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इमरजेंसी में जारी रहने वाले श्रावणी मेला पर पहली बार लगी रोक, सौ करोड़ के कारोबार को लगेगा झटका

भागलपुर : विश्व प्रसिद्ध श्रावणी मेला इस बार कोरोना के कारण नहीं लगने की पूरी संभावना है. अब तक के इतिहास में पहली बार मेला का आयोजन नहीं हो रहा है. 86 वर्षीय पंडित नरेश झा ने कहा कि अब तक ऐसा नहीं हुआ था. प्रो उदय चंद्र झा ने कहा कि मेला नहीं लगने से सुलतानगंज से देवघर तक मेला से जुड़े लोगों का बाबा ही भरोसा बनेंगे. मेला कई लोगों के रोजगार का द्वार खोलता है. कई वर्गों के लोगों को मेला बीत जाने के बाद अगला मेला का इंतजार रहता है.

भागलपुर : विश्व प्रसिद्ध श्रावणी मेला इस बार कोरोना के कारण नहीं लगने की पूरी संभावना है. अब तक के इतिहास में पहली बार मेला का आयोजन नहीं हो रहा है. 86 वर्षीय पंडित नरेश झा ने कहा कि अब तक ऐसा नहीं हुआ था. प्रो उदय चंद्र झा ने कहा कि मेला नहीं लगने से सुलतानगंज से देवघर तक मेला से जुड़े लोगों का बाबा ही भरोसा बनेंगे. मेला कई लोगों के रोजगार का द्वार खोलता है. कई वर्गों के लोगों को मेला बीत जाने के बाद अगला मेला का इंतजार रहता है. श्रावणी मेला का अर्थशास्त्र काफी बड़ा है. एक माह तक चलने वाले मेला में लगभग 40 से 50 लाख कांवरिये आते हैं. एक कांवरिया लगभग 200 से 500 खर्च अवश्य करते हैं. लगभग एक सौ करोड़ से अधिक का कारोबार होता है. इनमें होटल, रेस्टोरेंट, कपड़ा, फोटोग्राफर, पंडा, कांवर, डिब्बा, पूजा-पाठ सामग्री, लाठी, अगरबत्ती आदि के व्यवसाय की तैयारी कई महीनों से होती है. एक अनुमान के मुताबिक मेला नहीं लगने से एक सौ करोड़ के कारोबार को झटका लग जाने की आशंका है.

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भोजन, नाश्ता, चाय पर होते है 21 करोड़

मेला से जुड़े लोगों ने बताया कि मेला में कांवरिया सुलतानगंज में भोजन, चाय, नाश्ता व जूस आदि में न्यूनतम 70 से 80 रुपये खर्च अवश्य करते हैं. एक दिन में लगभग 70 लाख का कारोबार होता है. इस तरह एक माह में 21 करोड़ का व्यवसाय कांवरियाें से हो जाने की संभावना रहती है.

54 करोड़ का होता है कांवर व डिब्बा का कारोबार

मेला में कांवर के सैकड़ों अस्थायी दुकानें खोले जाते हैं. कांवर व्यवसायी ने बताया कि एक कांवरिया न्यूनतम 150 रुपये कांवर में अवश्य खर्च करते हैं. इस तरह एक माह में कांवर व्यवसाय में 45 करोड़ से अधिक कारोबार की संभावना व्यक्त किया गया है, जबकि मेला में सैकड़ों डिब्बे की दुकानें खुलती हैं. एक कांवरिया एक जोड़ा डिब्बा व पवित्री 30 रुपये में खरीदते थे. इस तरह पूरे महीने में 9 करोड़ का व्यवसाय डिब्बा से होता था, जो इस बार पूरी तरह रूक जायेगा.

लाखों में होती है पुरोहितों की कमाई

कई पंडा ने बताया कि मेला में एक लाख से अधिक कांवरिया एक दिन में आते है.जत्थे में सभी मिल कर एक साथ दक्षिणा देते हैं. लगभग 300 से 400 पंडा सुलतानगंज में पूजा कराने पहुंचते हैं, जो पूरे महीने में अच्छी कमाई कर अपने घर जाते हैं. मेला नहीं लगने से उन सभी पंडाें को आर्थिक नुकसान हो गया है. पंडाें ने बताया कि सरकार हमलोग के बारे कुछ सोचे. आर्थिक मदद करे.

6 करोड़ के बिकते हैं कपड़े

मेला में एक कांवरिया न्यूनतम 200 रुपये के कपड़े की खरीदारी अवश्य करता है. एक दिन में 20 लाख का कारोबार की संभावना रहती है. दर्जनों दुकानें मेला में खुलती हैं. एक माह के दौरान यह कारोबार 6 करोड़ से अधिक की हो जाती थी, जो इस बार नहीं होगा.

लाखों की हो जाती है फोटोग्राफरों की कमाई

सुलतानगंज में कई फोटोग्राफर हैं. एक फोटो बनाने में 20 रुपये लिया जाता था. दो से तीन सौ फोटोग्राफर का रोजगार मेला मे प्रभावित हो गया. एक दिन में एक फोटोग्राफर लगभग एक से दो हजार कमा लेते थे. एक माह में आने वाले कांवरिये से लाखों रुपये की फोटोग्राफी से कारोबार हो जाने की संभावना बनती थी. मेला नहीं लगने से झटका लगा है.

