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सूरीनाम में भारतवंशी राष्ट्रपति

राष्ट्रपति के रूप में चुने गये संतोखी न्यायमंत्री व प्रोग्रेसिव रिफॉर्म पार्टी के नेता रहे हैं. यह पार्टी मूल रूप से भारतवंशियों का प्रतिनिधित्व करती है. उनके पूर्वज गिरमिटिया बन भोजपुरी अंचल से सूरीनाम गये थे.

विवेक शुक्ला, वरिष्ठ पत्रकार

vivekshukladelhi@gmail.com

कोरोना काल में एक अच्छी खबर भारत से बाहर बसे लघु भारत सूरीनाम से आयी है, जहां भारतवंशी चंद्रिका प्रसाद संतोखी को राष्ट्रपति चुन लिया गया है. संतोखी ने पूर्व सैन्य तानाशाह देसी बॉउटर्स की जगह ली है, जिनकी नेशनल पार्टी ऑफ सूरीनाम संसदीय चुनावों में हार गयी थी. नेशनल एसेंबली ने राष्ट्रपति के रूप में सर्वसम्मति से चुने गये संतोखी न्यायमंत्री व प्रोग्रेसिव रिफॉर्म पार्टी के नेता रहे हैं. यह पार्टी मूल रूप से भारतवंशियों का प्रतिनिधित्व करती है. धाराप्रवाह भोजपुरी बोलनेवाले संतोखी के पूर्वज गिरमिटिया बन भोजपुरी अंचल से सूरीनाम गये थे. एक गिरमिटिया वंशज की यह सफलता उनके संघर्षों की कहानी कह रही है. संतोखी नीदरलैंड की पुलिस अकादमी से प्रशिक्षित हैं और सूरीनाम के मुख्य पुलिस आयुक्त भी रह चुके हैं.

भारत से बाहर माॅरीशस, गुयाना, त्रिनिदाद और फिजी की तरह सूरीनाम को भी लघु भारत कहा जा सकता है. सूरीनाम की आबादी में 37 फीसदी हिस्सा हिंदुस्तानी और 27.4 फीसदी हिस्सा हिंदुओं का है. इसकी राजधानी पारामारिबो है और देश कुल दस जिलों में विभाजित है. सूरीनाम दक्षिण अमेरिका महाद्वीप के उत्तर में स्थित एक टापू देश है. इसे 25 नवंबर, 1975 में आजादी मिली थी. समाज बहुसांस्कृतिक है, जिसमें अलग-अलग जाति, भाषा और धर्म के लोग रहते हैं. सूरीनाम के भारतवंशियों में ज्यादातर भोजपुरिया हैं. भारतवंशियों के रोजगार की भाषा भले ही स्थानीय भाषा हो, पर उनके आपसी संवाद की भाषा उनके पुरखों द्वारा अपने साथ ले जायी गयी भाषाओं पर आधारित भाषा ही है. सूरीनाम के भारतवंशियों के संवाद की भाषा सरनामी भोजपुरी है.

स्वाभाविक रूप से संतोखी के सूरीनाम के राष्ट्रपति बनने से भारत खुश होगा, पर अब भी गुयाना में भारतवंशी जूझ रहे हैं. कैरिबियाई टापू देश गुयाना में राजनीतिक उथल-पुथल है. गत मार्च में हुए संसदीय चुनाव की मतगणना में भारी गड़बड़ी हुई. इसका नुकसान भारतीय मूल के लोगों के समर्थन से खड़ी पीपल्स प्रोग्रेसिव पार्टी-सिविक को हुआ है. इसकी स्थापना गुयाना के पहले राष्ट्रपति छेदी जगन ने की थी. इधर के भारतवंशी अपने को ठगा महसूस कर रहे हैं. करीब दस लाख से भी कम आबादी के देश में भारतवंशी 50 फीसद के आसपास हैं.

