समस्तीपुर : प्रकृति के कहर के सामने किसी का नहीं चलता. वह बड़े-बड़े लोगों को तोड़कर रख देती है. तभी तो शहर के बूढ़ी गंडक तटबंध पर बने बाइपास सड़क के किनारे कभी शान से जीने वालों को भी जानवरों के साथ रहने को विवश कर दिया है. बूढ़ी गंडक तट के किराने बसे सैकड़ों बाढ़ पीड़ित प्राकृतिक आपदा का चौतरफा मार झेलने को विवश हो रहे हैं. कोरोना काल में इन लोगों के लिए बाढ़ मुसीबत बन गयी है.
पहले बाढ़ ने उनके आशियाने को लील लिया. वहां से भागकर ऊंचे स्थानों पर पहुंचे तो यहां भी आफत ने पीछा नहीं छोड़ा. मंगलवार को हुई तेज बारिश ने मनुष्य व जानवरों का भेद खत्म कर दिया. एक ही तिरपाल के नीचे मवेशी के साथ बाढ़ पीड़ित आराम करते नजर आये. आश्चर्यजनक यह है कि इन सभी परिस्थितियों से स्थानीय प्रशासन अनभिज्ञ बना है. बाढ़ पीड़ितों की समस्या को सुनने व उससे निजात दिलाने की दिशा में अभी तक कोई ठोस कदम न तो प्रशासन द्वारा उठाया गया है और न किसी जनप्रतिनिधि द्वारा. इसके चलते बाढ़ पीड़ितों में काफी क्षोभ है. इनके पास पहुंचे तो समस्याओं की बड़ी पोटली है.
अव्वल तो यह है कि इनके समक्ष पेयजल, भोजन व सुरक्षा की सबसे बड़ी समस्या है. शहर के बूढ़ी गंडक तटवर्ती बसे सैकड़ों परिवार विगत तीन दिन से नदी में आई बाढ़ से परेशान है. इधर, विगत रविवार को तेज हवा के साथ हो रही बारिश ने बाढ़ पीड़ितों को झकझोर कर रख दिया है.
रामदेव, झगरु, शंकर ने बताया कि नदी का जलस्तर बढ़ने के कारण सैकड़ों परिवार विगत तीन दिनों से अपना-अपना घर द्वार छोड़ कर बाइपास के किनारे प्लास्टिक तान कर परिवार व मवेशियों के साथ गुजर बसर करने को विवश है. बाईपास के किनारे डेरा डाले बाढ़ पीड़ित वाहनों के आने जाने के चलते किसी अनहोनी घटना के डर से सदैव सहमें रहते हैं. उनकी नींद उड़ी हुई और चैन हराम हो गया है.
वहीं सुनील राम ने बताया कि प्रशासन द्वारा बाढ़ पीड़ितों के लिए न तो भोजन-पानी और नहीं मवेशियों के लिए चारे की व्यवस्था की गई है. जिसके चलते बाढ़ पीड़ित किसी तरह अपना जीवन व्यतीत कर रहे हैं. इतना ही नहीं विगत कई महीनों से चल रहा कोरोना महामारी के प्रकोप से भी इलाके के लोग अभी उबर नहीं पाए हैं. तब तक बाढ़ का कहर सिर चढ़ बोलने लगा है. बाढ़ पीड़ित किसी तरह प्लास्टिक तान कर धुप व बरसात से बचाव कर समय काट रहे हैं. दो दिनों से वर्षा का पानी व तेज हवा के झोंके के बीच प्लास्टिक को बचाना मुश्किल है.
posted by ashish jha