प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 18 जून को वाणिज्यिक खनन के लिए 41 कोयला खदान की प्रक्रिया आरंभ करने का आदेश दिया था. यह आदेश ‘आत्मनिर्भर भारत अभियान’ के तहत भारत सरकार द्वारा की गयी घोषणाओं में से एक है. प्रधानमंत्री ने कहा है कि यह योजना कोयला क्षेत्र में सुधारात्मक प्रक्रिया के साथ पूर्वी और मध्य भारत के जनजातीय क्षेत्रों को अपने विकास का आधार बनायेगी.
इसी के साथ कोयला के उत्पादन में बढ़ोतरी होने से विदेशों से होनेवाले आयात की निर्भरता कम होगी और इससे भारत की आर्थिक विकास में सहायता मिलेगी. कोयले के वाणिज्यिक खनन से देश की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने, आयातों पर निर्भरता कम करने, क्षेत्र का आधुनिकीकरण और रोजगार उत्पन्न करने में मदद मिलेगी. यह ऐतिहासिक सुधार देश के प्राकृतिक संसाधनों को खोलेगा, अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहित करेगा और 5-ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने के लिए देश के मार्ग को प्रशस्त करेगा.
यह सभी बातें कोयला उत्पादक राज्यों के हित में भी हैं. इन राज्यों में बड़ी संख्या में आकांक्षी जिले हैं और वे प्रगति और समृद्धि के वांछित स्तर तक नहीं पहुंच पाये हैं. उन्होंने बताया कि देश के 16 आकांक्षी जिलों में कोयले का बहुत बड़ा भंडार है, लेकिन इन क्षेत्रों के लोगों को इसका पर्याप्त लाभ नहीं मिल सका है. यहां के लोगों को रोजगार के लिए दूर-दराज के शहरों में जाना पड़ता है.
प्रधानमंत्री ने बताया था कि वाणिज्यिक खनन की दिशा में उठाये गये ये कदम पूर्वी और मध्य भारत में स्थानीय लोगों को उनके घरों के पास रोजगार मुहैया कराने में मददगार साबित होंगे. उन्होंने बताया कि सरकार ने कोयला निष्कर्षण और परिवहन के लिए बुनियादी ढांचे के विकास पर 50 हजार करोड़ रुपये खर्च करने का फैसला लिया है और इससे भी रोजगार के अवसर पैदा होंगे. कोयले को आयातित करने के लिए देश हर वर्ष डेढ़ लाख करोड़ रुपये से भी अधिक की बहुमूल्य विदेशी मुद्रा खर्च करता है.
किंतु, नॉन-कोकिंग कोल का भरपूर भंडार होने के बावजूद इसका आयात कर देश के बहुमूल्य विदेशी मुद्रा का व्यय करना किसी अपराध से कम नहीं है. भारत में कोयला उत्पादन बढ़ा कर देश को आत्मनिर्भर बनाने के लिए मोदी सरकार ने 18 जून को कोयले के व्यवसायिक खनन की नीलामी प्रक्रिया शुरू कर दी है.
इस नीलामी प्रक्रिया में 41 कोयला खदानों को शामिल किया गया है, जिनमें कुछ पूरी तरह से और कुछ आंशिक रूप से खोजबीन की गये खदानें हैं. इनमें चार कोकिंग कोयला खदानें शामिल हैं, जिनका पूरी तरह से खोजबीन किया गया है. नीलामी प्रक्रिया तकनीकी और वित्तीय बोली के साथ दो चरण की निविदा प्रक्रिया होगी.
वाणिज्यिक खनन के लिए पहले चरण में पांच राज्यों झारखंड, छत्तीसगढ़, ओड़िशा, महाराष्ट्र व मध्य प्रदेश में कुल 41 खदानें नीलामी के लिए प्रस्तावित की गयी है. इन सभी खदानों के पास सम्मलित रूप से करीब 16,979 मिलियन टन का कोयला रिजर्व है, जिससे सालाना अधिकतम 225 मिलियन टन कोयला उत्पादन किया जा सकता है.
