चुके हरियाणा प्रदेश कांग्रेस कमेटी के पूर्व अध्यक्ष अशोक तंवर का कहना है कि इस बात में कोई दम नहीं है कि राहुल गांधी ने जिन नेताओं को जिम्मेदारी दी वो उम्मीदों पर खरे नहीं उतरे.

उन्होंने कहा, एक युवा नेता पायलट की बदौलत ही राजस्थान विधानसभा चुनाव में कांग्रेस 21 से 100 सीटों के करीब पहुंची. हरियाणा में युवा टीम की मेहनत का नतीजा था कि 30 से ज्यादा सीटें आईं. अगर युवा नेताओं को पूरा मौका मिलता तो पार्टी की स्थिति कुछ और होती. वैसे, राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि कांग्रेस में ‘पीढी का टकराव’ भी एक प्रमुख कारण था कि राहुल की पसंद के नेता पार्टी में अपने पैर जमा नहीं सके और इनमें से कुछ बगावत कर बैठे.

‘सीएसडीएस’ के निदेशक संजय कुमार ने कहा, पिछले कुछ वर्षों में कांग्रेस के भीतर पीढ़ी का टकराव बड़े पैमाने पर रहा है. पुराने नेता अपनी जगह बनाए रखने के प्रयास में हैं तो युवा नेता और खासतौर पर राहुल के करीबी माने जाने वाले नेता बदलाव पर जोर देते हैं और मौजूदा व्यवस्था में खुद को उपेक्षित महसूस करते हैं. यही कुछ जगहों पर बगावत की वजह बन रहा है.

उधर, कांग्रेस महासचिव और उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री 72 वर्षीय हरीश रावत यह मानने से इनकार करते हैं कि पार्टी के भीतर पीढ़ी का कोई टकराव है. उन्होंने कहा, जो स्थिति दिख रही है वो भाजपा द्वारा लोकतंत्र पर हमले के कारण है. दुख की बात है कि महत्वाकांक्षा के कारण हमारे यहां के कुछ लोग उनके जाल में फंस गए. बेहतर होता कि अगर ऐसे नेता कोई न्याय चाहते थे तो वो पार्टी के भीतर ही इसका प्रयास करते.

Posted By : Amitabh Kumar

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