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साढ़े छह लाख गाय-भैंस के लिए जिला में 25 बाएफ, पशुपालकों को हो रही परेशानी

पूरे जिला में करीब पांच लाख गाय तथा डेढ़ लाख भैंस हैं, पर इस आलोक में ग्रामीण क्षेत्रों में जरूरत के अनुसार कृत्रिम गर्भाधान केंद्र (बाएफ) की व्यवस्था गिरिडीह जिला में नहीं हो सकी है.

गिरिडीह : पूरे जिला में करीब पांच लाख गाय तथा डेढ़ लाख भैंस हैं, पर इस आलोक में ग्रामीण क्षेत्रों में जरूरत के अनुसार कृत्रिम गर्भाधान केंद्र (बाएफ) की व्यवस्था गिरिडीह जिला में नहीं हो सकी है. हालांकि अलग झारखंड बनने के बाद पशुपालकों की सुविधा के लिए रांची के होटवार में सीमेन बैंक बनाया गया है. वहां उन्नत नस्ल के सांढ़ के ब्रीज से कैप्सुल बनाया जाने लगा है. उसे कंटेनर में तय तापमान पर रखा जाता है. बाद में इसे लिक्विड नाइट्रोजन में भरने की व्यवस्था की गयी है. मुश्किल यह है कि जरूरत के अनुसार लोगों को कैप्सुल नहीं मिल रहा है.

अनुपलब्धता का दंश झेल रहे पशुपालक : कैप्सुल की अनुपलब्धता का मुख्य कारण झारखंड स्टेट इंप्लीमेंट एजेंसी के हवाले कर दिया जाना बताया जाता है. यह एजेंसी अनारक्षित वर्ग के लोगों को 30 रु प्रति कैप्सुल व आरक्षित वर्ग के लोगों को 20 रु लेकर प्रति कैप्सुल उपलब्ध करा रही है. एजेंसी पर्याप्त मात्रा में ग्रामीण क्षेत्रों में कैप्सुल नहीं भेज पा रही है. पूरे जिला में 25 कृत्रिम गर्भाधान केंद्र खोले तो जरूर गये हैं, पर ये केंद्र एजेंसी पर निर्भर हैं. इसका दंश आम पशुपालक झेल रहे हैं.

अविभाजित बिहार की व्यवस्था भंग : बताया जाता है कि पूर्ववर्ती बिहार में वर्ष 1985 में प्रत्येक प्रखंड मुख्यालय स्थित पशु चिकित्सालय में कृत्रिम गर्भाधान की व्यवस्था की गयी थी. गिरिडीह सदर प्रखंड व डुमरी प्रखंड में भी यह व्यवस्था थी. पशुपालक अपनी गाय व भैंस को पशु चिकित्सालय में ले जाते थे और कृत्रिम गर्भाधान केंद्र में सांढ़ का सीमेन गाय के गर्भ में प्रवेश कराया जाता था. बाद में अलग झारखंड राज्य गठित होने पर दोनों प्रखंड स्थित केंद्रों में यह व्यवस्था बंद कर दी गयी. हालांकि लोगों का यह भी कहना है कि ग्रामीण क्षेत्रों में सांढ़ की कमी से यह स्थिति उत्पन्न हुई है.

निजी कार्यकर्ता ही पहुंचाते हैं कैप्सुल – डीएएचओ : प्रभारी जिला पशुपालन पदाधिकारी डा. दिलीप कुमार का कहना है कि कृत्रिम गर्भाधान केंद्र में कैप्सुल पहुंचाने का जिम्मा जेएसआइ कार्यकर्ताओं को दिया गया है. समय-समय पर इसकी मॉनीटरिंग भी की जा रही है. कार्यकर्ताओं को एजेंसी से प्रशिक्षण भी दिलाया जा चुका है. कैप्सुल के इच्छुक पशुपालक तय शुल्क जमा कर कैप्सुल ले सकते हैं. मांग के अनुसार कैप्सुल नहीं मिल रहा है तो इसके लिए विभाग से पत्राचार भी किया गया है.

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