पटना : बिहार विधान परिषद के इस बार के द्वि वार्षिक चुनाव में दलित उम्मीदवार का टोटा पड़ गया. नौ दलीय अधिकृत उम्मीदवारों में किसी भी दल से दलित वर्ग से आने वाले उम्मीदवार नहीं आये. फिलहाल 75 सदस्यीय सदन में 29 सीटें खाली हैं. बाकी के 34 सदस्यों में महज तीन ही दलित वर्ग से आते हैं. इनमें भाजपा के संजय पासवान, कांग्रेस के राजेश राम और हम के संतोष कुमार सुमन के नाम हैं.
जिन आठ शिक्षक और स्नातक निर्वाचन सीटों पर आगे चुनाव होना है, उनमें भी दूर-दूर तक किसी दलित नेता की दावेदारी या उन्हें उम्मीदवार बनाये की संभावना नहीं दिख रही. एक मात्र उम्मीद मनोनयन कोटे की 12 सीटों पर टिकी है, जिसमें जदयू की ओर से मंत्री अशोक चौधरी के मनाेनयन तय माना जा रहा है. सिर्फ दलित वर्ग से आने वाले सिर्फ एक ही सदस्य का मनोनयन हो पाया, तो सदन में इस वर्ग के प्रतिनिधित्व करने वालों की संख्या बढ़ कर चार हो जायेगी. जो कुल सदस्यों के पांच प्रतिशत होते हैं. दरअसल, विधान परिषद की सीटों में विधानसभा या लोकसभा की तर्ज पर एससी-एसटी वर्ग को आरक्षण की सुविधा नहीं है.
अल्पसंख्यस्क कोटे के सात सदस्यों में छह जदयू के, राजद के एक : विधानसभा कोटे की नौ सीटों के लिए होने वाले चुनाव में अल्पसंख्यक कोटे के दो उम्मीदवारों ने नामांकन का पर्चा भरा है. इन दोनों के निर्वाचन हो जाने के बाद सदन में अल्पंख्यक वर्ग के प्रतिनिधियों की संख्या बढ़ कर सात हो जायेगी. इनमें से छह सदस्य जदयू के होंगे, जबकि राजद के एक सदस्य मो फारूखी विप के सदस्य बनेंगे. सदन में अभी अल्पसंख्यक सदस्यों की संख्या पांच है. सलमान रागीब, गुलाम रसूल, तनवीर अख्तर, खालिद अनवर और कमरे आलम ये सभी जदयू के सदस्य हैं.