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कूटनीतिक वार

उच्चायोग के कर्मचारियों की संख्या घटाने के निर्देश से पाकिस्तान के रवैये में सुधार की उम्मीद जल्दबाजी होगी, लेकिन यह कार्रवाई एक ठोस चेतावनी जरूर है.

भारत को आतंकवाद और अलगाववाद से अस्थिर करना दशकों से पाकिस्तान की विदेश एवं रक्षा नीति का हिस्सा है. इसमें भारत में कार्यरत उसके कूटनीतिक भी भागीदार होते हैं, जो जासूसी करते हैं और आतंकियों को मदद पहुंचाते हैं. जब भी हमारे देश की ओर से ऐसे तत्वों की पहचान की जाती है और उनकी कारगुजारियों को उजागर किया जाता है, तो पाकिस्तान अपने देश में स्थित भारतीय उच्चायोग के अधिकारियों एवं कर्मचारियों को झूठे आरोपों के आधार पर प्रताड़ित करने लगता है. आतंक को संरक्षण और समर्थन देने के रवैये की पूरी दुनिया में आलोचना होती रही है और उसके विरुद्ध कार्रवाई भी की गयी है, फिर में उसमें सुधार के लक्षण नजर नहीं आ रहे हैं.

तीन सप्ताह पहले भारतीय सेना की गतिविधियों की जानकारी हासिल करने की कोशिश की वजह से पाकिस्तानी उच्चायोग के दो कर्मचारियों को देश छोड़ने का आदेश दिया गया था. इसी कड़ी में अब भारत ने कड़ा रुख अपनाते हुए उच्चायोग में कार्यरत आधे लोगों को देश छोड़ने को कहा है. दोनों देशों के बीच समझौते के तहत उच्चायोगों में 110 कर्मचारी रखने का प्रावधान है, लेकिन अभी वास्तविक संख्या 90 के आसपास है. भारत के इस निर्णय के बाद दोनों देशों के उच्चायोगों के 35 कर्मचारी अपने-अपने देश लौट जायेंगे.

इस तरह की कार्रवाई किसी भी देश के लिए आसान फैसला नहीं होती है और भारत को भी बहुत मजबूर होकर यह कदम उठाना पड़ा है. वैसे तो नियंत्रण रेखा और अंतरराष्ट्रीय सीमा पर पाकिस्तान द्वारा युद्धविराम का उल्लंघन उसकी आदत बन चुकी है और वह कश्मीर घाटी में आतंकियों की घुसपैठ कराने की कोशिश भी लगातार करता रहा है, लेकिन पिछले साल अगस्त में जम्मू-कश्मीर की प्रशासनिक संरचना में बदलाव के बाद तो बौखलाहट में उसकी हरकतें बहुत अधिक बढ़ गयी हैं.

पाकिस्तानी सरकार, सेना और भारत-विरोधी आतंकी गिरोह एक ही भाषा में बोलने लगे हैं. अभी अमेरिका के आतंकवाद विरोधी विभाग ने भी अपनी रिपोर्ट में कहा है कि भारत को निशाना बनानेवाले आतंकवादी गुटों के लिए पाकिस्तान अभी भी शरणस्थली बना हुआ है. अंतरराष्ट्रीय समुदाय से कई बार किये गये वादों के बावजूद 2008 के मुंबई हमलों की साजिश रचनेवाले सरगनाओं के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गयी है.

रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि आतंकियों को धन की आपूर्ति रोकने के लिए भी पाकिस्तानी सरकार ने कोई कदम नहीं उठाया है. कुख्यात खुफिया एजेंसी आइएसआइ ने आतंक ही नहीं, नशे और हथियार के कारोबार के जरिये समूचे दक्षिण एशिया की शांति और स्थिरता के लिए बड़ा खतरा पैदा कर दिया है. हालांकि यह उम्मीद करना जल्दबाजी होगी कि उच्चायोग के कर्मचारियों की संख्या घटाने के निर्देश से पाकिस्तान के रवैये में सुधार होगा, लेकिन यह कूटनीतिक कार्रवाई एक ठोस चेतावनी जरूर है.

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