इन्हें ब्रिटिश सरकार 1817 से लेकर 1920 तक गन्ने के खेतों में मजदूरी के लिए लायी थी. ब्रिटेन का उपनिवेश था गुयाना. उसके अफ्रीकी उपनिवेशों से भी मजदूर आये थे. अत: आज गुयाना में ज्यादातर भारतीय और अफ्रीकी मूल के ही लोग हैं. भारत के विपरीत गुयाना में मतदान अभी बैलेट पेपर से होता है. सुप्रीम कोर्ट के फैसले से राष्ट्रपति डेविड ग्रेगनर निराश अवश्य होंगे. उन पर आरोप है कि उनके इशारों पर ही मतगणना में गड़बड़ हुई. जानकार कहते हैं कि गुयाना में अब भारतवंशी राजनीतिक रूप से बिखर गये हैं. वे पहले एक दल विशेष के साथ ही खड़े होते थे, जिससे उनकी स्थिति बेहतर थी.

भारतवंशियों के संरक्षक के रूप में स्थापित हुए थे छेदी जगन. उनके पिता जगन और मां जगाओनी उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले से गुयाना ले जाये गये थे. उनके माता-पिता के साथ उनकी दो दादी और चाचा भी गुयाना गये थे. छेदी जगन 11 भाई-बहनों में सबसे बड़े थे और उन्होंने गिरमिटिया का संघर्ष करीब से देखा था. वे 1961 में गुयाना के प्रधानमंत्री चुने गये. स्वतंत्रता के बाद 1992-1997 में वे गुयाना के राष्ट्रपति बने. पर उनकी मृत्यु के बाद भारतवंशी बिखरते गये. इसका ही नतीजा है कि वे गुयाना की सियासत में कमजोर हो गयी है. इस तरफ गुयाना के भारतवंशियों को सोचना चाहिए.

इस बीच गुयाना के घटनाक्रम पर दुनिया की निगाहें हैं क्योंकि वहां इधर कच्चे तेल के अकूत भंडार मिले हैं. इससे इस मुल्क की किस्मत बदलनेवाली है. कहा जा रहा है कि गुयाना निकट भविष्य में संसार के दस सबसे बड़े तेल उत्पादक देशों में शामिल हो जायेगा. गुयाना में कच्चे तेल के आठ अरब बैरल तेल के भंडार का अनुमान है. यह वास्तव में बहुत ही बड़ा आकलन है. गुयाना में तेल के भंडार एक्समोबाइल नाम की कंपनी ने खोजा है.

गुयाना का इतिहास रहा है कि मतदान के समय भारतवंशी मुख्य रूप से पीपल्स प्रोग्रेसिव पार्टी-सिविक और अफ्रीकी-गुयाना मूल के लोग पीपल्स नेशनल कांग्रेस के पक्ष में वोट देते हैं. नेशनल कांग्रेस में डोनाल्ड रामोतार जैसे भारतवंशी नेता भी हैं, इसलिए यह कहना उचित नहीं होगा कि सारे भारतवंशी प्रोग्रेसिव पार्टी के साथ ही रहते हैं. मौजूदा विवाद तब शुरू हुआ, जब मतदान के बाद नेशनल कांग्रेस के नेतृत्व वाले गठबंधन को विजयी घोषित कर दिया गया. इसका विपक्ष, न्यायपालिका और अंतरराष्ट्रीय पर्यवेक्षकों ने कस कर विरोध किया. उनका कहना था कि नतीजे सही नहीं हैं.

इनका दावा है कि मतगणना के समय गड़बड़ी की गयी. नतीजों के बाद से प्रोग्रेसिव पार्टी के समर्थक सड़कों पर उतर आये हैं और देश में हिंसक प्रदर्शन भी हो रहे हैं. ये अधिकतर भारतवंशी ही हैं. गुयाना की सुप्रीम कोर्ट ने कुछ मतदान केंद्रों की फिर से मतगणना कराने के निर्देश दिये हैं. यह फैसला विपक्ष के उन दावों को पुख्ता करता है कि मतगणना में हेराफेरी हुई है. विपक्ष के इस आंदोलन का नेतृत्व भारतवंशी इरफान अली कर रहे हैं.

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