गोपालगंज (गोविंद कुमार) : जिले के बरौली प्रखंड के रूपनछाप गांव की 83 वर्षीया पानमती देवी जब आसमान से आती बारिश की बूंदों की ओर देखती हैं, तो डर के मारे सिहर उठती हैं. धरती पर नारायणी (गंडक) का रौंद्र रूप और आसमान में देवराज इंद्र का कहर पानमती ने पहले कभी नहीं देखा था.
जीवन के अंतिम पड़ाव पर आपदा की इस घड़ी को देख पानमती फफक कर रो पड़ती हैं. नदी के आगोश से बचने के लिए रूपनछाप के इस परिवार के पास विस्थापित होने के अलावा और कोई विकल्प नहीं. पानमती की तरह ही रूपनछाप में रहनेवाले करीब साढ़े तीन सौ परिवारों के माथे पर चिंता की लकीरें दिखने लगी हैं.
रूपनछाप गांव के राजेश यादव बताते हैं, ”शुक्रवार से शनिवार तक बांध टूटने के बाद गांव में करीब आठ से 10 फुट तक पानी बढ़ चुका है. नदी की मूल धारा के छोर से पानी ऊपर आ गया है.” पानी अगर इसी रफ्तार से बढ़ता रहा, तो तीन-चार दिनों में मकान की छतों पर रहनेवाले लोग भी डूब जायेंगे. उधर, नाव से पलायन कर नेशनल हाइवे पर शरण लेनेवाले लोगों पर दोहरी मार पड़ी है. बाढ़ के पानी से निकलने के बाद आसमान से बरस रही बारिश ने मुश्किल में डाल दिया है. कई लोग भूखे-प्यासे हैं, जो बारिश से भीग कर बीमार हो चुके हैं. अंदर गांव में मकान की छतों पर रहनेवाले लोगों खाने-पीने और शौच को लेकर सबसे अधिक परेशानी है.
जिला प्रशासन ने बाढ़ प्रभावित गांव के लोगों को एनएच-28 पर शरण लेने के लिए राहत शिविर बनाया है. यहां तंबू और प्लास्टिक तान कर रहनेवाले बाढ़ पीड़ितों के लिए कम्युनिटी किचेन सेंटर खोल दिया गया है. मांझा, बरौली, देवापुर और बैकुंठपुर के गांवों के ग्रामीण सबसे अधिक बाढ़ से प्रभावित हैं. पांच सौ से अधिक बाढ़ पीड़ित परिवार एनएच-28 पर अस्थायी कैंप लगाकर शरण लिये हैं.
एनएच-28 पर तंबू डाल कर रहनेवाले देवापुर गांव के रामशरण यादव ने बताया कि खाने-पीने को लेकर सबसे अधिक परेशानी है. पीने का शुद्ध पानी भी नहीं मिल रहा पा रहा है. बिस्किट और चूड़ा खाकर रात गुजारनी पड़ रही है. माल-मवेशियों के चारे को लेकर सबसे अधिक परेशानी है. पशुपालन विभाग की ओर से मवेशियों के लिए चारे का इंतजाम भी अब तक नहीं किया गया है.
Posted By : Kaushal Kishor