Kargil Vijay Diwas 2020 मुजफ्फरपुर: पाकिस्तानी सैनिक लगातार गोलीबारी और बमबारी कर रहे थे. कोर ऑफ सिग्नल ऑपरेटर होने के दुश्मनों के लोकेशन को ट्रेस करना, घुसपैठ, गोला – बारूद के ठिकाने को चिह्नित कर सेना हेडक्वार्टर को अवगत कराना था. युद्ध शुरू होते ही बिहार के लाल कैप्टन मनोहर सिंह को श्रीनगर से चौपर से चार महीने के लिए कारगिल भेजा गया.
शाम आठ बजे चौपर उनकी टुकड़ी को पहाड़ी के ढलान पर उतारकर चला गया. उनके साथ सेना का तीन जवान और एक सिविल ट्रांसलेटर था. रात भर पहाड़ पर ठहरने के लिए पत्थर हटा – हटा कर गड्ढा बनाया. दोनों तरफ से लगातार गोलीबारी जारी थी. उनकी टीम के पास खाने के लिए 72 घंटे का ड्राई भोजन था. एक – एक बोतल पानी था. उसने अपने यंत्रों को स्थापित कर दुश्मनों का लोकेशन ट्रेस करने का काम शुरू किया .
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उनके साथ मौजूद सिविल ट्रांसलेटर अगले दिन सुबह 10 बजे चाय लेने के लिए लंगर में जा रहा था. लेकिन बीच रास्ते में पाकिस्तानी सैनिकों की गोलीबारी में वह शहीद हो गये. वह 72 घंटों से अधिक समय तक ड्यूटी पर डटे रहे. इस दौरान पाकिस्तानी सेना के नौ हथियार के अड्डे को ट्रेस कर लिया.
उन्होंने बताया कि 1998 से 2001 तक उनकी पोस्टिंग श्रीनगर में रही. कारगिल युद्ध के दौरान 60 दिनों तक हर- पल उनके सामने बस एक ही चुनौती थी कि कैसे दुश्मन को पराजित करे. उनकी बहादुरी के लिए कैप्टन पद देकर सम्मानित किया गया.
Posted by : Thakur Shaktilochan Shandilya