होटल, रेस्टोरेंट,शौचालय पर 90 लाख का होता था कारोबार

पूरे माह सावन में दर्जनों होटल, रेस्टोरेंट, शौचालय आदि सुलतानगंज से देवघर के रास्ते तक खुलते थे. कांवरियों के लिए ठहराव, शौचालय में लगभग 90 लाख का कारोबार की संभावना व्यक्त किया गया. एक दिन में न्यूनतम ढाई से तीन लाख का व्यवसाय कांवरिया देते थे, जो रूक जायेगा.

पूजा-पाठ सामग्री व अगरबत्ती में 9 करोड़ करते है खर्च

अजगैवी नगरी में कांवरिया पूजा-पाठ सामग्री व अगरबत्ती आदि में एक कांवरिया 30 रुपये न्यूनतम खर्च अवश्य करते थे. इस तरह 40 से 50 लाख कांवरिये एक माह में 9 करोड़ से अधिक का कारोबार देते थे. इन रोजगार से जुड़े लोगों को काफी नुकसान की आशंका है.

7 करोड़ के बिकते थे लाठी व पॉलिसी

श्रावणी मेला के दौरान बाबा का सहारा लाठी अधिकतर कांवरिये सुलतानगंज से ही खरीदते थे. एक माह के दौरान 40 से 50 लाख कांवरिये में से 70 प्रतिशत कांवरिये लाठी का इस्तेमाल करते हैं. एक लाठी की कीमत 40 से 50 रुपये होती थी. लाठी से 5 करोड़ का कारोबार मेला में होता था. पॉलिसीट भी कांवरिया खरीदते थे. एक पॉलिसीट 20 रुपये में मिलता था. इस तरह मेला में दो करोड़ का पॉलिसीट के कारोबार का झटका लगा.

बोतल बंद पानी, कोल्ड ड्रिंक्स आदि पर 7 करोड़ करते है खर्च

मेला के दौरान बोतल बंद पानी व कोल्ड ड्रिंक्स की ब्रिकी बड़े पैमाने पर होती थी. एक बोतल बंद पानी 15 से 20 रूपया तथा कोल्ड ड्रिंक्स 10 से 15 में मिलता है. इस तरह एक दिन में 24 लाख का कारोबार की संभावना को नुकसान हो गया. बताया गया कि पूरे माह में सात करोड़ का व्यवसाय कांवरिया से किया जाता था. मेला नहीं लगने से इन कारोबार को झटका लगा है

वर्ष 1950 में थी तीन दुकानें, आते थे केवल मारवाड़ी समाज के कुछ लोग

86 वर्षीय पं नरेश झा ने कहा कि वर्ष 1950 में ध्वजागली में मेला केवल लगता था. तीन दुकानें थी. एक मिठाई, एक कांवर व एक पान-चाय की. एक हजार से आठ सौ के करीब कांवरिये आते थे. धीरे-धीरे मेला का विस्तार हुआ. आज बडे पैमाने पर मेला का आयोजन हो रहा है. राजकीय मेला का दर्जा मिल गया है. पं नरेश झा ने बताया कि आजादी के पूर्व भी मेला पर विराम नहीं लगा था. भारत-पकिस्तान युद्ध में भी मेला नही रुका था. कोरोना ने इस बार मेला नहीं लगने दिया. पं झा ने कहा कि कर्ज लेकर जेवर बंधक रख कर कई लोग मेला के सहारे थे, लेकिन मेला नहीं लगने से वो सभी निराश हो गये हैं. कई कांवरिये अपने पंडा से टिकट कैंसिल को लेकर जानकारी ले रहे हैं. पंडा उन्हें 30 जून तक वेट करने को कह रहे हैं. मेला नहीं लगने से आर्थिक स्थिति को सुढृढ़ करने को लेकर सभी परेशान हैं, तो कोरोना को हराने को लेकर भी एकजुट देखे जा रहे हैं.

आपातकाल में भी नहीं लगा था श्रावणी मेला पर ब्रेक

बिहार-झारखंड के बीच लगने वाले विश्व के सबसे लंबे मानव मेले पर पहली बार लगभग लगाम लगना तय हो गया है. श्रावणी मेला को काफी करीब से जानने वाले प्रो उदय चंद्र झा ने बताया कि बिहार के सुलतानगंज से झारखंड के देवघर के बीच 95 किमी लंबे रास्ते पर लगने वाले धार्मिक मेले की शुरुआत कब से हुई ये किसी को पता नहीं है. साथ ही किसी को यह भी पता नहीं कि कभी किसी वर्ष यह मेला बंद भी हुआ हो. यहां तक कि इमरजेंसी यानी वर्ष 1975 में लगे आपातकाल में भी इस मेले पर प्रतिबंध नहीं लगाया गया था. प्रो झा ने बताया कि उन दिनों पूरे देश में धारा 144 लागू था. बिना किसी पूर्व सूचना के एक जगह पांच से अधिक लोगों के जुटने पर पुलिस उस पर कार्रवाई करने के लिए स्वतंत्र थी. तब भी श्रावणी मेला क्षेत्र में इस नियम को शिथिल कर दिया गया था, लेकिन इस कोरोना वायरस के संक्रमण काल में मेला के आयोजन पर रोक लगा दिया है. इतनी बड़ी भीड़ से स्वास्थ्य सुरक्षा के मानकों का पालन कराना असंभव बता कर मेला के आयोजन पर विराम लगाया गया है.

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