भागलपुर: महिलाओं के जीवन स्तर को ऊंचा करने और उन्हें अपने पैरों पर खड़े करने का सपने दिखाने वाले सृजन महिला विकास सहयोग समिति लिमिटेड अचानक उनके पैरों के नीचे से जमीन खींच कर चला जायेगा. यह जिले के 10 हजार परिवार के लोगों ने सोचा भी नहीं था. सात अगस्त 2017 को पहली प्राथमिकी दर्ज होते ही इन परिवारों के होश उड़ गये थे. इनमें अधिकतर लोग सृजन के कार्यालय में रोज आकर पैसे जमा करते और फिर चले जाते. यह वो पैसे थे, जो वह पेट काट कर जमा करते थे, लेकिन अचानक घोटाले का पर्दाफाश हुआ. इन लोगों को पैसे मिलने की आखिरी आस पर मनोरमा देवी के बेटे अमित कुमार और उनकी पत्नी प्रिया रातों-रात चंपत हो पानी फेर दिया. बाकियों ने भी अपने-अपने रास्ते नाप लिये. इन गरीबों के सपने पूरे होने की बात तो दूर, आज तक उन्हें उनका मूलधन भी नहीं मिल पाया.
वर्ष 2017 में जब सृजन के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज हुई, तो नियमानुसार सबौर स्थित सृजन कार्यालय को सील कर पुलिस का पहरा बैठा दिया गया. पैसा जमा लेनेवाले के भागने की बात सबौर के उन गांवों में जंगल की आग की तरह फैल गयी, जहां के लोग सृजन से जुड़े थे. लोगों की भीड़ सृजन कार्यालय के सामने हर सुबह जुट जाती. यहां आनेवाले पदाधिकारियों से अपने पैसे के बारे में पूछते, लेकिन उन्हें कोई जवाब नहीं मिलता. धीरे-धीरे यह भीड़ कम होने लगी और बाद में सबने आना बंद कर दिया.
एके मिश्रा एंड एसोसिएट्स ने सृजन की संपत्ति का ऑडिट कराया था, जिसे तत्कालीन निबंधक ने नियम के अनुकूल नहीं मानते हुए अमान्य कर दिया था. यह मामला सृजन घोटाले के खुलासे के बाद का है. घोटाला सामने आने के बाद भी ऑडिट के काम में लापरवाही बरती गयी. यही नहीं सहकारिता विभाग को दोबारा ऑडिट शुरू कराने में तीन साल लग गये. गत जून में दोबारा ऑडिट करने का निर्णय लिया गया है. ऑडिट करने की प्रक्रिया शुरू की गयी है. अंकेक्षक को वर्ष 2003 से 2017 तक का अंकेक्षण करने कहा गया है.