झारखंड के विकास को अवरुद्ध कर रही राज्य सरकार : केंद्र सरकार ने जिन 41 कोयला खदानों की नीलामी की प्रक्रिया शुरू की है, उनमें से कई कोल ब्लॉक झारखंड राज्य में हैं. केंद्र सरकार ने ऊर्जा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता और औद्योगिक गतिविधियों में तेजी लाने के लिए कोयला खदानों की नीलामी की प्रक्रिया शुरू की थी, लेकिन हेमंत सोरेन की सरकार ने सरकार के इस फैसले का विरोध किया और नीलामी शुरू करने के समय पर आपत्ति जतायी हैं. प्रधानमंत्री श्री मोदी के इस अभियान को रोकने और झारखंड के विकास को अवरुद्ध करने के लिए हेमंत सोरेन सरकार खुद ही यह समस्या खड़ी कर रही है.
झारखंड सरकार कोयला खदानों की नीलामी के केंद्र सरकार के फैसले के खिलाफ उच्चतम न्यायालय पहुंच गयी है और उसने नीलामी में राज्य सरकार को विश्वास में लेने की जरूरत बताते हुए इस पर रोक लगाने की मांग की है, क्योंकि झारखंड में खनन का विषय हमेशा से ज्वलंत रहा है. झारखंड राज्य की अपनी स्थानीय समस्याएं है जैसे बेरोजगारी, अशिक्षा, स्वास्थ्य आदि. साथ ही आज यहां के उद्योग धंधे भी बंद पड़े हैं. ऐसे में कोयला खदानों की नीलामी प्रक्रिया राज्य को लाभ देने वाली प्रतीत होती है. मगर राज्य सरकार इसका विरोध करके स्वंय के पैरों पर कुल्हाड़ी मार रही है.
व्यावसायिक खनन शुरू होने से राज्य के आदिवासियों का जीवन मूल्यों में बढ़ोतरी होगी और राज्य में रोजगार की संभावना भी बढ़ेगी, लेकिन झारखंड की राज्य सरकार का कहना है कि कोयला खनन का झारखंड की विशाल आबादी और वन भूमि पर सामाजिक और पर्यावरणीय प्रभाव पड़ेगा, जिसके निष्पक्ष मूल्यांकन की जरूरत है. जबकि, केंद्र सरकार ने कोयला मंत्रालय, वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के साथ मिल कर इन सभी विषयों पर गहन अध्ययन और शोध करने के बाद ही इन खदानों के आवंटन का निर्णय लिया है.
राज्यों को राजस्व और बड़ी आबादी को रोजगार मिलेगा : प्रधानमंत्री ने यह भी बताया कि खनिज क्षेत्र में सुधारों को कोयला खनन में सुधारों से ताकत मिली है, क्योंकि लौह, बॉक्साइट जैसे खनिज कोयला भंडारों के आसपास ही पाये जाते हैं. उन्होंने कहा कि वाणिज्यिक कोयला खनन के लिए आज नीलामी की शुरुआत सभी हितधारक उद्योगों के लिए एक जीत जैसी स्थिति है. उन्होंने कहा कि इससे राज्य सरकारों को अधिक राजस्व मिलेगा और देश की एक बड़ी आबादी को रोजगार भी मिलेगा.
उन्होंने कहा कि इसका हर क्षेत्र पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा. इसी के साथ भारत सरकार के कोयला मंत्रालय ने कोल इंडिया लिमिटेड को वर्ष 2024 तक एक अरब डॉलर के कोयला उत्पादन के लक्ष्य को पाने के लिये चालू वित्त वर्ष में उत्पादन लक्ष्य 71 करोड़ टन बनाये रखने को कहा है.
लॉकडाउन के बाद बढ़ेगी कोयले की मांग : सरकार को उम्मीद है कि लॉकडाउन समाप्त होने के बाद कोयले की मांग में तेजी आयेगी. इसीलिए कोल इंडिया लिमिटेड को वर्ष 2023-24 तक एक अरब टन कोयला उत्पादन के अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिये वित्तीय वर्ष 2020-21 के लिए 71 करोड़ टन के उत्पादन और कुल उठाव का लक्ष्य बनाये रखने का निर्देश सरकार द्वारा दिया गया है.
मंत्रालय ने पूरे वित्तीय वर्ष के दौरान कोयला उत्पादन में निरंतरता बनाये रखने पर जोर दिया है और कोल इंडिया के प्रबंधन को सभी आवश्यक तैयारी करने को कहा जिससे कि मॉनसून के दौरान भी उत्पादन प्रभावित न हो. उन्होंने कंपनी के अधिकारियों को सभी उपभोक्ताओं को गुणवत्तापूर्ण कोयला उपलब्ध कराने और यह सुनिश्चित करने को कहा कि वर्ष के दौरान बिजली संयंत्रों के पास पर्याप्त कोयला उपलब्ध रहे.
नीलामी प्रक्रिया में देश में प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी : इस नीलामी प्रक्रिया में देश में प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी, जिससे राज्यों को राजस्व की प्राप्ति होगी. प्रधानमंत्री ने कहा था कि अगर भारत दुनिया का चौथा सबसे बड़ा कोयला उत्पादक देश है, तो कोयला का सबसे बड़ा निर्यातक हम क्यों नहीं बन सकते? झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेतृत्व वाली सरकार के सुप्रीम कोर्ट पहुंच जाने के बाद नीलामी प्रक्रिया पर संशय के बादल मंडराने लगे हैं. इन सबसे अगर किसी का नुकसान होगा, तो वह झारखंड की जनता का होगा.
राज्य सरकार को जनता के हितों को ध्यान में रखते हुए केंद्र सरकार के इस महत्वपूर्ण फैसले का स्वागत करना चाहिए और इस अवसर का लाभ लेते हुए राज्य सरकार को चाहिए कि वह इस अभियान के माध्यम से झारखंड के विकास को मजबूत करे. रोजगारों और लघु उद्योगों का विकास करे. स्वास्थ्य सेवाओं और शिक्षा के आधार को और मजबूत करे. घरेलू उद्यमों की अर्थव्यवस्था और वित्तीय व्यवस्था को ठीक करने का प्रयास करे.
सरकार का यह कदम भारत को ऊर्जा क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनायेगा : प्रधानमंत्री ने 18 जून को देश को संबोधित करते हुए कहा था कि आत्मनिर्भर भारत का मतलब आयात पर निर्भरता कम करना और आयात पर खर्च होनेवाली विदेशी मुद्रा की बचत करना है. बताया कि भारत घरेलू स्तर पर संसाधनों को विकसित कर रहा है. इसका मतलब भारत को उन वस्तुओं का सबसे बड़ा निर्यातक बनना है, जिनका अभी हम आयात करते हैं. इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए हमें प्रत्येक क्षेत्र, उत्पाद, सेवा को ध्यान में रखना चाहिए और भारत को क्षेत्र विशेष में आत्मनिर्भर बनाने के लिए सबको मिलकर काम करना होगा.
सरकार द्वारा उठाया गया कदम भारत को ऊर्जा क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनायेगा. यह आयोजन न केवल कोयला खनन क्षेत्र से संबंधित सुधारों के कार्यान्वयन को चिह्नित करता है, बल्कि युवाओं के लिए रोजगार के लाखों अवसरों के सृजन की एक शुरुआत भी है. आज हम न केवल वाणिज्यिक कोयला खनन की नीलामी शुरू कर रहे हैं, बल्कि कोयला क्षेत्र को दशकों के लॉकडाउन से मुक्त भी कर रहे हैं.
नजरिया
झारखंड राज्य की अपनी स्थानीय समस्याएं हैं जैसे बेरोजगारी, अशिक्षा, स्वास्थ्य आदि. साथ ही आज यहां के उद्योग धंधे भी बंद पड़े हैं. ऐसे में कोयला खदानों की नीलामी प्रक्रिया राज्य को लाभ देने वाली प्रतीत होती है. इससे विकास के कई रास्ते खुलेंगे.
अर्जुन मुंडा, केंद्रीय मंत्री (आदिवासी मामले)
Post by : Pritish Sahay